SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अनेकान्त [वर्ष १३ जीका प्राध्यारिस्पार्मिक भाषण हुआ। और भगवान जैनियोंको यह सभा श्री धर्मसाम्राज्यजी और उनकी धर्ममहावीर और जिनवाणीकी जयध्वनि पूर्वक सभा समाप्त पस्नीके इस शुभ संकल्पके लिये उन्हें हार्दिक धन्यवाद भेंट -परमानन्द जैन करती है और श्रीधर्मसाम्राज्यजोने वृद्धावस्था में दोबार उक्त तीनों प्रस्ताव निम्न प्रकार है इतनी लम्बी यात्रा करके जो कष्ट उठाया है तथा वीरसेवाप्रस्ताव नं.१ मन्दिरको इस ग्रंथराजको Negative and Positive देहली जैन समाजको यह सभा मूडबिद्रीके पंचों और दोनों फिल्म प्रदान की है उसके लिये उनके सेवामय सत्लाश्री भट्टारक चारुकीर्तिजीको हार्दिक धन्यवाद देती है, इसकी प्रशंसा करती हुई उन्हें विशेष धन्यवाद अर्पण करती जिनक समयानुकूल उदार विचारके फलस्वरूप श्री धवल वाली है और साथ ही आशा करती है कि वे भविष्यमें दूसरे ग्रन्थराजजी देहली पा सके, उनका जीर्णोद्धार हो सका। जयधवलादि सिद्धान्त ग्रंथोंको भी शीघ्र देहली भिजवाकर और देहली वासियोंको उनके पावन दर्शनोंकी प्राप्ति हो उनके जीर्णोद्धार जैसे पुण्यकार्यमें वीरसेवामन्दिर एवं दिल्ली सकी। साथ ही, यह निवेदन भी करती है कि वे दूसरे जैन समाजको हाथ बटानेका अवसर प्रदान करेंगे। प्राचीन जयधवलादि सिद्धांत ग्रंथोंकी जीर्ण-शीर्ण प्रतियोंको प्रस्तावक-जुगलकिशोर मुख्तार भी शीघ्र दिल्ली भिजवाकर उनका जीर्णोद्धा करानेकी कृपा समर्थक-ला. महावीरप्रसाद वैद्य करें। श्रीधवलकी जीर्णोद्धारित प्रतिको देख कर बड़ा हर्ष अनुमोदक-श्री वनवारीलाल होता है कि इस जीर्णोद्धार कार्यसे ग्रन्थराजकी आयु बढ प्रस्ताव नं. ३ गई है और वे अब सैकड़ों वर्ष नक हमें अपने दर्शनोंसे श्रीमान् डाक्टर भास्कर आनन्द सालेतूर डायरेक्टर अनुप्राणित करते रहेंगे। Natial Archives of India देहलीने भी श्रीधवल प्रस्तावक-ला. प्रेमचन्द्र जी अंधराजकी इस अति प्राचीन बहुमूल्य प्रतिका जीर्णोद्धार समर्थक-ला० जुगलकिशोरकागजी अध्यक्ष बहुत ही सावधानीसे निजी तत्त्वावधानमें सम्पन्न कराया है। अनुमोदक-पं. अजितकुमार, पं० मक्खनलालजी प्रचारक अतः दहलीक जैनियोंकी यह सभा डा. साहबको इस पवित्र प्रस्ताव नं. २ सेवा कार्यके लिये हार्दिक धन्यवाद देती है और उनसे निवेदन ___दिल्ली जैन समाजके अनेक महानुभावों की यह इच्छा करती है कि वे सिद्धांत ग्रन्थोंकी अन्य प्राचीन प्रतियोंका भी थी कि श्री धवलग्रंथराजके जीर्णोद्धारमें जो बर्च हा है जीर्णोद्धार इसी उत्तमताके साथ सम्पस करायें। साथ ही, उसको वे स्वयं उठा। परन्तु मूडबिद्री गुरुगलवस्तिक ट्रस्टी भारत सरकारका भी ऐसे उपयोगी विभागके लिये धन्यवाद श्रीधर्मसाम्राज्यजीका यह दृढ़ संकल्प मालूम करके कि करती है। इस खचको वे अपनी स्वर्गीया धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीमती प्रस्तावक-ला० रघुवीरसिह जैना वाच क. गट्टे मारकी प्रबल इच्छाके अनुसार स्वयं उठा रहे हैं, उन्हें समर्थक-पं० दरबारीलाल कोठिया अपनी इच्छानोंका संवरण करना पड़ा । अत: दिल्लीके अनुमोदक-पं० मन्नूलाल, पं० सुमेरचंद, पं०मक्खनलाल जेनग्रन्थ प्रशस्तिसंग्रह __ यह ग्रन्थ १७१ अप्रकाशित ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंको लिए हुये है। ये प्रशस्तियाँ हस्तलिखित ग्रन्थों पर नोट कर संशोधनके साथ प्रकाशित की गई है। पं० परमानन्दजी शास्त्रीकी ११३ पृष्ठकी खोजपूर्ण महत्त्वकी प्रस्तावनासे अलंकृत है, जिसमें १.४ विद्वानों, प्राचार्यों और भट्टारकों तथा उनकी प्रकाशित रचनाओं का परिचय दिया गया है जो रिसर्चस्कालरों और इतिसंशोधकोंके लिये बहुत उपयोगी है। मून्य ५) रुपया है। मैनेजर वीरसेवा-मन्दिर, दि. जैन लालमन्दिर, चाँदनी चौक, दिल्ली ।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy