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________________ १३०] अनेकान्त [किरण ५ - - - इन पहाड़ियोंक बीचकी चौड़ाई अधिकसं अधिक दास उनमें तीन गोलाकार अक्षरों में लिखे शिलालेख हैं तीन फर्लाङ्ग होगी। पहाड़ियोंके भिमा-भिन्न भागमें जैन- (नं०६-७-८)। पहले प्रस्तरमें एक वीरांगणा सिंहारूढ़ मूर्तियों के विद्यमान होने के कारण भी इसको श्रमण गिरि दाहिने हायमें वाण और बांये हाथमें धनुष तथा शेष दो हाथोंकहते होंगे। क्योंकि तमिल भाषामें जनोंका श्रमणके नाम में दूसरे युद्ध श्रायुधोंको लिये हुए है। सिंहकी ओर देखता से भी वर्णन किया गया है । इस गिरिको अम्मणगिरि भी हुश्रा एक हायमें तलवार और दूसरेमें ढाल लिये एक वीर कहते हैं, किन्तु बोलचाल की भाष में अम्मणरगिरि के हाथी पर सवार है । इस प्रकारकी चित्रित देवी अम्बिका रूप परिवर्तन हो गया है। हो सकती है। इसके बाद दूसरे श्रासनमें तीन प्रायिकाओंइन पहाड़ियोंक भिम २ भागों में प्राप्त शिलालेखोंका की मूर्तियां हैं। उनके पिर पर तीन छत्र हैं । अन्तिम वर्णन करने के लिए हम उन्हें क, ख, ग प्रादि शीर्षकोंमें। श्राले में एक नीचंकी पोर एक पैर लटकाये हुए एक देवीकी उल्लेख करेंगे। उन शिलालेखोंमेंसे एक कन्नड़ भाषामें मूर्ति है । उसके दाहिने हायमें कमलकी कली जैसी कोई और शेष तमिल भाषा में हैं। चीज दिग्वलाई पडती है । जैन स्त्री देवताओंमें पद्मावतीको ही हाथमें कमलकी कली धारण किये हुए बनाया जाता है । भाग 'क-पंचवर पदुक' पंच पांडवांका बिस्तर- हम अायनमें उपर्य' चारोंके सिवाय और कोई शिलालेख पालमपट्टी या मुत्न पट्टीक पश्चिम कोण में जो पहाड़ियां हैं नहीं है। उनमें इस भाग 'क' को ही पंचवर पदुक्क कहते हैं। भाग 'ग' पेच्चीप्पल्लम-यह भाग श्रमणगिरिके इस भाग क में अनेक बिस्तर चट्टान पर खोदे जानक पूर्व ढालूके दक्षिण कोणमें जो सहिपांडऊ है उसके पास कारण हमे पंचवर पदुक्क नामसे यहाँक लोग कहते हैं। अवस्थित है पेच्चीप्पल्लम्के नामसे कहा जाता है । यह ऊपरसे लटकते हुए एक चट्टानक नीचे या मब बनाया हुश्रा भाग पहाड़क कुछ ऊपरी भागमें लाइनसे न तीर्थंकरोंकी है। ऊपरकी चट्टान के बाहरकी पोर एक लम्बी गहरी लाइन मृतियोंस सहित एक चट्टानक सामने समतल भूमिमें है । नालीक प्राकारकी खोदी गई है जिससे वारिशका पानी गुफाक अन्दर न नामक । इस चट्टानके ऊपर दो तमिल उन जैन मूर्तियोंमें पांच मूर्तियां सुपार्श्वनाथकी हैं। इन जैन शिलालेख (नं. १ और २) ब्राह्मी लिपिमें इस्त्री पूर्वके हैं। मूर्तियों के नीचे छः गोलाकार अक्षरोंके शिलालेख (408, गुफाके भीतर बिस्तरोंके निकट यासन पर एक जिनमति १०, ११, १२, १३, १४) हैं। है। उस मूनिके पास एक और ग्रामी लिपिमें लिखा हश्रा इन चट्टानोंके सामने और एक शिलालेख (नं १५) शिलाख है। उसके अति जीर्ण शीर्ण और घिस जानेसे गोल अक्षरोंमें लिखा मिला है । इनमें कुछ शिलालेख उमक सम्बन्धमें कुछ ज्ञात नहीं हो सकता है ऊपर लटकती ईसाकी पाठवीं या नौवीं शताब्दीके और शेष सब नौवीं या हुई चहानमें दो पाले तथा प्रत्येक साल में एक एक जिनति दशवीं शताब्दीके अनुमानित किये गये हैं। उत्कीर्ण है। प्रत्येक मृतिक नीचे पट्टे लुह, अक्षरों में प्रायः भाग 'घ-पर्वतके भाग 'ग' से कुछ और ऊपर जाने दशवीं शताब्दीके दो शिलालेख हैं (नं. ३ और ४) । इस पर भाग 'घ' पर पहुँचते हैं। यहां एक मन्दिरके भग्नावशेष क भागने और कोई शिलालेख नहीं है। है जिसका कवल पीठ भाग ही शेष रह गया है । उस भाग 'ख'-सेट्रिप्पोडअ.-यह भाग ख श्रमण- भागके नीचे दशवीं शताब्दीका एक अपूर्ण शिलालेख मिला गिरिको पश्चिमी तराई पर अर्थात् दक्षिण-पश्चिमकी पोर है (नं. १६)। है। यह ठीक किलयिलकुडी ग्रामकी तरफ है । उसमे भाग 'हु'-पहाडके और उपर जाने पर चोटीके नजएक गुफाकं प्रवेश-द्वारमें बाई ओर विशाल पदमासन जिन- दीक एक दीप-स्तम्भ है। इसके कुछ दूर समतलमें चट्टानमूर्ति है । इस मूर्तिक नीचे करीब दशवीं शताब्दीके शिला- के ऊपर और एक शिलालेग्व (नं. १७) है। इसमें जो कुछ लेख (नं. ५) है जो गोलाकार अक्षरोंमें खुदे हुए जैसे भी लिखा है बह सब काडमें है । केवल एक लाइन मालूम पड़ते हैं। गुफाके अन्दर मुके हुए उपरी भागमें जो तमिलमें लिखी गई है। देखनेसे उनकी लिपि ११वी या आले हैं उनमें पांच मूर्तियां एक ही पत्थरमें उत्कीर्ण हैं। १२वीं शताब्दीकी मालूम होती है।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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