________________
किरण ]
१४वीं शताब्दीकी एक हिन्दीरचना
[२५
कम्मक्खय कारण णिमित देल्ह तुम्हि रचहु कवित्त विजसु जाखिणी तिहि कहियउ नाउँ । दुसमु कालु पंचमढं धम्मकी दिन दिन हाणा।
जक्खेसुरु सो जक्खु भणि सासण रखवाल। बोधि करहु फलु लेहु कहहु चउवीस बखाणी॥ धनुसर खेटकु' पाणिहि किकिणि सा हुवा मालू । गौरउ पभणइंणिसुणि णाह हउ दासि तुम्हारी। पुव्व लक्ख पंचास कहिउ पास परिमाणु । जिण चउवीस कर्थतरूसो मुहिकहह विचारी॥ सम्मेदागिरिवर चदेवि लद्धउ णिबाणु ॥४॥ वर्णनीय विषय ।
(५ सुमतिनाथ) बापु माय तित्थंकरू जनमु नयरू अरू पाउ।
मेघराउ अवधापुरि सुभ मंगल जसु नारी। जक्खु जक्खिणी लंछणु अरु जिहि जेतउ काउ।
सुमतिनाथ तसुनंदण सामी कहहु विचारी। (१ आदिनाथ )
धनुष तीनि सइ काया लेखण चकहा जोल । णाभिनरिंदु नरेसरु मरुदेवी सु-कलत्ता।
तुबरु जक्खु भणिज्जा संसारिणि ? जसु देवि । तसु उरि रिसहु उवएणो अवध वंदाहिकत्ता ।।
पुव्वलक्ख चालीस भाऊ सो कहिउ निरुत्त । पुणि कहि हउ आउस पमाणु जिहि जेती सखा ।
सम्मेदह गिरिवर चढेवि णिव्वाण पहुंतु ॥४॥ आदिनाथ जिण कहिय आउ पुव्व चउरासी लक्खा
(६ पद्मप्रम) वृषभ तासु तल लंछणु अति सरूपु सुरतारू। पद्मपहु कउसंवी सामीलाइसु वंदाऊ । गोमुख जक्खु चक्केसरू, धरणुसह ५'च शरीरु॥ गुहसीमादे जसु माता धरणेसरू जसुताऊ । बड पयाग तलै रिक्षा बोल वच्छ निरुत्त । पुप्फा शुवि सो जक्खु कहिउ, मोहिणि क्खिणि जासु कैलासह गिरिवर चडे वि निव्वाण पहुंतु ॥१॥ सयइ अढाइ घणु तणु लंछणु कमलु पमाणु । (२ अजित नाथ )
तीस लक्ख पूरव प्रमाणु जिणघर निमुणिज्जइ।
कम्मक्खय कारण णिमितु जिन पूज रइज्जइ। पुणि पिय अजिउ बन्दाबहु अवध नयरि निह ठाऊ
सम्मेदह गिरिवर चडेवि कम्मक्खउ कीज्जा।६ विजयादे उर धरियउ जितसनु जिणेसर ताऊ ।।
(७ सुपाश्वं नाथ) पुत्व वहंतरि लक्ख श्राऊ वियह णिसणेह।
सुपट वाणारसी पृथिवीदे सु-कलत्ता। तासु चलण कमल हलवि, कुसुमंजलि देहू ।।
दुइसइ धनुप शरीरू जासु वन्दाबहु कंठा। चउड सइ धणु काया महाजक्खु तहि आही।।
बीस लक्ख पूरव निबद्ध जसु श्राउ पमाणु । अजिते जकारण सूमइ लंबणु गय वरु ताही
संमेदह गिरिवर चडेवि लद्धउ णिन्वाणु । सम्मेदद गिरिवरह जासु भइयउणिव्वाणु ॥२॥
मातंगवि सो जक्खु कहिउ जक्खिणि मोहि णिवि (३ संभवनाथ)
जिण सुपास लंछण सुस्तिकुतसु हई पूजइ बिम्बु ।।। शंभउ सामि बन्दाबहु साइति पुरह मझारी।
(८ चन्द्रप्रभ ) सेनादे जसु माता पिता नरिंदु जितारी।
महासेण चन्द्रापुरि लक्खुमादे जसु नारी। साठि लक्ख पूरव पमाणु संभव जिए आऊ ।
चन्द्रापहु तस नन्द लेछण ससिहरु वारी ॥ संमेदह गिरिवर चडे वि गउ शिवपुरि ठाउ॥ पुव्वलक्ख दस आहि आउ सो कहिउ निरुत्त । तिरिमुक्खु मक्खु णिज्जइ नम्मेदे जसु नारी।। संमेदह गिरिवर चडे वि णिव्वाण पतु ॥ लंछणु तुरिउ पासिउ कया घणु खसइ वारी १॥३ स्यामा जक्खु जसु कहियउ ज्यालामालिणि देवी। . (४ अभिनन्दननाथ)
धनुष डिउड्दु सउकाय अक्खइ दन्हु नवेवि ॥ ८॥ तासु संवरणु राजा सिद्धारथदे नारी।
(६ पुष्प दन्त) वंदरू लंछणु तल लसइ अहठधणु काया दुरितारी। किंकिंधी पुरियार राया सुग्रीव महंतु ।