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________________ हमारी तीर्थयात्रा के संस्मरण ( लेखक : परमानन्द जैन शास्त्री ) - श्रवणबेरगोल से चखकर हम लोग हासन आए। हामन मैसूर स्टेटका एक जिला है। यहाँ वनवासी के कदम्बवंशी राजाओंगे पोथी पांचवीं शताब्दीसे ११ वीं शताब्दी तक राज्य किया है। यहांका अधिकांश भाग जैन राजाओंके हाथमें रहा है। इस जिले में पूर्व कालमें जैनियोंका दा भारी अभ्युदय रहा है। वह इस जिलेमें उपलब्ध मूर्तियों, शिक्षालेखों ग्रन्थकारों और नत्र यदि हो जाता है [हासन दरने का कोई विचार नहीं था किन्तु रोड टैक्सको जमा करनेके लिए रुकमा पड़ा। यह केवल खारीका हा टेक्स नहीं लिया जाता किन्तु सवारियों से भी फी रुपया मवारी टैक्स लिया जाता है। इसमें कुछ अधिक विलम्ब होते देख म्युनिस्पल कमेटीके एक बाहमा लेकर मोहनादिका कार्य शुरू किया। मैं और मुकार साहब नहा लोकर शहरके मंदिर में दर्शन करने के लिए गए। शहरमें हमें पावड़ी में दो जिन मन्दिर मिले। जिनमें अन्य तीर्थंकर प्रतिमाओंके साथ मध्यमें भगवान पार्श्वनाथको मूर्ति विराजमान यो । दर्शन करके चित में बड़ी प्रसता हुई। परन्तु वहाँ और कितने मन्दिर हैं, यह कुछ ज्ञात नहीं हो सका और न वहाँ के जैनियोंका ही कोई परिचय प्राप्त हो सका। जल्दीमें यह सब कार्य होना संभव भी नहीं है मन्दिरजीसे चलकर कुछ शाही खरीदी और भोजन करनेके बाद हम लोग 1 बजेके करीब हासनसे २४ मील चलकर बेलूर आए यह वही नगर है, जिसे दक्षिण काशी भी कहा जाय या क्योंकि यहां राजा विष्णुवर्द्धनने जैनधर्मले वैष्णव होकर पेश' का विशाल एवं सुन्दर मन्दिर बनवाया था । बेलुरमे ११ मोक्ष पूर्व चलकर हम लोग 'इलेबीड' आये हमे दोर या द्वारसमुद्र भी कहा जाता है। जाता। बंध दान देने में दक्ष और विनयादि सद्गुषों प्रभाषन्द्र सिद्धान्तदेवी 'शच्या थी, जो मूळसंघ देशीयगया पुस्तके विद्वान् प्राचार्य मेषचन्द्र चैविद्यदेवके शिष्य थे, जिनका स्वर्गवास शक सं० १०३७ (वि० संवत् ११०२) में मगशिर सुदि १४ बृहस्पतिवार के दिन सद्ध्यानसहित हुआ था। उनके शिष्य प्रसिद्धदेव महाराज द्वारा उनकी नया बनवाई थी। जिनकी मृत्यु शक संवत् १०६८ (वि० संवत् १२०३ ) सुदि वृहस्पतिवार के दिन हुई बी x शान्तदेवीके पिताका नाम 'मारसिह और माताका नाम साविक था। इनकी मृत्यु शान्तलदेवीके बाद हुई थी। शाम्तलदेवीने शक सं० १०५० (वि० सं० १९८५ ) में चैनसुदि के दिन शिवगड़" नामक स्थानमा शरीरका त्याग किया था । राजा विवर्द्धन एक वीर एवं पराक्रमी शासक था । इसने मांडलिक राजाओं पर विजय प्राप्त की थी और अपने राज्यका खूब विस्तार किया था। पहले इस राजाकी आस्था जैनधर्मपर थी किन्तु सन् 1910 में रामानुजके प्रभावसे वैष्णवधर्म स्वीकार कर लिया था, और उसीकी म्यूतिस्वरूप बेलूर में विष्णु का विशाल मंदिर भी बनवाया था। यह मन्दिर देखने योग्य है। कहा जाता हूँ कि जैनियोंके ध्वंस किए गए मन्दिरोंके पत्थरोंका उपयोग इसके बनाने में किया गया है। उस समय हलेविड - में निय७२० निमन्दिर थे। जैनधर्मका परित्याग जैनियोंके करनेके बाद विष्णुवर्द्धनने उम जैनमन्दिरोंको गिरवा कर 'नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया था, इतना ही नहीं; किन्तु उस समय इसने अनेक प्रसिद्ध २ जैनियोंको भी मरवा दिया या और उन्हें अनेक प्रकारके भी दिये थे, जैनियों साथ उस समय भारी अन्याय और अत्याचार किये गए थे जिनका उल्लेख कर मै समाजको शोकाकुल नहीं बनना चाहवा 'सेबी' पूर्व समय जैनधर्मका केन्द्रस्थल रहा है किसी समय यह नगर जन धनसे समृद्ध रहा है और इसे होय के राजा की राजधानी बननेा भी देखें सेना संग्रह भाग १ नं. ४० (१२० ) । सौभाग्य प्राप्त हुआ है । राज्ञा विवर्द्धनको पहरानी २० (१४०) । चैनधर्म-पराया, धर्मनिष्ठा व शीक्षा, मुनिमा, चतु + शिलालेख मं० १३ (१४३) ।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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