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________________ किरण ११] आर्य और द्रविड़के संस्कृति सम्मेलन उपक्रम यही जोवन समस्त सुख-दुःखाका एक मात्र प्राधार हो अध्यात्मवादकी ओर गया। और ब्रह्मा, प्रजापति,विश्वकर्मा-प्रादि नामोंसे निर्देश इस प्रकार वैदिक जिज्ञासा तकहीन विश्वाससे होने लगा । परन्तु मारमाको प्रेरक सत्ताको छोड़कर बो निकल कर एक सतर्क विचारणाकी भोर वह रही थी। समस्त देवताका जनक है, जो पात्म अनुरूपही देव- इनकी रस तयक्त प्राधिदैविक विचारणामेंसे ही भागे ताओंकी सृष्टि करने वाला है, जो समस्त प्रकारके दर्शनों चख कर ईश्वर और सष्टिप्रलयवाद-मूलक वैशेषिक तथा (Philosphies) विज्ञानों (Since) और कलाका नैयायिक दर्शनका जन्म हुमा। इसमेंसे ही हष्टपूर्व अवस्था रचयिता है, समस्त रूपोंका सृष्टा है किसीबाझ अनात्म सत्ता- सम्बन्धी सत्-असत्, सदसत् रूप तीन वादांका भी विकास को संसारका प्रेरक माननमें जो ऋटियाँ बहु देवतावादमें हुमा, उपरोक्त सिद्धान्तोंके निर्माणमें यद्यपि उन माध्याद थी-वही त्रुटिया इस एक दवतावादम भा था स्मिक श्राख्यानोंकी गहरी छाप पड़ी है, जो संसार सागरइसीलिये जीवन और जगतके प्रति निरन्तर बढ़ती हुई वाद, संसाराच्छेदकपुरुष जन्मवाद, ज्ञानात्मक सृष्टिवाद, जिज्ञासा इस एक देवतावादसे भी शान्त न हो सकी । वह तपध्यानविलीनतास्य प्रलयवादके सम्बन्धमे दस्युलोगोंने प्रश्न करती ही चली गई। लघुएशियायी देशों में पहिलेसे ही प्रमारित किये हुए थे। सृष्टिकाल में विश्वकर्माका श्राश्रय क्या था? कहाँ से तो भी प्राधिदैविक रूपमें ढलने के बाद वे उनकी विचारऔर कैसे उसने सृष्टि कार्य प्रारम्भ किया? विश्वदर्शक देव णाकी स्वाभाविक प्रगतिका ही फल कहे जा सकते है। विश्वकर्माने किस स्थान पर रहकर पृथ्वी और श्राकाशको परन्तु यह सब कुछ होने पर भी वैदिक विश्व देवतारिख बनाया? वह कौलसा बन और उसमें कौनसा वृक्ष है, एक निरर्थक बस्तु और मानव एक शुष्क अस्थिकालसे जिससे सृष्टि कर्ताने चावा पृथ्वीको बनाया ? विद्वानों! धागे न बढ़ सका, एक प्रजापतिबादको ऋग्वेद :-10. अपने मनको पूर्व देखो कि किस पदार्थके उपर खड़ा होकर और १०८1 में किये गये, (क्यों कर पार कैसे सृष्टिकी ईश्वर सारे विश्वको धारण करता है। रचमा हुई)' प्रश्नोंका हल न कर सकी। मस्तिष्क निरन्तर ए. ऐसे अहंकारमय चैतन्य तत्वकी मांग करता रहा, जो "वह कौनसा गर्भ था जो च लोक, पृथ्वी, असुर देवों अपनी कामनापास इस विश्वका सार्थक बनादे, और इस के पूर्व जल में अवस्थित था, जिसमें इन्द्रादि सभी देवता कंकालको अपनी मादकता और स्फूर्तिसे उदीप्त करदें। रहकर समष्टिसे देखते थे । चुनांचे हम आगे चल कर देखते है कि इस मांगके "विद्वान् कहते हैं कि सृष्टिसे पहिले सबभोर अन्ध अनुरूप ही वैदिक विचारणा सहसा ही एक ऐसी क्रांतिका उदय हुमा जिसने इसकी दिशाको बाहरसे हटा भीतरकी कार छाया हुआ था, सभी अज्ञात और जल मग्न था, ओर मोष रिया, उसे देवतावादसे निकाल पारमबादमें जुटा तपस्याके प्रभावसे वह एक तत्व (प्रजापति ) पैदा हुआ। उसके मनमें सृष्टिको इच्छा पैदा हुई । परन्तु इन सन्त दिया। इस क्रान्तिके फलस्वरूप ही उसे प्रथम वार यह भान गातोंको कौन जानता है। और किसने इन बातोंको जताया? हुमा कि रंगरूप वाला विश्व जिसकी चमत्कारिक अभि व्यक्तियोंके माधार पर वह इसे महाशक्ति और बुद्धिमान यह विस्ट किस उपादान कारणसे पैदा हुई। देवता खोग तो इस विसृष्टि के बाद ही पैदा हुए । इसलिए देवताओंमे अनुशासित मानता रण है, सत् होते भी यह कौन जानता है कि सृष्टि उस प्रकारसं पैदा हुई। यह असत् है. ऋतवान् होते हुए भी, अनृतसे भरपूर है, विस्टष्टि उसमें से पैदा हुई। जो इसका अध्यक्ष है और सुन्दर होते भीकर उपद्रवोंका पर है यह.रोग-शोक परम व्योमन रहता , वही ये बातें जानता होगा और और मौतसे व्याप्त है, वह कभी किसीके पशमें नहीं हो सकता है कि वह भी न जानता हो (३)। रहता , इसकी ममता. इसका परिवहन बहुत दुःखमय है। अग्निवायु इन्द्र मादि विश्वदेवतामोंमें जो शक्ति दिखाई (१) भगवेद देती है, वह उनकी अपनी नहीं है। इन्हें उद्विग्न और (२) ऋग्वेद १०-२ विलोडित करनेवाली कोई और ही भीतरीही यति है। (३) ऋग्वेद १.-१२१ *दिक विचारणाकी यह कान्ति उसकी स्वाभाविक
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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