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________________ २७०] अनेकान्त [किरण इस सब विवेचनसे स्पष्ट है किन तो एकमात्र वीतरा- व्यवहारमयके बाव्यका विरोधी है, वचनानयके दोषसे गता ही जैनधर्म है और न जैनशासनमें रागका मर्वथा दूषित है और जिनशासनके साथ उसकी संगति ठीक निषेधही निर्दिष्ट है अतः कानजीस्वामीका 'वीतरागता ही नहीं बैठती । जैनधर्म है इत्यादि कथन केवल निश्चयावलम्बी एकान्त है. (क्रमशः) साहित्य परिचय और समालोचन समालोचनाके लिये प्रत्येक ग्रन्थकी दो प्रतियां पानी आवश्यक हैं। १ अहिंसावाणीका पाश्वनाथ अंक-सम्पा- गया है । इस सव प्रयत्नके लिए बाबूकामता प्रदसादजी दक, बाबू कामताप्रसादजी, अलीगंज-(एटा)। प्रकाशक. धन्यवादके पात्र हैं। अखिल जैन विश्वमिशन, अलीगंज (पटा)। वार्पिक- गोरक्षा- सम्पादक श्री महेशदत्त जी शर्मा, मूल्य ४॥) रुपया। इस अंकका मूल्य २) रुपयः। अध्यक्ष, गोरक्षण साहित्य मन्दिर रामनगर, बनारस ___ 'अहिंमावाणी' का यह विशेषांक है। इसमें भगवान वार्षिक मूल्य २॥) रुपया विदेशम ५) रुपया। पाश्वनाथका जीवन-परिचय अंकित है। भगवान र्श्व गोरक्षाके दो अंक इम ममय मेरे मामने हैं । नाथको मुक्त हए तीन हजर वर्षके लगभग ममय हो इनमें गोरक्षा-सम्बन्धि अनेक अच्छे लग्य दिये हा हैं गया है, परन्तु फिर भी आज उनकी स्मृति और पूजा जिनसे ज्ञात होता है कि भारतके स्वतन्त्र हो जानेके इस बातकी द्योतक है कि उन्होंने वैदिक क्रियाकाण्डोंके बाद यहां गोकशी वहुत अधिक तादाद में होने लगी बिरुद्ध अहिंसा मार्गका प्रदर्शन करते हुए लोकमें सुम्ब है। चर्म उद्योग लिय जीवित पशुओंका चर्म उन्हें और शान्तिका अनुपम मार्ग प्रदर्शित किया था। इस भारी काट पहुँचा कर निकाला जाता है, जिसे देख व अंकमें उनके जीवन-सम्बन्धि अनेक चित्र दिये गये सुन कर महृदय मानवका दिल दहल उठना है, रोंगटे है, परन्तु उनसबमें कुमार पार्श्वनाथका 'वनविहार और खड़े हो जाते हैं। क्या यह अहिंसाका दुरुपयोग नहीं तायस सम्बोधन' नामका तिरंगा चित्र भावपूर्ण और है ? जबकि भारत जैसे गरीब देशमें शुद्ध घी दूधका चित्ताकर्षक है । सम्पादकजीने भगवान पार्श्वनाथके मिलना बहुत कठिन है। ऐसी स्थितिमें पशुधनका इम विहार-स्थलोंका मंक्षिप्त ऐतिहामिक परिचय देते हुए कदर संहार कियार किया जाना किसी तरह भी ठीक उनकी अनेक मूर्तियों और मन्दिरोंका उल्लेख किया है नहीं कहा जा सकता । मरकारको चाहिये कि वह और अनेक चित्र भी दिये हैं, जिनसे स्पष्ट मालूम अविलम्ब गोकशीको बन्द करनेका आदेश दे और होता है कि भगवान पार्श्वनाथकी महत्ता आज भी कम पशुधनकी रक्षाका प्रयत्न करे । जैन ममाज और अहिंनहीं है। यपि वे भगवान महावीरसे २५० वर्ष पूर्व माकी उपासक हिंदू समाजका कर्तव्य है कि वह जीवित हुए हैं । हां, जैन आचारांग (मूलचार ) से उनके पशुओंके चकड़ेसे बनी हुई चीजोंका उपयोग करना 'चातुर्यभिधर्मका पता चलता है। बंग और विहारमें छोड़ दें। इससे गोरक्षामें बहुत सहायता मिलेगी। पत्र पाश्वनाथका शामन विस्तृतरूपसे फैला हुआ था। इस अच्छा है आशा है उसे और भी आकर्षक बनानेअंकमें उपयोगी और पठनीय सामग्रोका संकलन किया का प्रयत्न किया जाएगा। परमानन्द जैन शास्त्री
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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