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२२. ]
अनेकान्त
[किरण.
सकता है परन्तु इस लेखमें इस प्रश्न पर विचार करनेका एक दो शब्द कहना उचित होगा । गत मनुष्य-गणना प्रयत्न किया गया है कि जैन धर्मके चिर सम्पर्कसे हिन्द अनुसार सब मिलाकर २०००. गैनी इस प्रान्तमें थे, समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
, जिनमेंसे दक्षिण कनारा, उत्तर और दक्षिण कर्नाटक नीबोगरविन और ग्रंथोंक रचयिता थे।वे जिलोंमें २३...हैं। इनमेंसे अधिकतर इधर-उधर फेजे साहित्य और कलाके प्रेमी थे। जैनियोंकी तामिल हुए हैं और गरीब किसान और प्रशिक्षित हैं। उन्हें अपने सेवा तामिल देश वासियोंके लिये अमूल्य है । तामिल- पूर्वजोके अनुपम इतिहासका निकभी बोध नहीं है। उनके 'भापामें संस्कृत के शब्दोंका उपयोग. पहले पहल सबसे उत्तर भारत वाले भाई जो मादिम जैनधर्मके अवशिष्ट अधिक जैनियांने ही किया। उन्होंने संस्कृत शब्दोंको चिन्ह हैं उनसे अपेक्षाकृत अच्छा जीवन व्यतीत करते है वामि भाषामें उच्चारणकी सुगमताको इष्टिसे उनमेंसे अधिकांश धनवान् व्यापारी और महाजन हैं। यथेष्ट रूपमें बदल डाला । कम्नर साहित्यकी उत्पतिमें दक्षिण भारतमें जैनियाको विनष्ट प्रतिमाएं', परित्यक्त जैनियोंका उत्तम योग है। वास्तव में ही इसके जन्मदाता गुफाएं और भग्न मन्दिर इस पातके स्मारक है कि प्राचीन थे । 'बारहवीं शतीके मध्य तक उसमें जैनियों दीकी संपत्ति काल में जैनसमाजका वहां कितना विशाल विस्तार था थी और उसके अनंतर बहुत समय तक जैनियों ही की और किस प्रकार ब्राह्मणोंको स्पर्धाने उनको मृत प्राय कर प्रधानता रही। सर्व प्राचीन और बहुतसे प्रसिद्ध कर दिया। जैन समाज विस्मृतिके अंचल में लुप्त हो गया, ग्रन्थीमियाही के रचे हैं। (लुइस राइस) श्रीमाम् पादरी उसके सिद्धान्तो पर गहरी चोट लगी, परंतु दक्षिणमें जैनएफ-किटेल कहते हैं कि जैनियोंने केवल धामिक भाव- धर्म और वैदिकधर्मके मध्य जो कराल संग्राम और रक्तनामोंसे नहीं किन्तु साहित्य-प्रमके विचारसे भी कबर पात हुघा वह मथुरामें मीनाक्षो मंदिरके स्वर्ण कुमुद सरोभाषाकी बहुत सेवा की है और उक भाषा में अनेक संस्कृत वरके मण्डपकी दीवारों पर अङ्कित है तथा चित्रोंके देखनेसे शब्दोका अनुवाद किया है।
अबभी स्मरण हा आता है। अहिंसाके उच्च प्रादर्शका वैदिक संस्कारों पर प्रभाव
इन चित्रोंमें जैनियोंके विकराल-शत्रु निरुज्ञान संभायड पड़ा है जैन उपदेशोंके कारण ब्राह्मणोंने जीव-बलि-प्रदान- के द्वारा जैनियोंके प्रति अत्याचारों और रोमांचकारी यातको विक्कुल बन्द कर दिया और यज्ञोंमें जीवित पशुओंके
नाओंका चित्रण है। इस रौद्र काण्डका यहीं अंत नहीं है।
मयूरा मंदिरके बारह वार्षिक त्यौहारों से पांच में यह हृदय दक्षिण भारतमें मूर्तिपूजा और देवमन्दिर निर्माणको
विदारक दृश्य प्रतिवर्ष दिखलाया जाता है। यह मोचकर प्रचुरताका भी कारण जैन धर्मका प्रभाव है। शैव-मंदिरों में
शोक होता है कि एकांत और जनशून्य स्थानों में कतिपय महामाभोंकी पूजाका विधान जैनियों ही का अनुकरण जैन महात्मात्री और जैनधर्मकी वेदियों पर बलिदान हुए है। द्वाविदोको नैतिक एवं मानसिक उन्नतिका मुख्य
महापुरुषोंकी मूर्तियों और जन प्रतियोंके अतिरिक्त. दक्षिण
मार.. कारण पाठशालाभोंका स्थापन था, जिनका उद्देश्य जैन
भारतमें अब जैनमतावलम्बियोंके उच्च उद्देश्यो, सर्वाङ्गविद्यालयोंके प्रचारक मण्डलोंको रोकना था।
ग्यापी उत्साही और राजनैतिक प्रभावके प्रमाण स्वरूप उपसंहार
कोई अन्य चिन्ह विद्यमान नहीं है। मद्रास प्रान्तमें जैन समाजकी वर्तमान दशा पर भी
(वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ से)