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________________ निसीहिया या नशियां (पं० होरालालजी सिद्धान्तशास्त्री) जैन समाजको छोडकर अन्य किमी समाजमें 'निसीहिया' क्या वस्तु है और इसका प्रचार कबसे और क्यों प्रारम्भ या 'नशियां' नाम सुननेमें नहीं पाया और न जैन साहित्य- हा. का छोड़कर अन्य भारतीय साहित्यम हा यह नाम दम्बनका संन्यास. सल्लेखना या ममाधिमरण-पूर्वक मरने वाले मिलता है । इमसे विदित होता है कि यह जैन समाजकी जिका साधुके शरीरका अन्तिम संस्कार जिम स्थान पर किया जाता ही एक म्वास चीज़ है। था उस स्थानको निसीहिया कहा जाता था। जैसा कि आगे जैन शास्त्रोंके पालोडनमें ज्ञात होता है कि 'नशियां' मप्रमाण बतलाया जायगा-दिगम्बर-परम्पराके अति प्राचीन का मूलमें प्राकृत रूप 'णिसीहिया' या 'णिसीधिया' रहा है। ग्रन्थ भगवतीयाराधनामें निमोहियाका यही अर्थ किया गया इसका संस्कृत रूप कुछ प्राचार्योने निषीधिका और कुछने है। पीछे-पीछे यह 'निमीहिया' शब्द अनेक अर्थोमें प्रयुक्त निपिन्तिका दिया है। कहा-कहा पर निषाधिका मार निषा होने लगा. इसे भी आगे प्रगट किया जायगा। पभी देखने में श्राना है, पर वह बहुत प्राचीन नहीं मालूम देता। संस्कृत और कनडीके अनेक शिलालेम्बोंमें निमिधि, जैन शास्त्रों और शिलालेखोंकी छानबीन करने पर हमें निमिति, निपिधि, निपिदि, निम्मिन्ही. निमिधिग और निष्टिग इसका सबसे पुराना उल्लेग्व ग्वारवेलके शिलालेख मिलता रूप भी देखनेको मिलते हैं। प्राकृत 'णिमीहिया' का ही है, जो कि उदयगिरि पर अवस्थित है और जिसे कलिगअपभ्रंश होकर 'निमीहिया' बना और उसका परिवर्तित रूप देशाधिपति महाराज खारवेलने पाजसे लगभग २२०० वर्ष निम्पियास नमिया होकर श्राज नशियां व्यवहारमें बारहा है। पहले उन्कीणं कराया था। इस शिलालेखकी १४वीं पंत्रिमें मालवा, राजस्थान, उत्तर तथा दक्षिण भारतक अनेक """कुमारीपवते अरहते पम्बीणमंसतेहि काय-निमी. म्थानों पर निसिही या नमियां अाज भी पाई जाती हैं। यह दियाय.." और १५वीं पंक्रिमें..."अरहनिसोदियानगरस बाहिर किमी एक भागमें होती है। वहां किसी माधु, ममीपे पाभारे......' पाठ पाया है । यद्यपि खारवेलक यति या भट्टारक श्रादिका समाधिस्थान होता है, जहां पर शिलालेखका यह अंश अभी तक पूरी तौरसे पढ़ा नहीं जा कहीं चौकोर चबूतरा बना होता है, कहीं उम चबूतरे के चारों मका हे और अनेक स्थल अभी भी सन्दिग्ध हैं, तथापि कोनों पर चार खम्भे बड़े कर ऊपरको गुम्बजदार छसरी बनी उन दोनों पंक्रियाम 'निमीनिया' पाठ स्पष्ट रूपसे पढा जाता पाई जाती है और कहीं-कहीं छह-पाल या आठपालदार चबू- है जो कि निमीहियाका ही रूपान्तर है। नरे पर छह या पाठ म्वम्भे वडे कर उस पर गोल गुम्बज निसीहिया' शब्दके अनेक उल्लेख विभिन्न अर्थोमें दि. बनी हुई देखी जाती है। इस समाधि स्थान पर कहीं चरण- श्व० श्रागामें पाये जाते हैं । श्वे० प्राचारांग सूत्र (.., चिन्ह, कहीं चरण-पादुका और कहीं मांथिया बना हुश्रा २) निमीहिया' की संस्कृन छाया 'निशीथिका' कर उसका दृष्टिगोचर होता है। कहीं कहीं इन उपयुक बातोंमेंसे किमी अर्थ स्वाध्यायभूमि और भगवतीसूत्र (१४-१०) में अल्पएकके साथ पीछेक लोगोंने जिन-मन्दिर भी बनवा दिए हैं कालकं लिए गृहीत स्थान किया गया है । समवायांगसूत्रमें और अपने सभीतके लिए बगीचा, कुआ, बावडी एवं धर्म- 'निमीहिया' की संस्कृत छाया 'नषेधिकी' कर उसका अर्थ शाला आदि भी बना लिए हैं। दक्षिण प्रान्तकी अनेक म्वा यायभूमि, प्रनिक्रमणसूत्रमें पाप क्रियाका त्याग, स्थानांगनिसिदियों पर शिलालेख भी पाये जाने हैं। जिनमें ममाधि- सूत्रमें व्यापागन्तरक निषेधरूप समाचारी प्राचार, वमुदेवमरण करने वाले महा पुरुषोंके जीवनका बहुत कुछ परिचय हिण्डिमें मुकि, मोक्ष, स्मशानभूमि, तीर्थकर या सामान्य लिखा मिलता है। उत्तर प्रान्तकं देवगढ़ क्षेत्र पर भी ऐसी केवलीका निर्वाण-म्थान, स्तूप और समाधि अर्थ किया गया शिलालेख-युक्त निपीधिकाएँ आज भी विद्यमान हैं। इतना है। श्रावश्यकचूर्णिमें शरीर, वमतिका-माधुओंके रहनका होने पर भी आश्चर्यकी बात है कि हम लोग अभी तक स्थान और स्थरिडल अर्थात निर्जीव भूमि अर्थ किया इतना भी नहीं जान सके हैं कि यह निसीहिया या नशियाँ गया है।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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