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________________ २८] धम्मे साहुहि पणतिउं आजिहि पैत् नाउं । उदैसाहि दिउ भीयाँ ए तीनिउ लघु भाई। टिहढा यार वसन्त देल्ह चउवीसी गाई ।। हउं तुम्हि गोरउ पुंछिउ बुद्धि कहा मइपाइ। तेरहसइ इकहत्तरे संवच्छरु होड । अनेकान्त [किरण १ मासु वसन्तु अतीतउ अलखइ तिज दिनु होइ। गुरवासरू पभणिज्जइ राहिणि रिसु गुणेहु । ब्रह्मा जोग पसिद्धउ जोइसु एम कहेइ । पढइ पढावइ णिसुगइ लिहि लिहा जो देह । भव-समुदु सो उत्तरइ मोक्व पुरह सो जाइ ।। (श्री दि. जैन अतिशयक्षेत्र श्रीमहावीरजीक अनुसंधान विभागकी ओरसे ) कुछ नई खोजें (पं० परमानन्द जैन ) १-भहारक धर्मकीर्ति मृलसंघ मरम्बनि गच्छ और यशोधर चरित्र । इनमें से प्रथम ग्रन्थ इन्होंने वि. बलात्कारगणके विद्वान ललितकीतिके शिष्य थे। मं०१५२६ के माघ महीनेकी सोमवारके दिन दो हज़ार यह सत्रहवीं शताब्दीक विद्वान थे। इनकी इस समय सरसठ (२०६७) श्लोकामे पूर्ण किया है। प्रत्य म्नदो कृतियाँ मेरे देखने में आई है । पद्मपुराण चरित्रको कविने संवत् १५३, में भ० लक्ष्मीनिके और हरिवंशपुराण । इनमें से प्रथम कृति पद्मपुराण पट्टधर भ० भीमसनके चरण प्रसादसे बनाकर समाप्त इन्होंने प्राचार्य रविषेणके पद्मचरितको देखकर उस- किया है । और तीसरा ग्रन्थ यशोधरारन है जिसकी रचना वि० सं० १६६८ में श्रावण महीनेकी की रचना कविने गोढिल्ल (गोंडवाना) देशके मंदपाट तृतिया शनिवारके दिन मालवदेशमें पूर्ण की थी। और (मेवाड़) के भगवान शीतलनाथके सुरम्य भवनमे सं० हरिवंशपुराण भी मालवामें संवत् १६७१ के आश्विन १९३६ पौष कृष्णा पंचमीके दिन एक हजार अठारह कृष्णा पंचमी रविवारके दिन पूर्ण किया था। ग्रन्थमें श्लोकोंमें पूर्ण किया है। इनकी अन्य क्या कृतियां हैं? कर्ताने अपनी गुरु परम्पराका तो उल्लेख किया है यह ज्ञात नहीं हो सका। यह विक्रमकी १६वीं शताकिन्तु अपने किसी शिष्यादिका कोई समुल्लख नहीं ब्दीके विद्वान थे। किया। और न यही बतलाया है कि वे कहांके भट्टा- ३-पंडित जिनदास वैद्य विद्यामं निष्णात विद्वान थे। रक थे। उनकी गुरु परम्पर क्रमशः इस प्रकार है:- ६० जिनदासके पूर्वज 'हरपति' नामके वणिक थे। देवेद्रकीर्ति, त्रिलोककीर्ति, सहस्त्रकीर्ति, जिन्हें पद्मावती देवीका वर प्राप्त था, और जो पेरोसाहि पभनन्दी, यश कीर्ति, ललितकीर्ति और नरेन्द्रसे सम्मानित थे। उन्हींके वंशमें 'पद्म' नामक श्रेष्ठी धर्मकीति हुए, जिन्होंने अनेक दान दिये और ग्यासशाह नामक २ भट्टारक सोमकीति काष्ठासंघ स्थित नन्दी तट- राजासे बहुमान्यता प्राप्तकी। इन्होंने साकुम्भरी नगरीमें गच्छके रममेनान्वयी भट्टारक भीमसेनके शिष्य विशाल जिनमन्दिर बनवाया था, वे इतने प्रभावशाली और नमीसेनके शिष्य थे। जो भ. रत्नकोर्तिके थे कि उनकी आज्ञाका किसी राजाने उल्लंघन नहीं किया। पट्टधर थे। इनकी तीन रचनाएं मेरे अवलोकनमें पाई मिथ्यात्व घातक तथा जिनगुणोंके नित्य पूषक थे। है, सप्त व्यसन कथा समुच्चय, प्रद्युम्न, चरित्र, और इनके पुत्र का नाम 'बिझ' था, जो वैचराट् थे । विमने
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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