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________________ २३२] अनेकान्त [ वर्ष १३ ब्रह्मचारिणी थी, ये दोनों ही महावारक संघ दीक्षित हुईथों, को भगवान महावीरका जीव अच्युत कल्पके पुष्पोत्तर नामक उनमें चन्द्रना आर्यिकाओं में प्रमुख थी । सिंहभद्र विज्जि- विमानसे च्युत होकर प्राषाढ शुक्ला षष्ठीके दिन जबकि हस्त संघकी सेनाक सेनापति थे। इस तरह राजा चेटकका परिवार और उत्तरा नक्षत्रों के मध्यमें चन्द्रमा अवस्थित था । त्रिशला खूब सम्पन्न था। देवीके गर्भ में आया x। उसी रातको त्रिशला देवाने १६स्वप्न वज्जीदेशक हैं गणतंत्र थे जिनमें वृजि, लिच्छवि, देखे । जिनका फल अष्टांग महानिमित्तके जानकारोंने बतज्ञात्रिक, विदही, उग्र, भोग और कौरवादि संभवत: आठ लाया कि सिद्धार्थ राजाके एक शूरवीर पुनका जन्म होगा जातियों शामिल थीं। ये जातियाँ मोलह जनपदों में विभाजित जो अपनी ममुज्वल कीर्तिसे जनताका कल्याण करेगा। थीं। उस समय भिन्न-भिन्न देशोंको जनपद और उनके महावीरका जन्म ओर बाल्यजीवन सामहिक प्रदेश या भूभागको महाजनपद कहा जाता था। नौ महीना आठ दिन अधिक व्यतीत हान पर चत्र अंग, मगध, काशी-कौशल,जि-मल्ल, चेदि-वत्प, कुरु-पांचाल, रु-पाचाल, शुक्ला प्रयोदशीकी रात्रिमें मौम्यग्रहों और शुभलग्नमें जब वत्स-शूरसेन, अश्मक-अवन्ति और गान्धार-कम्बोज । यी : गान्धार-कम्बाजा य चन्द्रमा अवस्थित था, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रक समय भगवान सोलह जनपद महाजनपदकी विशाल शक्तिम सम्पन्न थे और महावीरका जन्म हुआ। पुनोत्पत्तिका शुभसमाचार देनेवालों अपना समृद्धि एव शक्लिक कारण बड राष्ट्र कहलान थ। को खूब पारितोषिक दिया गया। नगर पुत्रोत्पनिकी खुशी में उस समय अन्य भी कई छोटे-छोटे राष्ट्र था परन्तु उन खूब सुसज्जित किया गया, तोरण ध्वज-पंक्रियोंस अलंकृत सबमें कोशल, मगध, अवन्ति और वत्सगज ये चारों ही किया गया। सुन्दरवादित्रों की मधुरनिसे अम्बर गुंज राज्य ईसाकी छठी शताब्दी से पूर्व अत्यन्त प्रबल थे। अंग उठा। याचक जनाको मनवांछित दान दिया गया। माधु और मगध तो एक दूसरे पर जब कभी अधिकार कर मन्तों, श्रमणों और ब्राह्मणादिका सन्मान किया गया । उम लेते थे। समय नगरमें दीन दुखियोंका प्रायः अभाव-सा था । नगरक वृजि लोगों में प्रत्येक गांवका एक सरदार गजा कह- मभी नरनारी हातिरकस आनन्दित थे । धूप-घटोंस लाता था। लिच्छवियाँक अनेक राजा थे और उनमें प्रयका उदगत सुगन्धित वायुस नगर सुरभित हो रहा था। जिधर उपराज, सेनापति और कोषाध्यक्ष आदि अलग, अलग होने जाइये उधर हो बालक महावीरक जन्मोन्मयका कलग्य थे। ये सब राजा अपने-अपने गांवक स्वतन्त्र शासक थे किन्तु सनाई पड रहा था। राज्य कार्य का संचालन एक सभा या परिषद द्वारा होता था। बालक का जन्म जनताके लिए बड़ा ही मुग्व-प्रद हुश्रा यह परिषद ही लिच्छवियोंकी प्रधान शायन-शति थी। था। उनके जन्म समय मारके सभी जीवोंने क्षणिक-शांति शासन-प्रबन्ध के लिए सम्भवतः उनमेंस ४ या ६ श्रादमी का अनुभव किया । इन्द्रने श्रीवृद्धिके कारण बालकका नाम गण राजा चुने जाते थे। इनका राज्याभिषेक वहाँ की एक वद्ध मान रक्खा । बालकके जातकर्मादि संस्कार किए गए। पोखरनीके जल से होता था । राजा सिद्धार्थने म्बजन-सम्बन्धियों परिजनों, मित्रों नगरके ___ मल्लांका गणतन्त्र और लिच्छवि राजवंश ये दोनों ही प्रतिष्ठित व्यक्रियों, मरदारों और जातीयजनों तथा नगरगणतन्त्र भारतके प्राचीन बान्य कहलाते थे। और यह दोनों वामियोंका भोजन, पान वस्त्र, अलंकार और ताम्बूलादिसे ही अर्हन्तोंके उपासक थे । उनमें जैनियोंके नेईसवें तथंकर उचित सम्मान किया । इस तरह और राज्यको श्रीसमृद्धिके भगवान पार्श्वनाथ का शासन या धर्म प्रचलित था। कारण बालककं वद्धमान होनेकी अनुमोदना की। वैशालीमें गंडकी नदी बहती थी उसके तटपर क्षत्रिय बालक व मान बाल्यकालीन दो ग्वाम घटनाओंके कुडपुर और ब्राह्मण कुण्डपुर नामक उपनगर अवस्थित ____x यहां यह प्रकट करदना अनुचित न होगा कि श्वेता थे । क्षत्रिय कुण्डपुरमें ज्ञात्रिक क्षत्रियोंक १०० घर थे ४ । म्बीय कल्पसूत्र और आवाश्यक भाष्यमें ८२ दिनबाद राजा सिद्धार्थ क्षत्रियकुडपुरके अधिनायक थे। सिद्धार्थकी महावीरके गर्भापहारकी अशक्य घटनाका उल्लेख रानी त्रिशला वैशालीक राजा चेटककी पुत्री थीं । जिम रात्रि- मिलता है इस घटनाको श्वेताम्बारीय मान्य विद्वान : भारतीय इतिहास की रूपरेखा भाग पृ. १३४ भी अनुचित बतला रहे हैं। * श्रमण भगवान महावीर पृ० । -देखो. चार तीर्थकर पृ. १०६
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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