________________
२६६]
अनेकान्त
[किरण
-
कन्यककि गुरु मशरक पचनन्दि हैं जो महारक राजस्थानमें प्राप्त हुई है। इस सब विवेचनसे स्पष्ट है प्रमाचन्द्र के पट्टधर थे जैसा कि 'मल्लिनाथचरिड' की कि उक्त दोनों के कर्ता कवि हरिचन्द वा जमित्रहल विक्रमअन्तिम प्रशस्तिक निम्न वाक्यसे प्रकट है जिसमें पन- की १५वीं शताब्दीके प्रारम्भिक विद्वान है। मन्दिको प्रभाचन्दके पट्टधर होनेका स्पष्ट उल्लेख है-
आराधनासार-स प्रन्यके कर्ता कवि वीर हैं ये मुखि पहचंद पट्ट सुपहावया, पउमणंदिगुरु विरिय उपावण। कर हुए हैं और उनकी गुरु परम्परा क्या? यह प्रन्य जिनका समय विक्रमको ७वीं शताब्दीका अन्तिम चरण परसे कुछ भी ज्ञात नहीं होता। यह पीर कवि 'जम्बस्वा
और वीं शताब्दीका प्रारम्भिक समय है क्योंकि पहा- मी चरित' के कर्तासे संभवतः भिम जान पड़ते हैं जिसका बखियोंमें पानन्दीके गुरु प्रभाचन्दके पट्ट पर प्रतिष्ठित रचनाकाल विक्रम संवत् १०७६ है प्रस्तुत प्रम्पमें दर्शन समय संवत् १५७९ बनाया गया है।
ज्ञान, चारित्र, और तप रूप चार माराधनामोंका स्वरूप पानन्दी मूबसंघ, नन्दिसंघ,बलात्कारगद और सर२० करवकोंमें बतलाया गया है। जो भामेर भंडारके एक स्वती गच्छके विद्वान थे। यह उस समयके अत्यन्त प्रभाव बड़े गुटके में पत्र ३३३ से ३३% तक दिया हुमा है। शासी विद्वान भहारक थे। इनकी कई कृतियाँ उपलब्ध इन प्रन्थोंके अतिरिक्त और भी अनेक ग्रन्थ अपनशहा है। जिनमें पदमन्दिचावकाचार प्रमुख है, दूसरी भाषाके रासा अथवा 'रास' नामसे सूचियोंमें दर्ज मिलते कृति 'भावन पद्धति' जिसका दूसरा नाम 'भावनाचतुस्त्रिं- है, परन्त उनके अवलोकनका अवसर न मिलनेसं यहाँ परिएतिका'तीसरी कृति वर्धमान चरित' है जो संवत् ११२२ चय नही दिया जा सका। फागुण सुदि सप्तमीका लिखा हुआ है और गोपीपुरा दोहानुप्रेक्षा-इस अनुप्रेक्षा प्रन्यके कर्ता अन्य सरतके शास्त्रमंडारमें सुरक्षित है। इनके सिवाय 'जीरा- प्रतिमें लचमीचन्द्र बतलाए गये हैं. परन्तु उनकी गुरु परपछी 'पारवनाथ स्तवन' और अनेक स्तवन, पद्मनन्दि म्पराका कोई परिजन नहीं हो सका । प्रन्थमें ४७ दोहे हैं मुनिके द्वारा बनाए हुए उपलब्ध हुए हैं। इनके अनेक जिनमें १२ भावनामोंके अतिरिक्त अध्यात्मका संक्षिप्त वर्णन शिष्य थे. जिनमें अनेक शिव्य तो बड़े कवि और अन्य कर्ता दिया हुआ है। यह ग्रंथ अनेकान्तकी इसी किरणाम अन्यत्र हुये हैं। जिनमें म. सकलकीर्ति और भ.शुभचन्द्र के नाम दिया जा रहा है। उस्लेखनीय है। इनके एक शिष्य विशासकीर्ति भी थे दिगम्बर शास्त्रभयारों में अभी सहस्त्रों प्रन्थ पढ़े जिनके द्वारा सं० १४७० में प्रतिष्ठित २६ मूर्तियाँ टोंक हए है जिनके देखने या नोट करनेका कोई अवसर ही नहीं x भीमप्रसाचन्दमुनीद्रपट्टे शश्वप्रतिष्ठा प्रतिभा गरिष्टः। पाया है। जैन समाजका इस ओर कोई सय भी नहीं विश्वसिद्धान्तरहस्यरस्नरत्नाकरी नन्दतु पद्मनन्दो है। खेद है कि इस उपेचा मावसे अनेक बहुमूल्य कृतियाँ
-विजोखिया शिलालेख नष्ट हा गई हैं और हो रही हैं। क्या सम जके साधर्मी इसो ज्ञानमराखिका समसमाश्वेषप्रभूताभुता
भाईब भी अपनी उस गाढ निद्राको दर करनेका बस्न न कोडति मानसेति विशदे यस्यानिशं सर्वतः। स्वादादाससिन्धुवर्धनविधौधीमध्यमे दुधमार,
-सरसावा (सहारनपुर),ता. १२-12-1 पर सूरिमछिका स जपतात् श्रीपद्मनन्दीमुनिः ॥
संवत् ११०० ज्येष्ट सुदि, गुरौ श्रीमूलसंधे महाबतपुरन्दरामदग्ध रागाः ।
गुणे (गच्छे) लोकगण उद्धारक श्री प्रभाचन्द्रदेवः (तद) स्फुरत्परमपौरुषःस्थितिरशेषशास्त्राषित् । पई पदमनम्ति देवाः शिष्यः वशालकीर्तिदेवः तयोरुपदेशेन यशोभरमनोहरी कृतसमस्तविश्वम्भरः,
महासंघ खंडेलवाल गंगवाल गोत्रस्य खेता भार्या खिवापरोपकृतितत्परो अयति पद्मनन्दीश्वरः॥
सिरी यो पुत्र धर्मा भार्या जल यो पुत्रत्रयःसा. भोजा, -शुभचन्द्र गुर्वावती राजा, देदूमयमंति[नित्यम् ।
करेंगे।