SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ४] रिंज मूढ कुदेव न पूजियइ आणंदा गुरु विणु भूषण अंधु way जिउ, अप्पा परमादु । अन्त भाग:-- सदगुरु वारणि जाउ हउँ भइ महाणंदी देउ | आणंदा जाणि पाणियां करमि चिदानंद सेउ ॥ मे मे दोहा हिन्दी भाषाके कुछ ग्रन्थोंकी नई खोज [ १०५ आदि भाग : ॥ फिरत-फिरत संसारमा हि जिया दुहुकौ हो, दुहुकौं भेदु न जाणियोरे । इस कृतिका कर्ता कौन है, यह रचना परसे कुछ शात नहीं होता । इसमें चालीस दोहें दिये हुए हैं जो श्रात्मसम्बोधी भावनाको लिये हुए हैं और जिनमें पापोंसे छूटनेकी प्रेरणा की गई है। रचना सामान्य होने परभी कोई २ दोहा शिक्षाप्रद और सुमता हुआ सा है जो हृदयमें आत्म कल्याणकी एक टीस जागृत करता है। पाठकोंकी जानकारीके लिये आदि अन्तके कुछ दोहे नीचे दिये जाते हैं :आदि भाग : मे मे करते जगु भमिउ, तेरउ किछू न अस्थि । पापु कियs धनु संचियत, किछू न चालिउ सत्थ ॥१ इक कर जगु फिरिड, लखि चउरासी जोणि । समति किमु पाइयउ, उत्तम माणुस जो ि॥२॥ दया बिहार जीउ तुहु, बोलहि झूठ अपारु । इहु संसारु अगंधु जिया, किमि लंघहि भव पारु ||३|| अन्त भाग : गय ते जीव निगोद तुहु, सहियो दुक्ख महंतु । जामण मर करंत यह, कलि महि आदि न अंतु ॥४ सप्ततत्त्वभावना गीत - इस रचनामें २० पद्म दिये हुए हैं। इसका कर्ता कौन है यह रचना परसे मालूम नहीं होता। यहां बतौर नमूनेके आदि अंतका एक-एक पथ दिया जाता है जीव तत्त्व अजीउ न जाणियड, चेयणहो, छोडिर जडु तइ माणियोरे ॥१॥ जन्त भाग :--- जो नर इस कहु पढ पढावर तिसु कहु हो, दुरि न आवइ एक खिए । जो नरु सप्त तत्त्व मन भावइ सो नरु शिवपुर पावइ छोड़ि त ॥२०॥ पंचपाप संभाल गीत - इस छोटीसी कृतिका कर्ता भी प्रज्ञात है । आदि भाग :-- पांच पाप संभाल रेजिया, इनसम अवरु न हुआ कोई । जइ सुहु लोडहि जीव तुहुँ, इन तर्हि विरहि होई ॥१ हिंसा, पाप, झूठ, दुखु, दाता, चोरी, बंध दाब | जोरु कुशील कलंक संज्ञातड परिगह नरक पठावर ॥२॥ अन्त भाग : परिगह मोहिउ श्रपु न जाणइ हित किसकहु कारीजइ जो परु सो अप्पाड जाणइ नरक जंतु किन बारीबइ ॥६ इनके अतिरिक्र, यशोधर पाथदी, आर्जवपाथदी, गयाधर आरती, रत्नत्रयपाथदी, मायंगतुरङ्गजयमाल, बडतीसिया पाथड़ी, फूलया गीन, जिवदा हो जगतके राथ गीत, नेमीश्वर रासा आदि रचनाएं हैं। जिनका कोई भी कर्ता ज्ञात नहीं होता, रचनाएं भी अत्यन्त साधारण हैं। आशा है विद्वद् गया दूसरे भंडारोंसे भी हिन्दी भाषाकी अन्य रचनाओंको प्रकाशमें लानेका यत्न करेंगे । परमानन्द जैन शास्त्री संशोधन - पेज नं० १०३ की १६ वीं पंक्तिके बादका मैटर पेज नं० १०४ के पहले कालमके नीचे भूलसे दिया गया है। 'अनेकान्त' की पुरानी फाइलें 'अनेकान्त' की कुछ पुरानी फाइलें वर्ष ४ से १२ वे वर्षतक की अवशिष्ट हैं जिनमें समाजके लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों द्वारा इतिहास, पुरातत्व, दर्शन और साहित्यके सम्बन्धमें खोजपूर्ण लेख लिखे गये हैं और अनेक नई खोजों द्वारा ऐतिहासिक गुत्थियोंको सुलझानेका प्रयत्न किया गया है । लेखोंकी भाषा संयत सम्बद्ध और सरल है । लेख पठनीय एवं संग्रहणीय हैं। फाइल थोड़ी ही शेष रह गई हैं । अतः मंगाने में शीघ्रता करें। प्रचारकीदृष्टिसे फाइलोंको लागत मूल्य पर दिया जायेगा । पोस्टेज खर्च अलग होगा । -- मैनेजर - 'अनेकान्त', वीरसेवामन्दिर, दिल्ली I
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy