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________________ - - - ०सुरजा भनेकान्त [वर्ष १४ किये हुए है । यह इस स्तोत्रमें खास खूबी है, और उक्त 'धर्मसंग्रह-श्रावकाचारका लिखना प्रारम्भ इस तरह इसमें २४-२५ चित्रोंका समावेश है. जिनके किया था, जिसको समाप्ति सपादलक्ष देशके नागपुर नाम क्रमशः इस प्रकार है: नगरमें हुई थी। इनके पिताका नाम 'उद्धरण,' १ छत्र, २ चमर, ३ बीजपूर, ४ चतुरारचक्र, माताका 'भीषुही' और पुत्रका नाम 'जिनदास' था। ५ षोडशदल-कमल, ६ अष्टदल-कमल, ७ स्वस्तिक, इन्होंने भतमुनिसे अष्टसहस्री पढ़ी थी। यह सब धनुष, मुशल, १० श्रीवृक्ष, ११ नालिकेर, १२ परिचय धर्मसंग्रह-श्रावकाचारादिकी प्रशस्तियोंसे त्रिशूल, १३ श्रीकरी, १४ इल, १५ बज, १६ शक्ति, जाना जाता है। १७ भल्ल, १८ शर, १६ कलश, २० रथपद, २१ पं. मेधावी अपने नामानकल अच्छे प्रौढ विद्वान कमल, २२ शंख, २३ खड्गमुष्टि, (२३-२४ खड्ग) थे और उनकी यह प्रस्तुत कृति उनके बुद्धि-वैभवको २४ मुरज। और भी ख्यापित करती है। अलंकारकी छटाको ये चित्र भी स्तोत्रके अन्तमें जा पत्रों पर दिये लिये हुये यह बड़ी ही सुन्दर-सुबाध-रचना है और स्तोत्रके पत्रों की कुल संख्या १० हैं और यह भी शीघ्र ही अनुवादादिके साथ प्रकाशमें लानेके योग्य एक गटकेमें (पत्र ४१ से ५० तक) पाया गया है; है। खेद है कि १६वीं शताब्दीकी रची हुई यह कलाजिसमें और भी कुछ सुन्दर स्तोत्र तथा हंसादि त्मक कृति भी विस्मृतिके गड्ढे में पड़ गई और अभी विषयों पर १८ अष्टक हैं और हिन्दीकी वृद्ध तक इसका कोई नाम भी नहीं सुना जाता था ! स्था लघु बावनी आदि कुछ दूसरी रचनाएँ भी सहयोग मिलनेपर इसे भी वीरसेवामन्दिरसे शीघ्र यह गटका संवत् १६६८ श्रावण-वदि अष्टमीका चित्रों आदिके साथ प्रकाशित किया जा सकेगा लिखा हुआ है और नागौर में लिखा गया है। और इसके चित्रोंको आधुनिक कलाकी दृष्टि से अधिक प्रस्तुत स्तोत्रके आदिके दो और अन्तका एक पद्य सुन्दर बनाया जा सकेगा। प्रत्येक पद्यके सामने इस प्रकार : उसका सहज-सुबोध एवं मनोहर चित्र रखा जाय, "वीर्यरचनेवार संस्था वषमादयः । ऐसी व्यवस्था प्रकाशनकी होनी चाहिये। चित्रवन्धेन तास्तौमि हारिया चित्रकारिणा ॥ १०. चपेट-शतक पभो वः सतां कांता वृद्धि देयादनिदितां । भाषयामास या स्वीचं भास दमितदुन्नयं ॥२॥" यह संस्कृत जैनप्रन्थ अपने नामानुकूल पूरे सौ पद्योंका है। संस्कृत-भाषामें निबद्ध है और अपने xxxx पत्राचाऽऽकृतिभिमृदंग-निधन (नदै) रिचौविचित्रार्थिनी प्रत्येक पद्यमें नित्यके उपयोगको अच्छी-अच्छी शिक्षाश्रीमन्मंगलकारिणां सुषमादीनां जिनानां महा। प्रद बातोंको लिये हुए है। यह भी एक गुटकेमें यो माऽधीत इमा स्तुति विवयतो मेधाविना संस्कर्ता उपलब्ध हुया है, जो संवत् १८७३ ज्येष्ठ कृष्ण पुन्नागः कावास पाति नृपति स्वर्गविध चारनुते॥२६॥ तीजका लिखा हुआ है और कृष्णगढमें लिखा गया है। यह उक्त गुटकेमें पाठ पत्रोंपर (२२ से २६ तक) अन्तिम पद्यमें स्वविकारने अपना नाम 'मेधावी' कितगटकेका पूर्वभाग पानीसे भीगा है; परन्तु सूचित किया है जो कि वे ही ५० मेघावी , यह भाग उसके असरसे प्रायः बच रहा है। इसके जान पड़ते हैं जिन्होंने सम्वत् १५४१में धर्म आदि अन्तके दो-दो पद्य निम्न प्रकार हैसंग्रह-श्रावकाचारकी रचना की है, जो जिनचन्द्र के शिष्य तथा पद्मनन्दीके पट्ट पर प्रतिष्ठित 'श्रीपर्वशं नत्वा देवं, सकल-सुरासुर-'वरचित-सेवं । होनेवाले शुभचन्द्र के प्रशिष्य थे और जिन्होंने व किंचित्तबुचरोऽहं, मुचति येन विवेकी मोहं ॥१॥ सम्बत् १५१६में मूलाचारफी और १५१४ में त्रैलोक्य- वर्जित दुध-सहाथमहोमिः, परिहर भाषाकाय-मनोभिः । प्राप्तिकी दान प्रशस्ति लिखी है। ये मप्रोतकुलमें पविध-जीव निकाय-विना संसाति-पारक-बन्धन पार उत्पन्न हिसारके रहनेवाले थे, हिसारमें ही इन्होंने x
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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