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धवलादि सिद्धान्त-ग्रन्थोंका उद्धार
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[अभी पिछले दिनों मृडबद्री में सिद्धान्त ग्रन्थोंके फोटो वीरसेवामन्दिरकी ओरसे लिए गये थे। उसका समाचार गतांकमें दिया जा चका है। उसका विस्तृत समाचार पाठकों की जानकारीके लिये विवेकाभ्युदयसे अनुवादित करके दिया जा रहा है। सम्पादक]
मूडबिद्री में गुरुवमदि(सिम्त यसदि) में विराज- अबलाकी एक एक प्रतियाँ है। प्रतियाँ अधिक प्राचीन मान श्री धवला, जयधवला और महावना तीनों ही जानेके कारण जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं। उपयुक सिदाम्त प्रन्थ जैन अन्य रचनामें प्रथम तथा महत्वपूर्ण धवलाकी तीन प्रतियों में से दो प्रतियाँ तो पूर्वतया जीर्ण महान ग्रन्थ राज है। इन महान प्रबोंके कारण ही यह एवं अपूर्ण रूपमें हैं। बसदि (मन्दिर) सिद्धान्त मन्दिर' अथवा 'सिद्धान्त बसदि मूडविदोके अतिरिक सम्पन्न अप्राप्य इन प्रन्योंकी के नामसे ---- -
जीर्ण-शीर्ण प्रसिद्ध है।
অষক न पवित्र
देखकर जैन ग्रंथाके दर्शनों
समाजमें के लिए भारतवर्षके
रस्नोंके उद्धार समस्त भागों
करनेकी से अनेक
चिता होने जैन यात्री
जगी। इसके प्रति वर्ष
জন্য এ पाते रहते
Adaai एक प्रकार सिद्धांतयों का परिचय
खन उत्पा पहले 'वीर
होने के कारण बायो' और
मृडवद्रों में लिया गया फोटो प्रप। 'विवेका- अगली लाइन वाई से दाई ओर-(६) पुट्टा स्वामी ऐडवोकेट संपादक विवेका- दानवीर मेड भ्युदयमादि भ्युदय मङ्गलौर (२) लाला राजकृष्णजी देहली (३) श्री १०५ स्वामी चारुकीर्ति जी माणिकचन्द पत्रिकाओं में महाराज भट्टारक मडबिद्री (8) श्री पदमराज जी सेठी मृडबिद्री
जी और में विस्तार रूप पीछे की लाइन-(१) श्री धर्मपाल जी सेठी वल्लाल (२)पं. चन्द्र राजेन्द्र जी हीराचन्दजी से दे दिया शास्त्री साहित्यालङ्कार (३) श्रीधर्म साम्राज्यजी मजालौर (४) बावृ छोटेलालजी जैन नेमचन्मजी गया है। कलकत्ता।
सोलापुरके पुनः उसे वहाँ देना उचित नहीं समझता हूँ। 'विवेका. सफल प्रयत्नमे सन १८१५ से १६२२ तक इन ग्रन्थोंकी म्युश्य' कार्यालयसे प्रकाशित 'ऐड कुसुम गलु' नामक एक एक देवनागरी और कमी लिपि में प्रतियाँ कराई पुस्तकमें भी इन अन्योंका संक्षिप्त परिचय दिया हुआ है। गई। देवनागरी प्रति श्री ब्रह्ममूरिकी शास्त्री मैसूर और
इन अन्धोंकी भाषा संस्कृत-प्राकृत मिश्रित भाषा है। श्री गजपतिजी शास्त्री मिरज द्वारा तथा काडी प्रति
न्य प्राचीन वारपत्रके अपर प्राचीन शिलालेखोंकी देवराज जी सेठी मूरविही, शांतप्प इन्द्र, नहाय्या इन्द्र तरह पुरानी काटो खिपियोंमें बासकी स्याहीसे पिसे गए तथा पं० नेमराजजी इद (श्री पारकोर्तिजी स्वामी) है। इनमें धवबाकी तीन प्रवियों और अवयवबा, महा- द्वारा लिखी गई। इस कार्य थिए माया बीस हजार रुपये
समाजमे
का आंदो