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________________ श्री धवलग्रन्थराजके दर्शनोंका सफल आयोजन श्री दि. जेन बाल मन्दिरमें ता०२१ रविवारके दिन श्रीमती लचमीमती राणीके सुरत संकल्पानुसार उठाया है जीर्णोद्धारको प्राप्त हुए श्री धवल ग्रन्थके दर्शनोंका वीर मेवा- जिसके लिये वे धन्यवादके पात्र हैं। मन्दिरकी पोरसे प्रायोजन किया गया था। ग्रन्थराजको रात्रिको ८ बजे वीर सेवामन्दिरकी पोरसे बाल मन्दिर लालमन्दिरके विशाल हालमें शोकेशके अन्दर चांदीकी जोके विशाल हालमें एक सभाका प्रायोजन किया गया, जो चौकियों पर विराजमान किया गया था। और प्रन्थका कछ ला० जुगलकिशारजी कागजी फर्म लामीमल धर्मदास भाग चांदीकी सुन्दर वेदामें खचित कमल पर रक्खे हए चावड़ी बाजार दिल्लीकी अध्यक्षतामें सानंद सम्पन्न हुश्रा । प्रथम रजतमय सिंहासन पर विराजमान किया था। इस ग्रन्थराजके ही वयोवृद्ध साहित्य तपस्वी पं० जुगलकिशोरजीने षट्खण्डादर्शनों के लिए जनता उमड़ पडी,-प्रातःकालसे लेकर गमकी उत्पत्ति और धवलाटीकाके निर्माणका इतिवृत्त रात्रिको ८ बजे तक जनताने बडी भक्ति और श्रद्धाके साथ बतलाते हुये ग्रन्थराजकी महत्ता पर प्रकाश डाला और दूसरे दर्शन किये और समारोहके साथ पूजा भी की। महासन्धादि सिद्धान्त ग्रन्थोंके समुद्धारकी भावना व्यक्त की। धवल ग्रन्थराजकी यह प्राचीन ताडपत्रीय प्रनि नुलु या पश्चात पं. अजितकुमारजी शास्त्रीने भी उक्त सिद्धान्त तौलब देशमें स्थित मूडबिद्री नगरके गुरु गल सिद्धान्त- ग्रन्थको महत्ताका उल्लेख करते हुए उनके समुदार कार्यको वस्ति नामक जिन मन्दिरमें हजार वर्षक, करीब समय- श्रावश्यक और प्रशंसनीय बतलाया। अनंतर वयोवृद्ध से सुरक्षित रही है। इसके साथ ही उक्त वस्तिमें कपाय पं० मक्खनलाल जी प्रचारकने भी प्रन्योंके जीर्णोद्धाके जरूरी प्राभृतको टोका 'जयधवला' और महाबन्ध भी सत्कर्म प्रकट करते हुए धवलग्रन्थके जीर्णोद्धार कार्यको प्रशंसा की। पंजिकाके साथ सुरक्षित रहे हैं। इन ग्रन्थराजोंकी ये बह पश्चात् पं० दरबारीलाल जो कोठिया न्यायाचार्यने बतलाया मूल्य प्रतियाँ अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण हो गई थीं, अनेक पत्र कि जिनवाणी और जिनदेवों कोई अन्तर नहीं है अतएव त्रुटित हो गये थे और महाबन्धक तो कितनेक पत्र भी अम्त- जिनदेवके समान ही हमें उसकी पूजा उपासनाके साथ व्यस्त होकर अप्राप्त हो गए हैं। ऐसी स्थितिमें इन ग्रन्थोंके उनकी सुरक्षाका समुचित प्रयत्न करना चाहिये। इस तरह जीर्णोद्वार होनेकी बड़ी जरूरत थी। उनमें धवलके सिवाय सबही भाषण महत्वपूर्ण हुए। भाषणोंके अनन्तर निम्न तीन शेष ग्रन्थोंका जीर्णोद्वार होना अभी बाकी हैं जो जल्दी ही ___ प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे पास हुए, उसके बाद पं० परमानन्द सम्पन्न होगा। अतः कलकत्ता नियामा बा. छोटेलालजी शास्त्रीने वीर-सेवा-मन्दिरकी पोरसे एक अभिनन्दन पत्र अध्यक्ष वीरसंवा मन्दिरको प्रमुग्वतामें एक शिष्टमण्डल इन पढ़कर सुनाया और उसे श्री धर्मसाम्राज्यजीको सादर ग्रन्थराजा फोगेकार्यके लिये मूडबिद्री गया था और उनकी कायालय मूडाबद्रगो गया था और उनकी समर्पित किया। अनन्तर पं. मक्खनलाल जी प्रचारकने प्रेरणाके फल-रू वहांक पचों और भट्टारक जीकी स्वीकृति अपनी यह भावना व्यक्त की, कि दिल्लीको वार्षिक रथयात्रा से फोटोका काय यानन्द सम्पन्न हुआ था। उसी समय इन पोप वदि दोयज ता. १५ दिसम्बरको होने वाली है मेरी ग्रन्थराजोंके जीर्णोद्वार करानेके लिये भी प्रेरणा की गई थी इच्छा है कि यदि इस ग्रन्थराजको रथमें विराजमान किया परिणाम स्वरूप वहाँके ट्रस्टोगण और भधारक जीके श्रादेशा- जाय तब तक श्री धर्मसाम्राज्यजी यहाँ ही ठहरें, पंडित जीकी नुमार धवलग्रन्थकी उक्र प्राचीन प्रति दिल्ली लाई गई और इस भावनाका समर्थन ला. प्रेमचन्द्र जी जैनावाच कम्पनीने भारत सरकार के National Archives of India, किया। उत्तरमें श्री धर्मसाम्राज्यजीने कहा कि मुझे घरसे मन्थरक्षागार नामक विभागके डायरेक्टर जनरल डा. भास्करा चले हुए करीब १५ दिनका समय हो गया है अब और नन्द सालेतूर पी०एच०डी० की सुरक्षामें उसका जीर्णोद्धारका अधिक ठहरना यहाँ सम्भव नही है। हाँ उस समय तक मैं कार्य बहुत ही सुन्दर तरीके पर सम्पन्न हुआ है। 'जयधयल' यहां लानेका प्रयत्न करूंगा। उस समय दिल्ली ____ इस ग्रन्थराजके जीर्णोद्धाका कुल खर्च मूडबिडीके उक्र समाजकी अोरसे उसका जीर्णोद्धार करानेकी घोषणा की गुरुगल सिद्धान्तवस्तिके ट्रस्टी और बाबू छोटेलाल जीके गई। अर्थात् उसके जीर्णोद्धारका कुल खर्च दिल्ली समाजकी अनन्य मित्र श्री धर्मसाम्राज्यजीने अपनी स्वर्गीया धर्मपत्नी ओरसे किया जायगा । इसके बाद अध्यक्ष श्री जुगलकिशोर
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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