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________________ ७४] अनेकान्त [ किरण १ अर्थ-हे शम्भो ! मैं कब एकाकी, निःस्पृह, अर्थात्-चौथा, अवधूत जो परमहंस है वह अपने शान्त, पाणिपात्री (कर पात्रमें भोजन करने वाला) और जाति चिन्होंको और गृहस्थके कर्मोको छोड कर पृथ्वी पर दिगम्बर हुमा कर्मों का निर्मूलन करने में समर्थ हंगा। निःसंकल्प तथा निरुद्यम हुमा विचरता है, सदा प्रात्मत्यजेत्स्वजानिचिन्हानि कर्माणि गृहमेधिनाम । भावमें सन्तुष्ट रहता है, शोक तथा मोहसे रहित होता है, तुरीयो विचरेशोणी निःसङ्कल्पो निमद्यमः ॥१४.१६६ संसारसे पार उतरनेकी इच्छाको लिये रहता है, निर्भय सदात्मभावसन्तुष्टः शोक-मोह-विवर्जितः । और निरुपद्रव होता है। वह भक्ष्य तथा पेयांका अर्पण निनिकेतस्तितित. स्यानिःशको निरुपद्रवः ॥१४-१७०, नहीं करता, न उसके ध्यान तथा धारणाएं होती नापणं भक्ष्यपेयानां न तस्य ध्यान-धारणाः। मुक्क, विरक्त और निर्द्वन्द्व होता है। ऐसा यति इंसाचार मुक्तो विरक्तो निर्द्वन्दो हसाचारपरो तिः॥१४-१७१ परायण कहलाता है। क्रमश: - (४८ वें पेज का शेष मेटर) परसे सारे तत्त्व समूह और नयसमूहको आसानीसे विषयमें अन्यत्र अपने प्रन्थों में जो कुछ कहा है उस समझा जा सके । इसके लिये जीव, अजोव, आस्रव सबका युक्ति के साथ इस व्याख्यामें समावेश हो जान बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष , पुण्य और पाप इन तत्त्वोंको चाहिये और सारी व्याख्या सप्रमाण एवं 'तत्व नयलेकर उन्हें विधेयादि सप्तभंगांके साथ सुघटित करके विलास' के रूपमें व्यवस्थित होनी चाहिये। भी बतलाना चाहिये और इस बातको युक्ति-पुरस्सर ढंगसे खुलाशा करके समझाना चाहिये कि कैसे कोई पुरस्कार-दानेच्छुक तत्त्व या विशेप (धर्म) इन सप्त भंगोंके नियममे जुगलकिशोर मुख्तार बहिर्मत नहीं हो सकता-जो बहिभूत होगा वह वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर) तत्त्व या धर्म-विशेपके रूपमें प्रतिष्ठित ही नहीं हो सकेगा। इसके दो एक उदाहरण भी दिये जाने नोट :-इस विज्ञप्तिको दसरे पत्र-सम्पादकभी चाहिये । साथही स्वामी समन्तभद्रने तत्त्व तथा नयके अपने-अपने पत्रों में देनेकी कृपा करें, ऐसी प्रार्थना है। श्रीमहावीरजी में वीरशासन जयन्ती सर्व साधारणको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मुख्तार श्री जुगककिशोरजीका विचार इस बार कुछ विशेष व्रत-नियम ग्रहण करनेका है अर्थात् वे अपने आराध्य गुरुदेव स्वामि समन्तभद्रके सप्तम भावक बनना चाहते हैं । इस पदके योग्य व्रत नियमोंको वे वीरशासन जयन्तीके दिन श्रावण कृष्ण प्रतिपदा (ता. २७ जुलाई सोमवारको, तीर्थावतरणको बेलामें, श्रीवीर भगवानकी विशिष्ट प्रनिमाके सम्मुख महावीरजी ( चांदन पुर) में ग्रहण करेंगे। और वहीं वीरशासन जयन्ती मनाएंगे। ऐसी स्थितिमें वीरसेवामन्दिर परिवार वीरशासन जयन्तीका उत्सब इस बार श्रीमहावीरजीमें आषाढ़ी पूर्णिमाओं और श्रावण कृष्ण प्रतिपदा ता. २६ २७ जुलाई को मनाएगा । सूचनार्थ निवेदन है । -राज कृष्ण जैन
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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