SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ३] निरतिवादी समता [७७ कारण किसीकी कीमत मूल्यसे अधिक न होने पाये और प्रति तरह अनुचित है। वह अन्यायपूर्ण भी है और अग्यावहासुलभता के कारण किसीकी कीमत मूल्पसे गिरने न पाये। रिक भी। मानिसको ६-प्रतिविषमता रोकनेके लिये प्रारम्भके दो नियम बताये गये पाठ कारणोंमें से प्रारम्भके सात कारणों के पाले जाने चाहिये, साथ ही विनिमय क्षेत्र में अन्तरकी सीमा आधारपर करना पड़ता है और कीमतके निर्णयमें दुर्लभता निश्चित कर देना चाहिये । हो ! उसमें देशकालका विचार सुलभता पादमीकी गरजका भी असर पड़ जाता है। जरूर करना चाहिये। साधारणतः भारतकी वर्तमान परिस्थिति मूरूपमें उसकी सामग्रीका विचार है. कीमतमें सिर्फ उसके के अनुसार यह अन्तर एक और पचाससे अधिक न होना बाजारू विनिमयका विचार है। उदाहरणके लिये उपयोगिता चाहिए। यदि साधारण चपरासीको ३०) मासिक मिलता की रप्टिसे पानी काफी मल्यवान है पर सलभताके कारण है तो प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपतिको इससे पचासगुणे १५००) उसकी कीमत कुछ नहीं है। सोने चांदीकी अपेक्षा अक्ष से अधिक न मिलना चाहिए। अधिक मूल्यवान है पर दुर्लभताके कारण सोने चाँदीकी -उपार्जित सम्पत्तिके संग्रह करने पर अंकुश रहना कीमत ज़्यादा है। कहीं-कहीं मूल्य और कीमतका अन्तर चाहिए । जीके रूपमें अधिक सम्पत्ति न रहना चाहिए, यों भी समझा जा सकता है कि मूल्य बताता है कि इसकी भोगोपभोगकी सामग्री के रूपमें रहना चाहिए। जो भादमी विनिमयकी मात्रा कितनी होना चाहिए, कीमत बताती है रुपया आदि जोड़ता चला जाता है वह भोगोपभोगकी चीजें कि इसकी विनिमय की मात्रा कितनी है। चाहिये और है कम खरीदता है इससे उन चीजोंको खपत घट जाती है का फर्क भी कहीं कहीं इन दोनोंका फर्क बन जाता है। और खपत घटजानेसे उन चीजों को तैयार करने वालोंमें मनुप्येतर वस्तुओंमें यह फर्क थोड़ी बहुत मात्रामें बना रहे बेकारी बढ़ जाती है । इसलिए व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए तो बना रहे पर मनुष्यके बारेमें यह अन्तर न रहना चाहिये। कि लोग जो पायें उसे या उसका अधिकांश भोग डालें। समाजको शिक्षण तथा बाजारमें सामञ्जस्य रखना चाहिये। अमुक हिस्सा संकटके समयके लिए सुरक्षित रक्खें, जिससे असाधारण महामानवों की बात दूसरी है क्योंकि आर्थिक संकटमें उधार न लेना पड़े। दृष्टिसे उनकी ठीक कीमत प्रायः चुकाई नहीं जाती। फिर भी यदि कोई पूजीके रूपमें या रुपयाके रूपमें अधिक संग्रह करले तो उसका फर्ज है कि वह अपनी बचतका खैर ! ये पाठ कारण हैं जिनसे पारिश्रमिक या पुरस्कार बहुभाग सार्वजनिक सेवाके क्षेत्रमें दान कर जाय या मृत्युकर अधिक देना चाहिये। द्वारा उससे ले लिया जाय । एक ही कारणसे विनिमयकी दर बढ़ जाती है। जहाँ इस नियमसे अतिविषमतापर काफी अंकुश पड़ेगा। जितने अधिक कारण होंगे वहां विनिमयकी दर उतनी ही अतिसमताके पासमानी गीत गाना स्वरपर वञ्चनाके अधिक होगी। यदि अतिसमताके कारण इनकी विशेष सिवाय कुछ नहीं है और अतिविषमता चालू रखना इन्सान कीमत न चुकाई जायगी तो इन विशेषताओंका नाश होगा को हैवान और शैतान मेंबांट देना है, इसलिए निरतिवादी और मिलना अशक्य होगा। इस प्रकार अतिसमता हर समताका हो प्रचार होना चाहिए। -संगम से मेरीमावनाका नया संस्करण 'मेरीभावना' एक राष्ट्रीय कविता है जिसका पाठ करना प्रत्येक व्यक्तिको अपने मानव जीवनको ऊँचा उठाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। वीरसेवामन्दिरसे उसका अभी हालमें संशोधित नया संस्करण प्रकाशित हुआ है। जो अच्छे कागज पर छपा है। बांटने या थोक खरीदने वालोंको ३२) सैकड़ाके हिसाबसे दिया जाता है। एक प्रतिका मूल्य एक पाना है। आर्डर देकर अनुग्रहीत करें। मैनेजर-वीरसेवा-मन्दिर ग्रंथमाला दरियागंज, दिल्ली
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy