________________
विषय-सूची
श्रीपारवनाय स्तोत्रम् [श्रुतसातारसूरि] हमारी-तीर्थ यात्राके संस्मरण
[परमानन्द जैन शास्त्री वामनावतार और जैन मुनि विष्णुकुमार
[श्री अगरचन्द्रजी नाहटा गोम्मटसार जीवकाण्डका हिन्दी पद्यानुवाद
६. परमानन्द जैन शास्त्री
२३६ जैनसाहित्यका दोषपूर्ण विहंगावलोकन
[पं० परमानन्द जैन शास्त्री २१ २४॥ ६हिन्दी जैन साहित्यमें अहिंसा
[कुमारी किरणवाला जैन २५६ २४० समयसारकी १५ वीं गाथा और श्रीकानजी म्वामी
[सम्पादकीय २६५ २१५ साहित्य परिचय और समालोचन
२७.
समाज से निवेदन 'अनेकान्त' जैन समाजका एक माहित्यिक और ऐतिहासिक सचित्र मामिक पत्र है । उम में . अनेक खोज पूर्ण पठनीय लेख निकलते रहते हैं । पाठकोंको चाहिये कि वे ऐसे उपयोगी मासिक पत्रके ग्राहक बनकर, तथा संरक्षक या सहायक बनकर उसको समर्थ बनाए । हमें केवल दो सौ इक्यावन तथा एक सौ एक रुपया देकर संरक्षक व सहायक श्रेणीमें नाम लिखाने वाले दो मौ सजनां की आवश्यकता है। आशा है समाजके दानी महानुभाव एक मौ एक रुपया प्रदानकर सहायकीणीमें अपना नाम अवश्य लिखाकर साहित्य-सेवामें हमारा हाथ बंटायेगे।।
मैनेजर-'अनेकान्त' १ दरियागंज, देहली.
अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग
(.) अनेकान्त के संश्नक' तथा महायक' बनना और बनाना । (२) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना नया दमरोंको बनाना । (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवाना। (५) अपनी ओर से दूसरोंको अनेकान्त भेट-स्वरूर अथवा को भिजवाना; जैसे विद्या-संम्या लायबेरियां,
सभा-सांसाइटियां और जैन-अजैन विद्वानोको । (५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें देनेके लिये २५),२०) श्रादिकी महायता भेजना। २५ की
महायतामै १० को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। (१)अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा दिलाना । (७) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको
प्रकाशनार्थ जुटाना। मोट-दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंको
सहायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पता:'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेंट
मैनेजर 'अनेकान्त' स्वरूप भेजा जायगा।
वीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली।