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________________ ॐ अहम भाम बस्ततत्त्व-मघातक in वश्व तत्त्व-प्रकाशक वार्षिक मूल्य ६) एक किरण का मूल्य 1) DU % 3D नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् । पगामस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्त ॥ - वर्ष १३ किरण१०। चारसेवामन्दिर, C/दि० जैन लालमन्दिर, चाँदनी चौक, देहली क्षेत्र, वीरनिर्वाण-संवत् २४८१, विक्रम संवत २०१२ अप्रैल १६५५ ० महा विकल संसारी (कविवर बनारसीदास) देखो भाई ! महानिकल संसारी, दग्विन अनादि मोहके कारन, राग-द्वेष भ्रम भारी ॥१॥ हिसारम्भ करत सुख समुझै, मृपा बोलि चतुराई । परधन हरत समर्थ कहा, परिग्रह बढ़त बड़ाई । वचन र ख काया दृढ़ रावे, मिट न मन चपलाई। यात होत और को औरै, शुभ करनी दुखदाई ॥३॥ जोगासन करि कर्म निराधे, आतमष्टि न जागै। कथनी कथत महंत कहाचे, ममता मूल न त्यागै ॥४॥ आगम वेद सिद्धान्त पाठ मुनि. हिये आठ मद आने । जाति लाभ कुल बल तप विद्या, प्रभुता रूप बस्त्राने ॥५॥ जड़मों राचि परमपद साधे, आतम-शक्ति न सूझे। बिना विवेक विचार दरब के, गुण परजाय न बूझ ॥६॥ जस वाले जस सुनि सन्तांपैं, तप बाले तन साईं । गुन वाले परगुनको दोणे, मतवाले मत पोर्षे ॥७॥ गुरु उपदेश सहज उदयागति, मोह-विकलता छूटै ।। कहत 'बनारसि' हे करुनारसि, अलख अखय-निधि लूटै।।८।। EACHOOK-HEoHE0T0
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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