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सिंह-श्वान-समीक्षा-पं. हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री हिंमक और अहिंसक (कविता)-[मुमालाल मणि ५२ स्वागतगान (कविता)- ताराचन्द्र 'प्रेमी' ३२ हिसाबका संशोधन (टाइटिल)हस्तिनागपुरका बड़ा जैन मन्दिर-[परमानन्द जैन १४ हुँबर या हुमडवंश और उसके महत्वपूर्ण कार्यहिन्दी भाषाके कुछ ग्रंथोंकी नई खोज-परमानन्द जैन १.१
परमानन्द जैन शास्त्री १२३ समीचीन-धर्मशास्त्र (रत्नकरण्ड) मुख्तार श्रीजुगलकिशोरके हिन्दी-भाष्य-सहित
छपकर तय्यार सर्व साधारणको यह जान कर प्रसन्नता होगी कि श्रावक एवं गृहस्थाचार-विषयक जिस अति प्राचीन तथा समीचीन धर्मग्रन्थके हिन्दी भाष्य-सहित कुछ नमूनोंको 'समन्तभद्र-वचनामृत' जैसे शीर्षकोंके नीचे अनेकान्तमें प्रकाशित देख कर लोक-हृदयमें उस समूचे भाष्य-ग्रन्थको पुस्तकाकार रूपमें देखने तथा पढ़नेको उत्कण्ठा उत्पन्न हुई थी और जिसकी बड़ी उत्सुकताके साथ प्रतीक्षाकी जा रही थी वह अब छपकर तैयार हो गया है, अनेक टाइपोके सुन्दर अक्षरोंमें ३५ पांडके ऐसे उत्तम कागज पर छपा है जिसमें २५ प्रतिशत रूई पड़ी हुई है। मूलग्रन्थ अपन विषयका एक वेजोड़ ग्रन्थ है, जो समन्तभद्र-भारतीमें ही नहीं किन्तु समूचे जैनसाहित्य में अपना खास स्थान
और महत्व रखता है । भाष्य, मूलकी सीमाके भीतर रह कर, ग्रन्थके मर्म तथा पद-वाक्योंकी दृष्टिको भले प्रकार स्पष्ट किया गया है, जिससे यथार्थ ज्ञानके साथ पद-पद पर नवीनताका दर्शन होकर एक नए ही रसका श्राग्वादन होता चला जाता है और भाज्यको पढ़नेकी इच्छा बराबर बनी रहती है—मन कहीं भी ऊबता नहीं। २०० पृष्ठके इस भाप्यके साथ मुख्तारश्रीकी १२८ पृष्ठकी प्रस्तावना, विषय-सूचीके साथ, अपनी अलग ही छटाको लिए हुये है और पाठकोंके सामने खोज तथा विचारकी विपुल सामग्री प्रस्तुत करती हुई ग्रन्थके महत्वको ख्यापित करती है । यह ग्रंथ विद्यार्थियों तथा विद्वानों दोनोंके लिए समान रूपसे उपयोगी है, सम्यग्ज्ञान एवं विवेककी वृद्धि के साथ आचार-विचारको ऊँचा उठानेवाला और लोकमें सुख-शान्तिकी सच्ची प्रतिष्ठा करने वाला है इस ग्रन्थका प्राक्कथन डा. वासुदेवजी शरण अग्रवाल प्रो० हिंदू-विश्वविद्यालय बनारसने लिखा है और भूमिका डा० ए० एन० उपाध्ये कोल्हापुरने लिखी है । साथमें पूज्य क्षुल्लक श्री गणेशप्रपाद जी वणी की शुभ सम्मति भी है । इस तरह यह ग्रंथ बड़ा ही महत्वपूर्ण है। यदि आपने आर्डर नहीं दिया है तो शीघ्र दीजिए,अन्यथा पीछे पछताना पड़ेगा। लगभग ३५० पृष्ठके इस दलदार सुन्दर गजिन्द ग्रन्यकी न्योछावर ३) रुपए रखी गई है । सुन्दर जिम्द बंधी हुई है । गैटप चित्ताकर्षक है । पठनेच्छुको बथा पुस्तक विक्रेतामों (बुकसेलरों) को शीघ्र ही आर्डर देकर मंगवा लेना चाहिए।
मैनेजर 'वीरसेवामन्दिर-ग्रंथमाला' दि. जैन लालमन्दिर, चाँदनी चौक, देहली