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________________ ३८४] भनेकान्त [किरण १२ खर्च हुए। इस प्रकार इन प्रन्योंका उद्धार प्रारम्भ हुआ। कर ( enlargement ) उसोको ताम्र शासनके इसके पश्चात् श्रीमन्त सेठ जमीचन्दजी भेजसासे रूपमें करा कर मुहबिदीमें ही स्थापित किया जाय इस १२.००) बारह हजार रु. प्राप्त कर प्रो.हीरालालजी प्रकारका एक प्रस्ताव पास हुआ था जो पाठवें प्रस्तावके अमरावतीने प्रायः १६३६ में 'धवला' को सम्पादित कर नामसे प्रसिद्ध है। परन्तु अब तक यह प्रस्ताव कार्य रूपमें हिन्दी टीकाके साय १. भागों में प्रबग-अलग छपवा परिणत नहीं हुमा । फलतः इसी उद्देश्यकी पूर्ति करनेकी दिया। 'मयधनबा' के दो भाग भारतवर्षीय दिगम्बर सद्भावनासे प्रेरित होकर देहजीके प्रसिद्ध साहकार धर्मात्मा जैन संघ मथुराकी भोरसे जयधवना कार्यालय बनारससे बाला राजकृष्णाजी जैन बाबू छोटेबालजी कलकत्ता वाले प्रकाशित हो चुके है। महाबन्ध अथवा महाधवलाका प्रथम और पं० खूबचन्दजी शास्त्रीने प्रसिद फोटोग्राफर श्री भाग पं० सुमेरचन्द्र जी दिवाकर सिवनीके द्वारा सम्पादित त मोतीरामजी जैन देशलीके साथ मुविद्री पाकर अपना होकर भारतीय ज्ञानपीठ काशीसे प्रकाशित हुया है। सद् उद्देश्य समझाया और ताडपत्रीय मूल प्रतियांका चित्र दूसरा नीसरा और चौथा भाग पं० सुमेरचन्दजी द्वारा लेकर उसे तात्र शासन में कराकर मूडविद्गीमें पुनः स्थापित सम्पादित होकर जिनवाणी रद्धारक संघकी ओरसे और करनेका प्रतिज्ञापत्र भी गुरुवादिके ट्रस्टियोंके सामने भर ६. पूनचन्दजी सिद्धान्त शास्त्री द्वारा सम्पादित होकर दिया गया। वह प्रतिज्ञापत्र इस प्रकार है महाशयजी, भारतीय ज्ञानपीठ काशीने प्रकाशित हो रहे हैं। धवला प्राचीन कालसे मूडबिद्रीके गुरुवदिम आप लोगोंकी और जयधवनाकी मुद्रसपतियोंको (प्रेस कासी)सरम्बती देख रेखमं विराजमान ताडपत्रीय सिद्धान्त प्रन्योंकी छाया भूषण पं. लोकनायशी शास्त्री. सुमेरचन्द्रजी द्वारा प्रतियों ( Photo) को लेकर उन्हें ताम्रशासन के रूपमें सम्पादित महाधवडाको मुद्रण प्रति ( प्रेस कापी) को परिणत करनेकी अनुमति प्रदान करेंगे, हमें मापसे प्रेमी पंरित एम. चन्द्र राजेन्द्र शास्त्री साहित्यालंकारने ताड. अपेक्षा है। हम प्रतिज्ञा करते है. उन ताम्र प्रतियोंको हम पत्रीय मूलप्रतिके साथ मिला कर शुद्ध करके दी है। मूडबिद्रीके उसी गुरुवदिम स्थापित करेंगे। आप लोगों इस बीच इन धवलादि प्रन्योकी सुदीर्घ रताकी को इस कार्यको अनुमति देकर बहुत बड़ी कृपा की है। पावश्यकताको समझ कर प्राचार्य प्रवर स्वस्ति श्री शांति. उपयुक प्रतिज्ञा पत्र पाप लोगोंके द्वारा स्वीकृत होने सागर जी महामुमिके उपदेशसे श्रीमन्त तथा धार्मिक पर हम उन प्रन्योंकी छाया प्रतियोंको लेने के अधिकारी हैं। लोगोंने 'धवला अन्यको देवनागरी (बालबोध ) लिपिमें छोटेलाल जैन कलकत्ता, राजकृष्ण जैन दिल्ली वान शासन करवाया। खूबचन्द जैन शास्त्री इन्दौर धार्मिक जनताका हृदय इतने में भी शान्त नहीं हुमा। पंचोंकी प्रोरसे, श्री पद्मराज सेठी, श्री धर्मपाल सेठी ताडपत्रीय मूलप्रतियोंकी दिन दिन शिथिल होकर नष्ट हो जैनागमकी रक्षाके इस पुनीत कार्य के लिए गुरुवसदिजानेकी चिन्ता अब भी बनी हुई है। इसके लिए पूज्य के टूम्टियोंने सन्तोषसे अनुमति प्रदान की। इनके अतिरिक्त भाचार्य श्रीके मादेश पाकर उन शास्त्रोके उद्धारके लिए श्री मंजण्या इंगदे धर्मस्थल, श्री एम. के. देवराज मंगलूर, स्थापित संघके कार्यदर्शी श्री बालचन्दजी देवचन्दजी शाह पूज्य स्वामीजी मूडबिद्दी, श्रीजगत्पालजी. श्री पट्टन सेठी, बम्बईने मूरबिद्री जाकर समस्त प्रज्योंके फोटो लेकर श्रीपराजी और भी बाल आदि स्थानीय और बाहरके उन्हें यथा स्थित ताम्र शासन कराने के उद्देश्यसे कुछ दिनों महानुभावोंने इस कार्यकी प्रशंसा कर प्रोत्साहन दिया। के प्रमस्नसे फोटो कराकर ले गए । परन्तु वह कार्य भी इन धवलादि अन्योंके फोटो लेनेका कार्य इसी महीने में तक किसी कारण रुका हुपा पड़ा है। दिनांक से प्रारम्भ होकर : तक पूर्ण हुभा। उसके बाद बाहुवली स्वामाके महामस्तकाभिषेकके अन्धोंके फोटो लेनेके कार्य में ६. के. मुजबली शास्त्री समय भवणबेलगोजमे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा " पं.चन्द्रराजेन्द्र शास्त्री, पं.मागराज जी शास्त्री, पं. का अधिवेशन हुमा । उसम मूडबिद्री में विराजमान भव देव कुमारजी ने प्रादि महानुभावांने जो सहायता माधि प्रन्योंकी वारपत्रीय मूलतियाँ भीण-शीर्ण और परिजम लिया. इसके लिये हम भाभारी शिभित हो जाने के कारण उनका चित्र लेकर विस्तृत करा -सम्पादक विवेकाम्युदय
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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