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अपभ्रंश भाषाका अखामिचरित और महाकवि वीर
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तत्पूजा, परेषां च स्थिरीकरणमुपहणं, वात्सल्य, पर अपने मन में प्रतिभानन्दित होना, मालिसे पंच परमेष्ठियोंजिनेन्द्रभक्तानामुपकारकरणं, जिनेन्द्रशास्त्राभिगमः, की स्तुति प्रणाम द्वारा पूजा करना, अन्य खोगोंको भी जिनशासनप्रभावना इत्यादिकः॥
स्वधर्ममें स्थिर करना, उनके गुणोंको बढ़ाना और दोषोंका अर्थात् -प्रहण किये हुए बतों धारण और पालन उपगृहन करना, साधर्मियों पर वात्सल्य रखना, जिनेन्द्रदेवके करनेकी इच्छा रखना, एक शखके लिए भी प्रत-भंगको भकोंका उपकार करना, जिनेन्द्र शास्त्रोंका चादर-सरकारअनिष्ट-कारक समझना, निरन्तर साधुजनोंकी संगति करना, पूर्वक पठन-पाठन करना, और जिनशासनको प्रभावना करना, श्रद्धा-भक्ति प्रादिके साथ विधिपूर्वक उन्हें आहारादि दान इत्यादिक-गृहस्थोंका शुद्धोपयोग है। देना, श्रम पा थकान दूर करनेके लिए भोगोंको भोग कर भी उपयुक विवेचनसे शुद्धोपयोगके कार्योंका और मुनियों उनके परित्याग करने में अपनो असामथ्र्यको निन्दा करना, तथा श्रावकोंक शुद्धोपयोगको मर्यादाका कितना ही स्पष्टीसवा घर-बारके त्याग करनेकी वांछा रखना, धर्मभाषण करने करण हो जाता है।
हस्तिनागपुरका बड़ा जैन मन्दिर
(परमानन्द जैन शास्त्री) हस्तिनागपुर नामका एक नगर प्राचीनकाल में अपनी पहली पारणामें इरसका पाहारदान वैशाख सुदि तीजके समृद्धि, विशालता और वैभवके लिये प्रसिद्ध था। इस नगरमें दिन दिया था। उसी समयसे वैशाख शुक्ला तृतियाका अनेक वीर परक्रमी राजा हा गए हैं जिनकी भौहोंक विकारसे दिन अख्ती या अक्षयतृतियाक नामसे लोकमें विश्रुत है शत्रुदल कांपते थे। अकंपनादि मुनियोंपर बलिनामक ब्राह्मण और राजा श्रेयांसके महादानी हानेको प्रसिद्धि भी उसी द्वारा किये गये घोर उपसगोका निवारण हस्तिनागपुरके समयसे हुई है। इससे यह नगर प्राचीन कालसे ही अनेक राजा महापनके सुपुत्र महामुनि विष्णुकुमारक द्वारा हुआ ऐतिहासिक घटनाओं का प्रधान केन्द्र रहा है। था। उसी समयसे रक्षाबंधन नामका पर्व लोकमें प्रथित
जैनियोंके शांतिनाथ, कुन्यनाथ और अरहनाथ नामक हुश्रा है। कहा जाता है कि इस नगरको सोमवंशी राजा तीन तीर्थकरोक गमे, जन्म और तप ये तीन २ कल्याणकर हस्तिनने बसाया था । इस कारण बादमें इस नगरका नाम
इसी नगरमें हुए हैं। ये तीनों ही तीर्थकर चक्रवर्ती राजा उन्हींक नामपर प्रसिद्धिको प्राप्त हुश्रा जान पड़ता है। यह
___ भी रहे हैं। राजा भगवान ऋषभदेवा पौत्र कुरुका वंशज था। सोमवशी
___ यह नगर कुरुजाङ्गल देशके अन्तर्गत था। कौरव-पांव
भी इस नगर में रहे है। पुरातन सरकारी कागजातोंमें भी राजा श्रेयांसने भगवान ऋषभदेवको एक वर्षके बाद सबसे
इसका उल्लेख कौरव पाण्डव पट्टीकं नामस उल्लिखित xहस्तिनागपुर नगरका नामोल्लेख हरिषेण कथाकाशमें मिलता है। महाभारतसे पूर्व इस नगरकी खूब प्रमिन्द्धि रही अनेक कथा-स्थलोंपर हुआ है और उसे कुरुजाङ्गलदेशमें है। इस नगर पर शासन करने वाले नाग राजा भी हुए हैं। स्थित होना बतलाया है। 'कुरुजाङ्गल देशोऽस्तिहस्तिनाग- इस नगरको केवल राजधानी बननेका सौभाग्य ही प्राप्त पुरं परम् ।-देखो, हरिषेण कथाकोष, १२,५७, ६५, ८३ नहीं हुमा किन्तु यह महामुनियोंकी तपोभूमि भी रहा है। नम्बरकी कथाएं।
उन नर पुंगव योगीन्द्रोंकी तपश्चर्या से इस नगरकी भूमिमहाभारत तथा हिन्दू पुराणों के अनुमार जिस राजा पवित्र हो गई थी। इसीसे इसे तीर्थभूमिके नामसे भी हस्तिमने इस नगरका नाम हस्तिनागपुर अंकित किया था, उल्लेखित किया जाता है। वह शकुन्तला पुत्र सर्वदमन भरतकी पांचवीं पीढी में हुआ था, x शान्तिकुन्थ्वस्तीर्थेशान जन्मनिष्क्रमणानिध। उपके बहुत पूर्व पुरुवंशी दुष्यन्त एवं भरतकी राजधानीका वन्दनार्थ मिहायस स्त्वद्भक्तिच विलोकितुम् ॥२॥ . यही नगर बतलाया जाता है।
-हरिषेणकथाकोष पृ० १४.