SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२२] अनेकान्त [किरण १० आधुनिक हैं प्राचीन मंदिर जीर्णशीर्ण हो गया था पाते हैं। यह क्षेत्र कितना पुराना है इसका कोई इतिवृत्त जिसका जीर्णोद्धर संवत् १६३२ में भट्टारक कनककीर्ति मुझे जल्दीमें प्राप्त नहीं हो सका । हम लोगोंने सानन्द ईडरवालोंकी ओरसे किया गया था। यहाँ एक ब्रह्मचर्या- यात्रा की। और भोजनादिके पश्चात् यहांसे ओरंगाश्रम भी है जिसमें उस प्रान्तके अनेक विद्यार्थी शिक्षा बादके लिये रवाना हुए। (क्रमशः) जैनधर्म और जैनदर्शन (लेखक : श्री अम्बुजाक्ष एम. ए. बी. एल.) पुण्यभूमि भारतवर्ष में वैदक (हिन्दू) बौद्ध और जैन उपस्थित हो जाता है। अशोकस्तम्भ, चीनी यात्री ह्रयेन्सांग इन तीन प्रधान धर्मोंका अभ्युत्थान हुआ है। यद्यपि बौद्धधर्म का भारत भ्रमण, आदि जो प्राचीन इतिहासकी निर्विवाद भारतके अनेक सम्प्रदायों और अनेक प्रकारके प्राचारों बातें हैं उनका बहुत बड़ा भाग बौद्धधर्मके साथ मिला व्यवहारों में अपना प्रभाव छोड़ गया है, परन्तु वह अपनी हुश्रा है भारतके कीर्तिशाली चक्रवर्ती राजाओंने बौद्धधर्मको जन्मभूमिसे खदेड़ दिया गया है और मिहल, ब्रह्मदेश, ' राजधर्मक रूपमें ग्रहण किया था, इसलिए किसी समय तिब्बत, चीन आदि देशोंमें वर्तमान है। इस समय हमारे हिमालयस लेकर कन्याकुमारी तककी समस्न भारत भूमि देशमें बौद्धधर्मके सम्बन्धमें यथेष्ट अालोचना होती है, परन्तु पीले कपड़े वालोंस व्याप्त हो गयी थी। किन्तु भारतीय जैनधर्मके विषयमें अब तक कोई भी उल्लेख योग्य आलोचना इतिहासमें जैनधर्मका प्रभाव कहाँ तक विस्तृत हुआ था नहीं हुई । जैनधर्मके सम्बन्ध में हमारा ज्ञान बहुतही परिमित यह अब तक भी पूर्ण रूपसे मालूम नहीं होता है । भारतक है। स्कूलोंमें पढ़ाये जाने वाले इतिहामोंके एक दो पृष्ठोंमें विविध स्थानोंमें जैनकीतिक जो अनेक ध्वंसावशेष अब भी तीर्थकर महावीर द्वारा प्रचारित जैनधर्मक सम्बन्धमें जो वर्तमान है। उनके सम्बन्धमें अच्छी तरह अनुसन्धान करक अत्यन्त संक्षिप्त विवरण रहता है, उमको छोड़ कर हम कुछ ऐतिहासिक तत्त्वोंको खोजनेकी कोई उल्लेख योग्य चेष्टा नहीं भी नहीं जानते । जैनधर्म-सम्बन्धी विस्तृत अालोचना करनेकी हुई है। मैसूर राज्यक श्रवणबेलगोल नामक स्थानके चन्द्रलोगोंकी इच्छा भी होती है, पर अभी तक उसके पूर्ण होने- गिरि पर्वत पर जो थोड़ेसे शिलालेख प्राप्त हुए हैं, उनसे का कोई विशेष सुभीता नहीं है। कारण दो चार ग्रन्थोंको मालूम होता है कि मौर्यवंशके प्रतिष्ठाता महाराज चन्द्रगुप्त छोड़ कर जैनधर्म सम्बन्धी अगणित प्रन्थ अभी तक भी जैनमतावलम्बी थे। इस बातको श्री विन्संट स्मिथने अपने अप्रकाशित हैं। भिन्न-भिन्न मन्दिरोंके भण्डारोंमें जैन ग्रन्थ भारतक इतिहासके तृतीय संस्करण (१९९४) में लिम्वा छुपे हुए हैं, इसलिए पठन या आलोचना करनेके लिए ये है परन्तु इस विषयमैं कुछ लोगोंने शंका की है किन्तु अब दुर्लभ हैं। अधिकांश मान्य विद्वान इस विषयमें एक मत हो गये हैं। हमारी उपेक्षा तथा अज्ञता जैन शास्त्रोंमें लिखा है कि महाराज चन्द्रगुप्त (छ??) बौधर्मके समान जैनधर्मकी आलोचना क्यों नहीं पांचवे श्रुतकवली भद्रबाहुकं द्वारा जैनधर्ममें दीक्षित किये हुई? इसके और भी कई कारण हैं। बौद्धधर्म पृथ्वीके गये थे और महाराज अशोक भी पहले अपने पितामहस एक तृतीयांश प्राणियोंका धर्म है, किन्तु भारतकं चालीस ग्रहीत जैनधर्मके अनुयायी थे पर पीछे उन्होंने जैनधर्मका करोड़ लोगोंमें जैनधर्मावलम्बी केवल लगभग बीस लाग्य परित्याग करके बौद्धधर्म ग्रहण कर लिया था। भारतीय हैं। इसी कारण बौद्धधर्मके समान जैनधर्मके गुरुत्वका किसी विचारों पर जैनधर्म और जैनदर्शनने क्या प्रभाव डाला है, को अनुभव नहीं होता। इसके अतिरिक्र भारतमें बौद्ध इसका इतिहास लिखनेके समग्र उपकरण अब भी संग्रह प्रभाव विशेषताके साथ परिस्फुटित है। इसलिए भारतके नहीं किए गए हैं। पर यह बात अच्छी तरह निश्चित हो इतिहासकी आलोचनामें बौद्धधर्मका प्रसंग स्वयं ही कर चुकी है कि जैन विद्वानोंने न्यायशास्त्रमें बहुत अधिक उमति
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy