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________________ विषय-सूची ११ चिन्तामणि-पार्वगायत्तवन-[ सोमसेन १२ १ वैभवको शृङ्गलाएँ (कहानी)- . . मूलाचारकी मौलिकता और उसके रचयिता [मनु 'ज्ञानार्थी साहित्यरत्न ३५१ [पं.हीरालालजी सिवात शास्त्री ..धर्म और राष्ट्रनिर्माण- प्राचार्य खसी १४८ मार्य और विद संस्कृतिके सम्मेलनका उपक्रम- ..कापुर-[पं.के. मुजवलीजी शास्त्री " १५३ [बा. जयभगवानशी एवोकेट .८ मूलाचार संग्रहप्रायन होकर भाचारारूपमौलिक युगपरिवर्तन (कविता) प्रन्थ है-[पं० परमानन्द शास्त्री [मनु 'ज्ञानार्थी' साहित्यरत्न विविध विषय महावीर जयन्ती मावि . समाजसे निवेदन 'अनेकान्त' जेन समाजका एक साहित्यिक और ऐतिहासिक सचित्र मासिक पत्र है। उसमें अनेक खोज पूर्ण पठनीय लेख निकलते रहते हैं । पाठकोंको चाहिये कि वे ऐसे उपयोगी मासिक पत्रके ग्राहक बनकर, तथा संरक्षक या सहायक बनकर उसको समर्थ वनाएं । हमें केवल दो सौ इक्यावन वथा एक सौ एक रुपया देकर संरक्षक व सहायक श्रेणी में नाम लिखाने वाले दो सौ सजनोंकी भावश्यकता है। आशा है समाजके दानी महानुभाव एक सौ एक रुपया प्रदानकर सहायकश्रेणी में अपना नाम अवश्य लिखाकर साहित्य-सेवामें हमारा हाथ बंटायगे। मैनेजर-'अनेकान्त' १ दरियागंज, देहली. विवाहमें दान अमृतसर निवासी बा. मुखीमालजी जैमने अपने सपनचि. वर्शनकुमारके विवाझोपनयमें १.१). राममे दिये है। -जयकुमार जैन अनेकान्तकी सहायताके सात माग (.) अनेकान्तके 'संरक्षक'-तथा 'सहायक' बनना और बनामा। (२) स्वयं अनेकाम्तके प्राहक बनना तथा दूसरों को बनाना। (३) विवाह-शादी भादि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवामा । (.) अपनी ओर से दूसरोंको अनेकान्त भेंट-स्वरूकर अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्या-संस्थाओं लायरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-मजैन विद्वानों।। (१) विद्यार्थियों मादिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें नेके लिये २५),१०) प्रादिकी सहायता भेजना। २५ की सहायतामें ..को अनेकान्त अर्धमूल्य में भेजा जा सकेगा। (4)अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे प्रस्थ उपहारमें देना तथा दिनाना । (.) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ जुटाना । ...... सहायतादि मेंजने तथा पत्रव्यवहारका पता:नोट-दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंको - मैनेजर अनेकान्त' 'भनेकान्त' एक वर्ष तक भेडस्वरूप भेजा जायगा। बीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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