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________________ वीरशासन जयन्ती महोत्सव आज ता. ५ जुलाई बुधवारके दिन 'वीरशासन करोड़ों व्यकि अहिंयाका तन-मन-धनमे प्रचार करते है जयन्ती का महोत्सव वीरसेवा-मन्दिरको प्रोग्से लाल- परन्तु खेद है कि हम उसके अनुयायी होकर भी उपके मन्दिर जीके विशाल हालमें सोल्माह मनाया गया। पांशिक रूपको भी यदि अपने जीवन में नहीं उतारते । सुमेरचन्दजीके मंगलगानके पश्चात प्रातःकालका कार्य महावीरके गुणोंका अपने जीवनमें अनुवर्तन करना ही सच्ची मुनि श्री देशभूषणजीकी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इस भाक है । आदश मागका अनुका भक्रि है। आदर्श मार्गका अनुकरण होने पर ही आत्मउन्सवको सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जिस मृत्लागमका कल्याण संभव है। अनन्तर ६० अजितकुमारजी शास्त्रीने भगवान महावीरकी वाणीसे साक्षान सम्बन्ध है उपका वीरशासनके ध्येयका विवेचन करते हुए उसकी महत्ता पर मन पाठ पंडित हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीने सम्पन्न प्रकाश डाला और पं० दरबारीलालजी न्यायाचार्यने अपने किया। शास्त्रीजीने मुलागमके विषयका परिचय कराने हए भाषणमें बीरशासन और भाषणमें वीरशासन और अपने कर्तव्यकी ओर निर्देश बनलाया कि कर्मवन्धनका मूल कारण कपाय है और करते हुए कहा कि वीरसेवामन्दिर जैन समाजकी मान्य कषाय मुकि हो मोक्ष है। बाद में 40 जुगलकिशोरजी और संस्था है। वीरसेवामन्दिरने जैन साहित्य और इतिबाबू, छोटेलालजीने उस पर अच्छा प्राश डाला और हासकी महत्वपूर्ण शोध (खाज) की है । जिन प्राचार्योका मुनिजीने अपने भाषण में वीर शासनकी महना बतलाई। हम नाम तक भी नहीं जानते थे, उपके प्रयत्नसे उन्हें भी शामको ८ बजेसे शाम्त्र सभाकं बाद उत्सवका कार्य हम जानने लगे हैं । वीर शासन जयन्तीको उसके मंस्थापक ला. रघुवीरसिंहजी जैनावाचकी अध्यक्षतामें सम्पन्न मुग्य्तार साहबने ढढ निकाला और उसका उत्सव सबसे हुधा । सबसे पहले मैंने वीरशासन जयन्तीका इनिहाम प्रथम प्रथम वीरसेवामन्दिरने ही मनाया । अत: हमारा कर्तव्य है बतलाते हुए उसकी महत्ता पर जोर दिया। अनन्तर कि हम वारसेवा मान्दरक पु मुग्तार पाहबने वीर शापनकी महानता और गम्भीरताका अर्थकी सहायता द्वारा उसे दृढ बनायें। अनन्तर पं० विवेचन करते हुए क्रिमार्गके आदर्शका विवेचन किया हीरालालजीने वीरशामनकी महत्ताका प्रतिपादन करते हुए और बतलाया कि देवके बाद हमें शाम्बकी भकि करनी धारके सिद्धान्तों पर अमल करनेकी पारणा की। चाहिये। अाज हमें शात्र ही मद्ज्ञान प्राप्त कराते हैं । पश्चात् अध्यक्ष महोदयने ५० जुगलकिशोरजी मुख्तार परन्तु हम शास्त्रोंको केवल दृग्से हाथ जोड़ देते हैं, परन्तु और बाबू छोटेलालजीकी प्रशंसा करते हुए उनका श्राभार पच्ची भक्रि नहीं करते, और न उनके उद्धार एवं प्रचारका व्यक्त किया । और कहा कि बाबू छोटेलालजीने ही प्रयत्न करते हैं । इस तरह भक्विक प्रादर्श मार्गसे हम वीर सेवामन्दिर के लिये चालीस हजारकी जमीन खरीद दूर हैं। अत: हमारा कर्तव्य है कि हम उनका अध्ययन कर कर दी और अब ॥ महोन से वे दिल्ली में ठहर कर सेवासदज्ञान प्राप्त करें। इसके बाद बाबू छोटेलाल जी कलकत्ताने कार्य कर रहे हैं, उनकी यह ममाज-सेवा समाज लिये अपने भाषण में शास्त्रज्ञानकी महत्ता पर प्रकाश डालते हए अनुकरणीय है। भकिका आदर्श मार्ग बनलाया और कहा कि विदेशोंमें -~-परमानन्द जैन । स्वास्थ्य कामना वीरसेवामन्दिरके अध्यक्ष श्रीमान् बाबू छोटेलालजी कलकत्ता श्रवण बेल्गोलकी मीटिंगसे बैंगलोर होते हुए वापिस मद्रास कार्यवश गए । वहाँ पर परिश्रमादिके कारण आप ज्वारादि रोगमे पीड़ित हो गए हैं। मेरी भगवान महावीर से प्रार्थना है कि बाबू छोटेलालजी शीघ्र ही आरोग्य लाभकर दीर्घायु प्राप्त करें। -परमानन्द
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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