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________________ ४०] अनेकान्त मयिलमनगर उसीके निकट बसाया गया था ऐसा मालूम सैनथामी हाई रोडका था। ३८ वर्ष हुए उस स्थानसे धातुकी होता है और वर्तमान मयिलापुर वही दूसरा नगर है। एक जैन मूर्ति उन्हें प्राप्त हुई थी, किन्तु कुछ ही समय बाद मधु प्रामनी स्ट्रीट और अप्पुमुडाली स्ट्रीट (मविलापुर) वह चोरी चली गई। के सन्धिस्थलमें नारियल वृत्तोंके एक कुंजमें पादडी एस. इन उपयुक्र प्रमाणोंमें यह भली भांनि सिद्ध हो जाता हास्टेनको सन् १९३१ में भूगर्भसे दो दिगम्बर जैन है कि मयिलापुरमें कई जैन मन्दिर थे। मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। वे दोनों मूर्तियाँ अब श्री एस. धनपालकं गृह नं. १८ चित्राकुलम् इष्टवर स्ट्रीट (मयिला मद्रासके निकट कांजीवरम् एक अति प्राचीन नगर पुर) में हैं (चित्र) इनमें एक मूर्ति ४१ इंच ऊंची है जिसके पैर है। पल्लव-नरेशोंकी यह राजधानी थी। चतुर्थ शताब्दीसे मंडित हैं। वह सातवें तीर्थकर सुपारर्वनाथ की है । दूसरी अष्टम शताब्दी तक दक्षिण भारतके इस प्रदेशमें पल्लवोंका ४३ इंच ऊँची छठे तीर्थकर पद्मप्रभ की है। दोनों ही 10वीं प्रचुर प्राबल्य था । कांजीवरम् 'मन्दिरोंका नगर' के नामसे प्रमिन्द्र था और इसमे जैनोंका सम्बन्ध अति प्राचीन कालसे ग्यारहवीं शताब्दी काल की है। इससे भी यह अनुमान होता है कि दशवीं शताब्दीमें उस स्थान पर कोई जैन मन्दिर रहा है। इस नगरके तीन प्रधान विभाग थे- लघुकांजीवरम् (विष्णुकांची), वृहत्कांजीवरम् (शिवकांची) और था। (स-ग्रन्थ २) पिल्लयि पलयम् ( जिनकांची)जो वस्त्रवपनका विशाल इस प्रकार हमें मयिलापुरमें १५वीं शताब्दीके पूर्व केन्द्र है। कांचीके निकट पश्चिमकी ओर निरूपट्टिकुलम् दो जैनमन्दिरोंके अस्तित्वका पता चलता है। इनके अतिरिक ____गाँव है जो एक समयके प्रसिद्ध जैन केन्द्रका स्मारक है। एक तीमरे मन्दिरका भी पता लगा है वह वर्तमानके यहाँ दो भव्य जैन मन्दिर है-एक महावीर स्वामीका. दूसरा सैन्टथामी भारफनेज (अनाथालय) की भूमि पर था । वहाँ से ऋषभदेवका । प्राचीन समयमें कांजीवरम् जैन और हिन्दुओं कुछ वर्ष हुए एक मस्तक-विहीन निगम्बरजैन मूर्ति प्राप्त की उच्च शिक्षाओंका केन्द्र था। इसके सम्बन्धमें हम पूर्ण हुई थी जो १८x१३॥ इंच है वह मूर्ति सन् १९२१ से विवरण दृसरे लेखमें लिखेंगे। अभी तक विशप (पादड़ी) भवन (मयिलापुर) में है। चित्र । (म-ग्रन्थ ४, ५) इसी प्रकार पल्लव कालमें मामल्लपुरम् (महाबल्लि एक ममय पुर्तगाल-गवर्नर (शामक) का पुराना पुरम् ) संस्कृति और धर्म जागृतिका केन्द्र था। महाबल्लिप्रासाद जहाँ था वहांकी सैनथामी अनाथालय की पुरमका एक प्राचान जनश्रुतिस यह निश्चयतः जात हाता ह अब भोजनशाला है। उसके ठीक पीछे की भूमिसे कि यहांके अधिवासी कुरुम्ब जातिके लोग जैनधर्मानुयायी गत शताब्दीमें एक लेख युक्र श्वेत पाषाणकी जैनमूर्ति प्राप्त य। थे। इस प्राचीन नगरके जैन ऐतिह्य पर भी मैं अनुसन्धान हुई थी। जब यह जायदाद फ्रेनसिस्कन मिशनरीज ऑफ कर रहा हू। मैरीके अधिकारमें श्राई तब उन्होंने बह मूर्ति एक गड्ढे में इसी प्रकार मद्रासके निकटके कई अन्य स्थानोंके दर्शन डाल दी थी। सन् १९२१ में फादर हास्टेनने इस मूर्तिके भी मैं कर पाया हूं जैसे-अकलंक वमति, पारपाक,म् असंअनुसन्धानके लिये उस स्थलको दो दो सप्ताह तक खनन कर गलम् और यहांके जैन मन्दिर और मृतिर्यो फोटो भी मैंने वाया जिसमें एक सौ रुपये व्यय हुए और धनाभावके कारण लिये है। समय समय पर इनके सम्बन्धमें भी सचित्र लेख उस खुदाईको बन्द करना पड़ा। प्रकट किये जायेंगे। सैनथामीचके निकट जहाँहरोंका स्कूल है वह नोट-मेरे लेखोंमें जो चित्र प्रगट किए जाते हैं वे सब मकान पहले श्री धनकोटिराज इंजीनियर विक्टोरिया वर्क्स, म्बाक 'वीरशासनसंघ कलाकत्ताके सौजन्यसे प्राप्त होते हैं।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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