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श्रीबाहुबलीकी आश्चर्यमयी प्रतिमा
[भाचार्य श्रीविजयेन्द्रसरि ] श्रवणबेलगोल नामके ग्राममें प्रतिविशाल, स्थापत्य है। अवयवेखगोखवाली प्रतिमाकी ऊंचाई कीट है। कलाकी रप्टिसे अद्भुत एक मनुष्याकार मूर्ति है, जो इसके विभिन्न अंगोंकी मापसे इसकी विशालताका अनुमान श्रीबाहुबलीकी है यह मूति पर्वतके शिखरपर विद्यमान किया जा सकता है। है और पर्वतकी एक बृहदाकार शिक्षाको काटकर इसका परमसे कान अधोभाग तक ०." निर्माण किया गया है। नितान्त एकान्त वातावरणमें स्थित कामके अधोभागसे मस्तक " यह सपोरत प्रतिमा मीलों दूरीसे दर्शकका ध्यान अपनी
चरबकी बम्बाई भोर माकृष्ट करती है।
चरबके मनमागकी चौड़ाई ४-" श्रवणबेलगोलगांव मैसूर राज्यमें मैसरसे १२मासिकेरी
चरमका अंगूठा 'स्टेशनसे ४२, हासनशहरसे ३१ और चहरायपहनसे -
कातीकी चौदाई मीजकी दूरीपर है।इसके पासही हवेलमोख और कोटी
पहब मूरे मनाइट पत्थरके एक विद्यालयको बेलगोल नामके गाँव है, उनसे पृथक् दर्शाने के लिए ही इसे काटकर बनाई गई है और जिस स्थानपर स्थित है, वहीं श्रमण अर्थात् जैनसाधुनीका बेलगोल कहा जाता है। पर ही निर्मित की गई थी।कारका बाखी प्रतिमा भी उसी बेलगोल कसदभाषाका शब्द है और इसका अर्थ है। पत्थरकी है और उसकी उंचाई ४२ कीट प्रबुमानतः श्वेत सरोवर इस स्थानपर स्थित एक सरोवरके कारण ही बह मन भारी है। इन विशालकाय प्रतिमानों में सम्भवतः यह नाम पड़ा है। इस सरोवरके उत्तर और बेपुर वाली प्रतिमा सबसे छोटी है,इसकी उंचाई. कीट दक्षिण में दो पहादिया है और उनके नाम क्रमशः चन्द्र- कलात्मकरष्टिसे तीनों एक होनेपर भी बेखरकी प्रतिमाके सिर और विध्यगिरि है। इस विध्यगिरिपर चामुखरायने पोलोंमें गवलेसे है जो गंभीर मुस्कराहटकासा भाव बाहाबली अथवा भुजवलीकी-जिनका बोकमसिब नाम लिए है। सम्भवतः उसके प्रभावोत्पादक भावमें गोम्मटस्वामी या गोम्मटेश्वर है-विशाल प्रतिमाका निर्माण
म्यूनता मा गई है। कराया। यह मूर्ति पर्वतके चारों ओर १५ मीलकी रीसे
अवयवेखगोलकी प्रतिमा तीनोंसे सर्वाधिक प्राचीन दिखाई देती है और चचरायपहनसे वो बहुत अधिक अथवा विशाल ही नहीं किन्तु ढालू पहावीकी चोटी पर स्पष्ट हो जाती है।
स्थित होनेके कारण इसके निर्माणमें बड़ी कठिनाइयोंका इस विशाल प्रतिमाके आसपास बादमें चामुखरापका सामना करना पड़ा होगा। यह मूर्ति उत्तराभिमुख सीधी अनुकरण करके वीर-पाएज्यके मुख्याधिकारीने १४१२. सदी और दिगम्बर है। जांघोंसे उपरका भाम बिना में कारकत मूडबिद्रीसे २२ मीबामें गोम्मटेश्वरकी दूसरी किसी सहारे है उस स्थडकबहबल्मीकसे पाच्छामर्ति बनवाई। कुछ काल बाद प्रधान तिम्मराजने बेसूर
ति। जिसमेंसे सांप निकलते प्रतीत होते हैं। उसके मरवितीसे १२ मील और अवयवेबमोबसे १६.मीख में
मोर मा. सन् १६०४ई. में गोम्मटेश्वरकी उसी प्रकारकी एक और
ईहै और बता अपने अन्तिम हिरों पर पुष्प गुपयोंसे प्रतिमा निर्मित करवाई। इन तीनों निर्माणकाल में अन्तर
- - होनेपर भी तीनों एक ही सी हैं। इससे जेनकबाकी एक- इस प्रतिमाके निर्माता हैं शिल्पी अरिष्टनेमि । शन्होंने नियम-पता और प्रविधि प्रवाहका परिचय मिलता है। निर्माता निर्माताले
है कि उसमें किसी प्रकारका दोष निकाल सकना सम्भव प्रतिमाएं संचारके पाश्चों में से है। श्री रमेशचन्द्र महींहै। सामुद्रिकशास्त्रमें जिन अंगोंका वीर्ष और बना मजमदारके विचारसे तो बह प्रतिमाएं विश्वभरमें अद्वितीय होना सौभाग्य-सूचक माना जाता हैअंग से ही है।
प्रतिमा