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________________ % ११२ ] अनेकान्त सप्रमोदः श्रीधर्मकीर्तिमुनिपाय' तसिमितं श्रीमूलाचारपुस्तकं लेखयांचकार, पश्चात् तस्मिन्मुनिपती नाकलोकं प्राप्ते सति तच्छिष्याय यम-नियम-स्वाध्यायध्यानाध्ययननिरताय-तपोधन भीमलयकीर्तिये तत्सबमानं सोत्सव सविनयमर्पयत् । [ वर्ष १३ आचंद्रार्क स्थिरं स्थयात्पुस्तकं भुवने परं। यशः पुण्यवतां शुभ्र गुणिनामिव दुर्लभम् । इदं मूलाचार पुस्तकं । सं० १४१३ । परमानन्द जैन वागड प्रान्तके दो दिगम्बर जैन-मन्दिर (परमानन्द जैन) राजपूतानेका वागडप्रान्त भी किसी समय ममृद्ध और विक्रम सम्बत् १५७१ कार्तिक शुक्ला दोयजक दिन प्रतिष्ठा शक्रियाली प्रान्त रहा है। बागरको वाग्वर भी कहा जाता कराई थी। है, दंगरपुर और बांसवाडाके पास-पासका क्षेत्र प्रायः बागड कालिजर-यह नगर वांसवाडे से १६ मील दक्षिण नामसे प्रत्यावहै। वागड प्रान्तमें दिगम्बर सम्प्रदायकी पश्चिम में हारन नदीके किनारे बसा हुआ है यहां विशाल पच्चीस्वाति रही है, उन स्थानोंके मन्दिर और ग्रंन्य शिखर बंध पूर्वाभिमुख एक जैन मंदिर है इस मन्दिरके दोनों रचनाचोराव होता है कि विक्रमकी १५वीं १६वीं पाश्वमें और पीछे एक एक मन्दिर और भी बना हुआ है पाताम्दीमें बहा जैनियोका खास महन्व रहा है। यहां तक और उसके चारों ओर देवकृलिकाए बनी हुई हैं, यह मंदिर कि महाके राजा महाराजा मी भट्टारकीय प्रभावसे अछूते नहीं भी दिगम्बर जैनोंका है । और ऋषभदेवक नामसे प्रसिद्ध रहे हैं। यही कारण है कि राज्योंसे भट्टारकोंकी गद्दीके लिये है। इस मन्दिरमें छोटी बड़ी अनेक तीर्थकर मूर्तियों प्रतिभी सरकारसे कुछ आर्थिक सहयोग मिलता रहा है। हम हम प्ठित हैं। एक मन्दिरमें खड़गासन भगवान पार्श्वनाथकी लेखमें दो जैन मंदिरोंका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। सुन्दरमूर्ति प्रतिष्ठित है जिसक श्रासन पर सम्बत् १५५८ आशा है विद्वान उधरके मन्दिरों और भंडारोंका परिचय फाल्गुणसुदी ५ का एक लेख उत्कीर्णित है। पार्श्वनाथकी भिजवा कर अपनी कर्तव्य निष्ठाका परिचय देंगे। एक दुसरी मूर्ति पद्मासन विराजमान है जिस पर सं० १६६० नोगामा-यह एक पुराना गांव है जो वांसवाड़ेस १३ श्रमन्त श्रावणवदि मोका एक लेख अंकित है। निज . मील दक्षिण पश्चिममें बसा हुया है। शिलालेखोंमें इस मंदिरमें मुख्यमूर्ति श्रादिनाथ की है जो पीछेसे अर्थात् वि. का नाम 'नूतनपुर' उल्लिखित मिलता है। यहां शान्तिनाथ सं० १८६१ वैशाग्वमुद्री ३ की प्रतिष्ठित है। इसका परिकर का एक बड़ा दिगम्बर जैनमन्दिर है जिसे वागड (हंगरपुरके पुराना है जिस पर सम्बत् १६१७ अमांत माधवदि २ का राजा महारावल उदयसिंहके राज्यकाल) में मूलसंघ सरस्वति एक लेख उत्कीणित है नीचेका श्रासन भी पुराना है जिसपर गच्छ बलात्कारगणके भट्टारक प्राचार्यविजयकीर्ति के उपदेश पम्वन १५५८ फाल्गन सुदी ५ अंकित है। से बडजातिके खैरज गोत्री दोशी चांपाके वंशजोंने बनवाकर निज मन्दिरके सामनेक मंडपमें पाषाण और पीतलकी ® प्रस्तुत विजयकीर्ति भट्टारक मकलकीतिकी परम्पराम छोटी छोटी मूर्तियाँ हैं जिनमें सबसे पुरानी मूर्ति सं० १२३५ होने वाले भट्टारक भुवनकीर्तिके प्रशिष्य और शानभूषणके वैशाख सुदी की प्रतिष्ठत है। और दूसरी मूर्ति वि० सं० शिष्य थे। यह भट्टारक शुभचन्द्र के गुरू थे। इनका समय १४४५ वैशाम्बसुदी ५ की है। जान पड़ता है कि इस मंदिर विक्रमकी सोलहवीं शताब्दी है इन्होंने अनेक जैन मन्दिरों का समय समय पर जीर्णोद्धार भी किया जाता रहा है। का निर्माण कराया और सैकड़ों मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा भी कराई --- --- थी। इनका कोई अन्य अभी तक मेरे देखनेमें नहीं पाया। xदेखो राजपूतानेका इतिहास बांसवाडा पृ. २२
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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