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________________ किरण । मद्रास पार ममिलापुरका जैन पुरातत्त्व सेन्ट थामी स्कूलके मुख्य द्वार पर ले जाने वाली अंतिम कुल पत्रसंख्या २३ है। प्रत्येक पत्र ४३३ इंच है। सोपानक दक्षिणकी भोरस एक खंडित शिला-लेख कुछ और प्रत्येक पत्रमें ७ पंक्रियां हैं। इस संग्रह प्रथके ६वें समय पूर्व प्राप्त हुया था। यह प्रस्तर खण्ड ३६x२ इंच- पत्र पर एक 'नेमि नाथाप्टक' संस्कृत स्तोत्र है उसमें का है। और इस पर तामिलभाषामें निम्न लेख अङ्कित (देखो, परिशिष्ट पृ.४१) इन मयिलापुरके नेमि-नाथका है ..( देखो चित्र ) और उस मन्दिरका सुन्दर वर्णन किया गया है। (प्रथम पक्ति)........"उटपड नेमिनाथ स्वामिक (कु) इस स्तोत्रमें मन्दिरकी स्थिति भीममागरके मध्य लिखी है (द्वितीय पंक्ति ........... कडुत्तोम इवै पलन्दी परा इससे यह विदित होता है कि समुद्रके उस भाग (बंगोप अनुवादक......"(इन सबके) सहित हम नेमिनाथ स्वामी सागर) का नाम भीमसागर था । किन्तु यह अभी निश्चित को प्रदान करते हैं। यह हस्ताक्षर हैं) पलन्दीपराके। रूपसे नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इसकी पुष्टिके लिये दिखो ग्रं० ४ और १) अन्य प्रमाणों के अनुसन्धानको आवश्यकता है। या यह भी इससे स्पष्ट विदित होता है कि मयिलापुरमें नेमिनाथ हो सकता है कि वह मन्दिर भीमसागर नामके किसी विशाल स्वामीका मन्दिर था और शिलालेखकी प्राप्ति स्थानसे यह जलाशयके मध्यमें स्थित रहा हो, जैसाकि पावापुर (विहार) निश्चितरूपसे मालूम होता है कि ठीक इसी स्थानके श्राम- में भगवान महावीरका जजमन्दिर (निर्वाणक्षेत्र) है। और पास कहीं गचीन जैन मन्दिर था। इसकी पुष्टि करने वाले कारकलके निकट वरंगलका जैनमन्दिर । इम्पीरियल गजेटियर अनेक साहित्यिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं।। के जिल्द xvi में एक नक्शा है जिसमें कपलेश्वर स्वामी १३ वीं शताब्दी एक जैनकवि अविरोथि अहवरकी मन्दिरके पास भीमनपेट है। वहाँ एक बड़ा तलाब भी है। तामिलके १०३ पद्योंकी नेमिनाथकी स्तुति 'थिरुनु अन्दथि' क्या भीममागर यहाँ था? इस प्रश्न पर भी विचार करना है। में उनके मयिलापुर स्थित मन्दिरका प्रथम पयमें ही उल्लेख इस समय पश्चिम 'टिम्बिवनम्' ताल्लुकमें 'चित्तामूर' किया है। इस कविने 'नेमिनाथाप्टक' नामके एक संस्कृत ग्राममें नेमिनाथका एक मन्दिर है। जनश्रुति है कि नेमिस्तोत्रकी भी रचना की है। नाथ सामीकी वह मूर्ति मयिलापुरसे लाकर यहाँ विराजमान 2वीं शताब्दीके एक दूसरे ग्रन्थकार गुणवीर पंडिनने की गई थी, क्योंकि समुद्रक बढ़ानेसे मन्दिर जलमग्न हो 'सिन्नुल' नामक अपने तामिल व्याकरणको मयिलापुरके चला था। नेमिनाथको समर्पित करते हुए उसका नाम 'नेमिनाथम्' रखा दक्षिण भारकाट जिलंका (दिगम्बर ) जैनौका मुख्य था। 'उधीसिथेवर' नामके एक जैन मुनिने अपने ग्रन्थ स्थान 'चित्तामर' (मितामूर) है। वहां एक भव्य जन 'थिरकवंबहम्', में मयिलापुरका उल्लेख किया है। मन्दिर,है, और तामिल जैन प्रान्तके भट्टारकजीका मठ भी इस मयिलापुरक नेमिनाथको 'मयिलयिनाथ' अर्थात् है। मन्दिरके उत्तरभागमें नेमिनाथस्वामीकी वह मनोज्ञमथिलापुरके नाथ भी कहते हैं। तामिलभापाके अतिप्राचीन मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति मयिलापुर से वहां लाई गई और सुप्रसिद्ध व्याकरण 'नन्नुल' पर एक टीका है जो दक्षिण थी । इस घटनाको पुष्टि (4० ३,६) से भी होती है। भारतमें आज भी प्रति सम्मानाई है। उसके रचयिता मयि ग्रन्थ नं. ३, से मालूम होता है कि एक बार लापुरके नेमिनाथ स्वामीके बड़े भक्र थे। उन्होंने भनिवश किसी माधुको स्वप्न हुआ कि वह नगर (मयित्नापुर) शीघ्र अपना नाम ही 'मयिलयिनाथ' रख लिया था। समुद्रसे आच्छा हो जायगा । प्रस्तु, यहाँकी मूर्तियोंको हटाअंग्रेजी जैनगजटके भूतपूर्व सम्पादक मद्रास निवासी सा कर समुद्रसे कुछ दूर मयिलमनगरमें ले आये और वहाँ श्री सी. एस. मल्लिनाथके पास तामिल लिपिमें लिखा अनेक मन्दिरोंका निर्माण हुआ। कुछ कालबाद दूसरी वार हुमा एक प्राचीन ताडपत्रोंका गुटका (संग्रहमन्थ) है जिसकी सावधान वाणी हुई कि तीन दिनके भीतर मयिलमनार ® नोट-प्रेसको असावधानीसे यह शिलालेख उल्टा ___ जल-मग्न हो जायेगा, इसलिए जैनों द्वारा वे मूर्तियों और छप गया है। भी दूर स्थानान्तरित कर दी गई। मालूम होता है कि इसी x संस्कृत स्थविर शब्दके प्राकृतस्प थविर और के होते हैं समय नेमिनाथकी वह मूर्ति चित्तामूरमें पधराई गई थी। जिसका अपभ्रंश थेवर है। स्थविर वृद्ध साधुको कहने हैं। प्रथम प्राचीन नगर मयिलापुरके डूब जाने के बाद यह द्वितीय
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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