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किरण १]
कुछ नई खोजें
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शाह नसीरसे उस्कर्ष प्राप्त किया था। इनके दूसरे पुत्रका नो निष्ठीवेन्न शेते वदविचन परं हतियाहीति यातु, नाम 'सुहजन' था, जो विवेकी और वादिरूपी गजोके लिये नो कपडूयेत गात्र ब्रजतिन निशि नोटयेहा न दो। सिंहके समान था। सबका उपकारक और जिनधर्मका ना विष्ट प्राति किंचिद्गुणनिधिरिति यो पर्वयोगः, भाचरण करने वाला था। यह भट्टारक जिनचन्द्र के पद कृत्वा सम्नयास मन्ते शुभ गतिरभवत्सर्वसाधुः सापूज्यः ॥२ पर प्रतिष्ठित हुआ था और उसका नाम 'प्रभाचन्द्र' रक्खा तस्यासीसुविशुद्धरष्टिविभवः सिद्धान्त पारं गतः। गया था। उक्त विमका पुत्र धर्मदास हुश्रा, जिसे महमूद- शिष्यः श्री जिनचन्द्र नाम कलितश्चारित्रभूषान्वितः । शाहने बहुमान्यता प्रदान की थी । यह भी वैद्यशिरोमणी शिष्यो भास्करनन्दि नाम विवुधस्तस्याऽभवत्तत्वविद, और विख्यातकीर्ति थे । इन्हें भी पनावतीका वर प्राप्त तेनाऽकारि सुखादिबोध विषया तत्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ॥३॥ था । इसकी पत्नीका नाम 'धर्मश्री' था, जो अद्वितीय
नाम 'धमश्रा' था, जो अद्वितीय भास्कर नम्दीकी इस समय दो कृनियां सामने हैंदानी, सदृष्ट, रूपसे मन्मथ विजयी और प्रफुल्ल बदना
| विजपा पार प्रफुल्ल बदना एक 'ध्यानस्तव और दूसरी 'तत्वार्थवृत्ति', जिसे 'सुख थी। इसका 'रेखा' नामका एक पुत्र था जो वेद्यकलामें बोध वृत्ति' भी कहा जाता है। इनमें तस्वार्थ वृत्ति प्राचार्य दक्ष, वैयोंका स्वामी और लोकमे प्रसिद्ध था। यह वैद्य- उमा स्वानिके तत्वार्थ सबकी संक्षिप्त एवं सरल व्याख्या कला अथवा विद्या श्रापकी कुल परम्परासे चली रही है। इसकी रचना कब और कहां हुई यह प्रम प्रति पर थी और उमसे आपके वंशकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। रेखा से कुछ भी मालूम नहीं होता। अपनी वैद्य विद्याके कारण रणस्तम्भ (रणथंभौर) नामक
रणस्तम्भ ( रणथभार ) नामक जिनचन्द्र नामके भनेक विद्वान भी हो गए हैं, उनमें दुर्ग में बादशाह शेरशाहक द्वारा सम्मानित हुए थे। प्रस्तत जिनचन्द्र कौन है और उनका समय क्या है।
आपकी माताका नाम 'रिग्वधी' और धर्मपत्नीका नाम यह सब सामग्रीके अभावमें बतलाना कठिन जान पड़ता जिनदामी था, जिनदासी रूप लावण्यादि गुणाम अलं- है। एक जिनचन्द्र चन्द्रनन्दीके शिष्य थे, जिसका कृत थी। जिनदासके माता : पितादिके नामांमे यह उल्लेख कन्नड कवि पने अपने शान्तिनाथपुराणमें स्पष्ट जाना जाता है कि उस समय कतिपय प्रान्तोंमें किया है। जो नाम पतिका होता था वही प्रायः पत्नीका भी ब्रह्म रायमल-हमवंशके भूषण थे। इनके पिता हुआ करता था। पं. जिनदास नवलपुरके निवासी
। ५० जनदास नवलपुरके निवासी का नाम 'मम' और माताका नाम चम्पादेवी था। यह थे। इनके एक पुत्र भी था और उसका नाम नारायण- जिन चरणकमलोंके उपासक थे। इन्होंने महासागरके तट दाय था।
भागमें समाश्रित 'ग्रीवापुर' के चन्द्रप्रभ जिनालयमें वर्णी पंडिन जिनदाम शेरपुरके शांतिनाथ चैत्यालय- कर्ममीके पचनासे 'भक्तामरम्मांत्र' की वृत्ति की रचना वि. में पर्चा वाली 'होली रेणुका चरित्र' की तिका संवत् १६६७ में अषाढ़ शुक्ला पंचमी बुधवारके दिन को अवलोकनकर संवत् १६० के ज्येष्ठ शुक्ला दशमो है। सेटके कृचान्दिर दिक्लीक शास्त्रभंडारकी प्रतिमें उस शुक्रवारके दिन इस ग्रन्थका ८४३ श्लोकांम समाप्त मनिरतनचन्द्रकी वृत्ति बतलाया गया है । अतएष दोनों है । ग्रन्यकर्ताने ग्रन्थकी अन्तिम प्रशस्तिमं अपने वृत्तियांको मिलाकर जांचने की आवश्यकता है कि दोनों पूर्वजांफा भी कुछ परिचय दिया है जिसे उक्त प्रशस्ति- वृत्तियाँ जुदी जुदी हैं या कि एक ही वृत्तिको अपनी २ परस सहज ही जाना जा सकता। पंडित जिनदामजी- बनाने का प्रयत्न किया गया है। ने यह प्रन्थ भ. धर्मचन्द्रजीक शिष्य भ. ललित- अझ रायमल मुनि अनन्तकोनिके जो भ. रत्नकीर्तिके कीतिके नामांकित किया है, जिससे यह ज्ञान पदृश्वर एवं शिष्य थे। यह जयपुर और उसके पास-पास होता है कि यह संभवतः उन्हींके शिष्य जान के प्रदेशके रहने वाले थे। यह हिन्दी भाषाके विद्वान थे।
पर उममें गुजराती भाषाकी पुट अंकित है दोनों भाषामा ४-भास्करनन्दी मुनि जिनचन्द्रके शिष्य थे, जिनचन्द्र के शब्द व बहुत कुछ रखे मिले से पाए जाते हैं। इनकी
सर्वसाधु मुनिके शिष्य थे । जैसा कि उनकी 'तत्त्वार्थ- हिन्दी भाषाकी रचनाएँ और भी पाई जाती हैं। वृत्ति' के निम्न पोंसे प्रकट है:
नेमीश्वररास, हनुवंतकथा, प्रद्युम्नचरित सुदर्शनरास,