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________________ किरण २ वंगीय जैन पुरावृत्त [४५ - संदेह नहीं है कि ये मामाकी श्रेष्ठताके प्रचारक आर्य समर्थ हुए थे । २४ वें तीर्थंकर बर्द्धमान महावीरके पाविजैनधर्मावलम्बी थे। र्भावके पूर्व मगध और अंग छोटे छोटे सगड राज्यों में मार्य राजगणोंके अधःपतनके पूर्व उत्तरापथके पूर्वा विभक्त थे । गौतमबुद्ध और महावीर वईमानकी निर्वाणअजमें आर्यधर्मके विरुद्ध देशव्यापी प्रबल भान्दोलन प्राप्तिके प्रति अपकाल बाद ही शिशुनाग वंशीय महानन्दउपस्थित हुया था और उसके फलस्वरूप अनधर्मका के पुत्र महापानन्द भारतके समस्त त्रिय कुलको निमूख विस्तार और प्रभाव बढ़ गया तथा बौदधर्मका जन्म कर एकड़न सम्राट् हुए थे। इस समयसे लेकर गुप्तराज हुमा । उस समय मगध + के राजगण जैन और बौजू- बंशके अधःपतन पर्यन्त मगध राज्य उत्तरापथमें एकछत्र धर्मावलम्बी थे। इसीसे उनको भी शुद्ध जातीय और सम्राट रूपसे पूजित होते रहे और पाटलीपुत्राही सम्राट अनार्य कहा है तथा उस समय इन दोनों धर्मोंका प्राबल्य की एक मात्र राजधानी थी." आर्यावर्त्तके पूर्वाश में जोरोंसे था इसीसे 'विन्धस्योत्तरे भागे श्रीमान डाक्टर भण्डारकर x ने लिखा है कि यह प्रादि श्लोकोंकी रचना कर उन प्रदेशोंकी यात्रा वर्जित सत्य है कि ब्राह्मण-धर्मको बंगालमें फैलनेके लिए बहुत करदी गई थी। समय लगा था। अभी तक ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध प्रसिद्ध पुरातत्त्व विद् बा. राखालदास वन्द्योपाध्याय- नहीं हुआ जिससे यह सिद्ध किया जासके कि ब्राह्मण धर्मने अपने बंगालके इतिहास में ४ २८/२६ पर लिखा है का आधिपत्य गुप्तकालके पूर्व इस प्रान्तमें था। प्राचीन कि-"जैनधर्मके २४ तीर्थकरां में १४ तीर्थंकरोंने बंगालमें आर्य सभ्यताका विस्तार प्रथम जैनों द्वारा हुया मगध और बंगालसे निर्वाण लाभ किया था।२४ तीर्थंकरों था। प्राचीन जैनग्रन्थोंमें गालके ताम्रलिसि. कोटिवर्ष में ११ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ और २१वें तीर्थकर नमिनाथ- और पुण्ड्रबद्धन ऐसे तीन स्थानोंके नामसे जैन संघोंका ने मिथिलामें और २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथने राजगृह नाम प्रचलित हुधा मिलता है। इनमें "तालिप्स" में और २४ वें तीर्थंकर महावीर वर्द्धमानने वैशाली x वर्तमान मेदिनीपुर जिलेका तामलुक है, 'कोटिवर्ष" नगरमें जन्म लिया था। २४ तीर्थंकरोंमे द्वादश + दीनाजपुर जिलेका वाणगढ़ है और 'पुण्यवाई न बोगड़ा तीर्थंकरोंने सम्मेशिखर तथा पार्श्वनाथ पर्वत पर निर्वाण जिलेका महास्थान है। यह एक विचित्र बात है कि अपने लाभ किया था । द्वितीय - तीर्थकर वासुपूज्यने चम्पा धर्ममें दीक्षित करनेका कार्य क्षेत्र विहार और कोशजको नगरसे और २४ वें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीरने आपापा बुद्ध और उनके अनुयायियोंने बनाया था और महावीर पुरीसे, निर्वाणलाभ किया था। ये दोनों नगर अंग और उनके अनुयायियोंने इस कार्यके लिए बंगालको और मगध देशमें अवस्थित है। जैन और बौद्धधर्मके मनोनीत किया था। यह सत्य है कि इस मूल जैनधर्मके इतिहासकी पर्यालोचना करनेसे स्पष्ट बोध होता है कि चिन्ह अब बङ्गालमें नहीं बचे हैं किन्तु सृष्टीय (ईसाकी) दीर्घकाल-व्यापी विवादके बाद सनातन आर्यधर्मके विरुद्ध सप्तम शताब्दीके मध्यभाग तक पुण्ड्रबर्द्धनमें अनेक वादी यह नूतन धर्मद्वय भारतवर्ष में प्रतिष्ठा लाभ करनेमें निम्रन्थ जैनांका अस्तिस्वस हय मेनसांग नामक चीनी + सभी पूर्वकालीन और परवर्ती वैदिक मन्याम मागधी- यात्रीके विवरणसे प्रमाणित होता । पाहायपुर के प्रति विद्वेष प्रदर्शन किया गया है। स्मृति साहित्य (बंगाल ) में जो म्वृष्टीय पंचम शताब्दीका ताम्रशासन में भी मगधकी गणना उन देशों की है जिनमे प्राप्त हुया है उनमें एक विहारकं अहम्तोंकी पूजाके लिए जाना निषेध किया गया है तथा वहाँ जाने पर निग्रन्थाचार्य गुहनन्दिके शिष्योंको एक दानकी वार्ता है। प्रायश्चित करना निर्देश किया गया है J.N. Sam ___xFp. ind. Volxxvi,p५0 and J. A. addar, The Glories of magadh p.6.) S. B. Xx 111 [N.SP, 125 * की जगह २२ होने चाहिए। x फुडग्राम या कुंडपुरमें । #S. Ba's-Buddhist Recordr of thee +विंशत। = २३ पावापुरी। Western World-london 1906.
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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