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________________ x २०४] बनेकान्त इस तरह अशुद्ध पाठोंके प्रचारमें मानेसे प्रन्योंका श्रीने अपने इस ग्रंथका नाम 'सावय चम्म (गाथा रमे) महत्वथा मल खेलककी कोर्ति तोमर होती ही कई और उवासयज्मायण-उपासकाच्यवन (गाथा में) महापापकी कारणीभूत अन्यान्य विरुव परम्पराएं भी प्रकट किया है। प्रचलित हो जाती है। इस संस्करणके सम्पादक पं.हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्री दि.जैन समाजके एक मान हुए विद्वान् है। जैनाचार्योने शब्दादि, अर्थशुदिप शब्दार्थ गुदिन जिन्होंने भवसा टीकाके सम्पादन कार्य में भी अपना योग पूर्वक प्रयाध्ययनको 'ज्ञानाचारके पाठ अंगों में समाविष्ट किया है और ऐसा अध्ययन भारतीय संस्कृतिमें। सदासेट रहा है। यह तभी बन सकता है जबकि पाठ्य हमने उक्त संस्करणका अध्ययन किया तो रस अन्य पूर्व रूपेण शुद्ध हों। अभी अभी भारतीय ज्ञानपीठ बातसे बना दुस्ख हुमा कि सम्पादकने मूलपाठके चय-में फाशी द्वारा प्रावकाचारका एक नया संस्करण प्रकाशित 'काफी लापरवाहीसे काम लिया है जिससे मुलगाथाचों में हा है। जिसका संपादन माधुनिक शैलीसे कलात्मक प्रयाप्त भयावया रह गह। प्रस्तुत लेखमें हम उनकी हुवा है साथमें प्रस्तावना परिशिष्ट प्रादिक खगा नेसे संशोधित तालिका नीचे दे रहे है:प्रन्थकी उपादेयता काफी बढ़ गई है पर प्रन्थमें यदिपत्र वसुनन्दि श्रावकाचारका पाठ संशोधन कान होना काफी खटकता है। गाथा संख्या प्रतिका पाठ शुद्ध पाठ इस ग्रन्थके मुखकर्ता प्राचार्य वसुनन्दि हैं जो कुश- क णायारो भणयारो (१) बकवि थे और मुलाचार, भगवती माराधना मावि सिद्धान्तप्रायोंके मर्मज्ञ थे, अतएव वे सैद्धान्तिक कहलाते थे। अत्ता अत्तो मूलाचारकी वृत्ति+ इन्हीकी बनाई हुई प्रतीत होती है। ग्गाहण है। बायकतिक्रमण' 'ग्रन्थ' की पानाचना भक्तिके २२ ख मह मई अन्तर्गत पाई जानेवाली गायामोंसे और प्रतिक्रमणभक्तिके २१ सन्द गद सब ग अन्तर्गत पाई जानेवाली ग्यारह प्रतिमाओंके 'मिच्छा मे २६ पाहब पाहाण एप पाठ: परसे स्पष्ट है कि श्रावकप्रतिक्रमण पाठका .. माउं गोपी नूतन प्रतिसंस्कार शायद इन्हींका किया हुमा हो । ३३ क मोत्त इनका समय विक्रमकी १२ वीं शताब है। प्राचार्य ,, ख नं परिणयंतष्परिएई + दुखमा कोजिए बसुनन्दि भावकाचारको गाथा २१ से १४ १४ख सत्ताभूमो सो ताणं संततभूमो मो ताण (२) १८ तक मूलाचार परवश्यकाधिकारकी ४८ वी २१क फजभोयो फलपभोयत्रो (३) गावाकी वृत्तिसे। ख मोया भोया भोया भावा.) गांधी हरिभाई देवकरच जैन ग्रन्थमाला पुष्प में ३.. ताण पवेसो वाणुपवेसो (1) से ३५ तक की तब वायाोयमावासव... ४६ लवणवं""सम्मत्ते पूया भवरणं मादि गाथाके अलावा शेष २७ गाथाए और वासुनाद (पाठान्तर) (१) देखो श्रावकाचारकी गाथा ७, २०० से २१, ४ अपनशभाषाका 'सावयधम्मदोहा' ग्रंथका २.१,२७२, २०१, २०० और २६१ से १०॥ नामकरण भी इसी नाम परसे किया गया प्रतीत को देखिये। होता है। उसी भावक प्रतिक्रमब पृ० ॥ से ६. पर शिक्षा , अमगारः, स्वतंत्रभूता, देखो, मूलाचारवृत्ति बतोंके 'मिच्छा मे टुकाई' से बसुनंदि भावकाचार की पृ. १२५ आवश्यकाधिकार की ५८वीं गाथा ३ फलगाथा २१. से २१ और २०१-२०२ से तुलना प्रभोगतः। वफलभोगाभावात् ५ न अनुप्रवेशः । प्रधकारने भगवती माराधनामें,.कर्षित गुपोंका भी
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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