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________________ विषय-सूची साधु-स्तुति ( कविता )-बनारसीदास पृष्ठ २१५ अहिंसा और जैन संस्कृतिका प्रसारवामिल प्रदेशों न धर्मावलम्बी [अनन्त प्रसाद जैन श्री प्रो. एम. एस. रामस्वामो आयंगर, एम०ए० २१६ संशोधन हमारी तीर्थ यात्रा संस्मरणहिन्दी अन-साहित्यमें तत्त्वज्ञान [परमानन्द जैन शास्त्री [ कुमारी किरणवाला जैन साहित्य परिचय और समालोचन-- समयसारके टीकाकार विद्वद्वर रूपचन्दनी[ अगरचन्दजी नाहटा २२० [परमानन्द जैन शास्त्री २२३ दीक्षा-समारोह ता २० दिसम्बर शनिवारके दिन वीरसेवा मन्दिर भाषण अत्यन्त प्रभावक हना और उन्होंने बौद्धधर्म और के तत्वावधान में आचार्य श्री १०८ नमिसागरजीका वैदिकधर्मके साथ जैनधर्मकी तुलना करते हुए उसकी दोषा समारोह कलकत्ता विश्वविद्यालयके इतिहासज्ञ श्री महचा पर प्रकाश डाला । अध्यक्ष महोदयने भी अपने ना. कालीदास जी नाग एम. ए. डी. लिट मेम्बर कौन्सि- भाषणमें जैनधर्मकी हिमाको विश्व शान्तिका ल आफ स्टेट की अध्यक्षता में अहिंसा मंदिर • उपाय बतलाते हुए विश्वका प्रिय धर्म बतलाया । डाक्टर दरियागंज देहली में सम्पन हुआ। देहलीकी स्थानीय साहबने जनताका ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि जनता के प्रतिक्ति हांसी, मेरठ, मवाना, रोहतक, पानीपत, इसी प्रसिद्ध स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधीने स्वतंत्रता आदि स्थानोस भी बहुत बड़ी संख्या में साधर्मीजन दिलाई। और मैं श्राशा करता हूँ कि जैनधा के सिद्धांत पधारे थे। व प्राचार्य श्री का उपदेश आत्म-स्वतंत्रताका प्रतीक श्री मोहन लाल जी कठोतिबा पं. जुगलकिशोरजी होगा। प्राचार्य महाराजने भी अपने भाषण में जैन मुख्तार, पं० दरबारीलाल जी न्या. सुकमालचन्द जी संस्कृतिकी रक्षा और जैनइतिहासकी आवश्यकता पर मेरठ, पं. शीलचन्द जी मवाना आदिने स्वयं उपस्थित प्रकाश डाला । और उन्होंने कहा कि सच्चा दीक्षा समारोह होकर अपनी श्रद्धांजलियाँ अपित की। ला. राजकृष्ण- साहित्यावार से ही सार्थक हो सकता है। जी ने महाराज श्री के जीवनका व अध्यक्ष डा कालीदासनागका परिचय कराया। पं. धर्मदेवजी जैतलीका जय कुमार जैन पुरस्करणीय लेखोंकी समय वद्धि अनेकान्त वर्ष १२ किरण २ के पृष्ठ १७ में प्रकाशित उसकी पूर्ति करते हुए तदनुकून अपने निवन्धको लिखनको ४२५) रुपयेके दो नये पुरस्कार नामक विज्ञप्तिको १५ वीं कृपा करें। इन निबन्धोंको भेजनेकी अन्तिम अवधि ३१ पंक्तिमें 'और' के भागे-'दूसरा लेख ६० पृष्ठा या दो दिसम्बर तक रक्खी गई थी। विन्तु अब उममें दो महीने हजार पंक्तियोंसे कमका नहीं होना चाहिये', ये वाक्य छपने की वृद्धि करदी गई है । अतः फरवरी सन् १९५४ के अन्त से छूट गया था, जिसका अभी हाल में पता चला है। तक निबन्ध भा जाना चाहिये। अतः विद्वान लेखक उक्त वाक्य छूटा हुमा समम कर -प्रकाशक 'भनेकान्त'
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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