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भगवान ऋषभदेवके अमर स्मारक नंदिसंघकी गुर्वावली में 'अभयवट' का उल्लेख कृष्णा चतुर्दशीके दिन ही शिवरात्रिका उल्लेख पाया इस प्रकारसे किया गया है:
'श्रीसम्मेदगिरि-चम्पापुरी-उर्जयन्तगिरि-अक्षयवट- उत्तर और दक्षिण भारतवालोंकी यह मास-विभिआदीश्वरदीक्षासर्वसिद्धक्षेत्रकृतयात्राणां।'
नता केवल कृष्णपक्षमें ही रहता है, किन्तु शुक्लपक्ष ___इस उल्लेखसे सिद्ध है कि 'अक्षयवट' भी जैनि- तो दोनोंके मतानुसार एक ही होता है। जब उत्तर योंमें तीर्थस्थानके रूप में प्रसिद्ध रहा है।
भारतमें फाल्गुण कृष्णपक्ष चालू होगा, तब दक्षिण प्रयाग
भारतमें वह माघ कृष्णपक्ष कहलाएगा । जैन पुराणोंभ० ऋषभदेवका प्रथम समवसरण इसी पुरिम
के खास कर आदिपुराणके रचयिता आचार्य जिनसेन तालपुरके उसी उद्यान में रचा गया । इन्द्रने असंख्य
दक्षिणके ही थे, अतः उनके ही द्वारा लिखी गई माघ देवी-देवताओंके साथ तथा भरतराजने सहस्त्रों राजाओं
कृष्णा चतुदेशी उत्तरभारतवालोंके लिए फाल्गुणऔर लाखों मनुष्योंके साथ आकर भगवानके ज्ञान
कृष्णा चतुर्दशी ही हो जाती है। कल्याणकी बड़ी ठाठ-बाटसे पूजा-अर्चा की । इस
स्वयं इस मासवेषम्यका समन्वय हिन्दू पुराणों में महान् पूजन रूप प्रकृष्ट यागमे देव और मनुष्योंने ही।
भी इसी प्रकार किया है। -कालमाधवीय नागरखंडनहीं, पशु-पक्षियों तक ने भी भाग लिया था और में लिखा है:सभीने अपनी-अपनी शक्तिके अनुसार महती भक्तिसे माघमासस्य शेषे या प्रथमे फान्गुणस्य च । पूजा-अर्चा की थी। इस प्रकृष्ट या सर्वोत्कृष्ट याग होनेके कृष्णा चतुर्दशी सा तु शिवरात्रिः प्रकीर्तिता ।। कारण तभीसे पुरिमतालपुर 'प्रयाग' के नामसे प्रसिद्ध
अर्थात-दक्षिण वालोंके माघ मासके उत्तरपक्षकी हुआ। 'याग' नाम पूजनका है । जैन मान्यताके अनु- और उत्तर वालोंके फाल्गुण मासके प्रथमपक्षकी कृष्णा सार इन्द्रके द्वारा की जाने वालो 'इन्द्रध्वज' पूजन ही चतर्दशी शिवरात्रि मानी गई है। सबसे बड़ी मानी जाती है।
इस प्रकार अक्षय तृतीया भ० ऋपभदेवके दीक्षाशिवरात्रि
तपकल्याणककी, अक्षयवट ज्ञानकल्याणकका और शिवकेवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् भ० ऋषभदेव- रात्रि निर्वाणकल्याणककी अमर स्मारक है। ने आर्यावर्तक सर्व देशों में विहार कर धर्मका प्रसार शिवजी और उनका वाहन नन्दी बैलकिया और जीवन के अन्त में अष्टापद पहुंचे, जिसे कि आज बैलास पर्वत कहते हैं । वहां योग-निरोध कर .
हिन्दुओंने जिन तेतीस कोटि देवताओंको माना आपने माघ कृष्ण चतुर्दशीके दिन शिव (मोक्ष) प्राप्त है उनमें ऐतिहासिक दृष्टिसे शिवजीको सबसे प्राचीन किया । अष्टापद या कैलाससे भगवानने जिस दिन
या आदिदेव माना जाता है । उनका वाहन नन्दी बैल शिव प्राप्त किया उस दिन सर्व साध-संघने दिनको और निवास कैलाश पर्वत माना जाता है। साथ ही उपवास और रात्रिको जागरण करके शिवकी आराधना
शिवजीका नग्नम्वरूप भी हिन्दुपुराणों में बताया गया की, इस कारण उसी दिनसे यह तिथि भी 'शिवरात्रि' है। जैन मान्यताके अनुसार ऋषभदेव इस युगके के नामसे प्रसिद्ध हई। उत्तरप्रान्त में शिवरात्रिका पर्व आदितीर्थकर थे और उनका वृपभ (बैल) चिन्ह था। फाल्गुण कृष्णा १४ को माना जाता है, इसका कारण
वे जिनदीक्षा लेनेके पश्चात आजीवन नग्न रहे और उत्तरी और दक्षिणी देशांके पंचांगोंमें एक मौलिक
अन्तमें कैलाश पर्वत शिव प्राप्त किया। क्या ये सब भेद है। उत्तर भारत वाले मासका प्रारम्भ कृष्ण माधे कृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। पक्षसे मानते हैं, पर दक्षिण भारत वाले शुक्लपक्षसे शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः ॥ मासका प्रारम्भ मानते हैं और प्राचीन मान्यता भी तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरानिवते तिथि: ॥ यही है। यही कारण है कि कई हिन्दू शास्त्रों में माघ
(ईशानसंहिता)