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________________ किरण कुरमका महत्व और चैनधर्म (२०२ उनके समयसारादि प्रन्योंको पदे बिना कोई यह बन्यो विभुम्भुवि न कैरिह कौण्डकुन्दः नहीं कह सकता कि मैंने पूरा जैन तत्वज्ञान प्रयापच्या- कुन्द-प्रमा-प्रणयिकीर्ति-विभूषिताशः। स्म वचा जान खी। जिस सूक्ष्म तस्वकी विवेचनाशैलीका यश्वास-चार -कराम्बुजचरीक- , प्राभास उनके मुनि जीवनसे पहले रचे हुए कुरखकाव्यसे अक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतप्रतिष्ठाम् ॥३॥ होता है वह शैनी इन ग्रन्थों में बहुत ही अधिक परिस्फुट तपस्याके प्रमावसे श्रीकृन्दकन्दाचार्यको 'चार होगा।येथ ज्ञानरत्नाकर है, जिनमे प्रभावित हो- अदि प्राप्त हो गई थी जिसका किउल्लेख अवयवेखगोखले कर विविध विद्वानोंने यह उति निश्चत की है-हुए अनेक शिलालेखोंमें पाया जाता है। तीनका ग्वाब होयेंगे मुनीन्द्र कुन्दकुन्दसे ।' हम यहाँ देते हैं:पीछेके अन्धकार्गने वा शिलालेख लिखनेवाओंने कुन्द- तस्यान्वये विदिते बभूव यापयनन्दि प्रथमामिधानः कुमको मूजसंयोमेन्दु' 'मुनीद्र''मुनिचक्रवर्ती 'पदोंसे श्रीकुण्डकुन्दादिमुनीश्वराख्यः सत्संयमाद्द्तचारणदिर भूषित किया है। इससे हम सहजमें ही यह जान सकते श्रीपद्मनन्दीत्यनवधनामायाचाय्यशब्दोचरकोयनकुनः है कि उनका व्यक्तित्व कितना गौरवपूर्ण है। दिगम्बर द्वितीयमासीदभिधानमुद्यरित्रसंजातसुचारणद्धिः ॥ जैमसंघके साधुजन अपनेको कुन्दकुन्द भाम्नायका घोषित 'रजोभिरस्पृष्टतमत्वमन्त- पिसव्ययितु यतीशा। करने में सन्मान समझते है। वे शास्त्र-विवेचन करते समय , रज पदं भूमितलं विहाय चचार मन्ये चतुरसंगुलं सः। प्रारम्भमें अवश्य पढ़ते हैं कि: इन सब विवरणोंको पढ़कर हक्यको पूर्ण विश्वास 'मगल भगवान वीरो मंगलं गौतमोऽप्रणी। होता है कि ऐसे ही महान् प्रन्यकारकी कलमसे रखाकी मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।। रचना होनी चाहिए। इनके रचे हुए च रासी प्रामृत (शास्त्र सुने जाते हैं पर अब वे पूरे नहीं मिलते, प्रायः नीचे लिखे प्रन्थ ही कुरलकताका स्थान :मिलते हैं:-(.)समयसार, (२) प्रवचनसार, (.) इस वक्तव्यको पढ़कर पाठकोंके मन में यह विचार पंचास्तिकाय, (.) अष्टपाहुक, () नियमसार (६) उत्पन्न अवश्य होगा कि कुरव भादि मन्धोंके रचियता (.) द्वादशानुप्रेचा (८) रयणसार, ये सब ग्रन्थ प्राकृत श्रीएलाचार्यका दक्षिण में बह कौनसा स्थान जहां भाषामें है और प्रायः सबही जैन शास्त्र भयडारांमे पर बैठकर उन्होंने इन अन्धोका अधिकतर प्रवचन किया मिलते हैं। भाः इस जिज्ञासाकी शान्तिके लिए हमें नीचे लिखा ऐया भी उल्लेख मिलता है कि उन्होंने कोह- माप देखना चाहिए। कुन्दपुरमें रहकर षट् खण्डागम पर बारह हजार श्लोक दक्षिणशे मलये हेमनामे मुनिमहात्मासीत् । परिमित एक टीका लिखा थी जो अब दुधाप्य है। समय एलाचार्यों नाम्ना द्रविडगणाधीश्वरो घोमान् । सार प्रन्यपर विविध भाषाओं में अनेक टीकाएं उपलब्ध है। हिन्दोके प्राचीन महाकवि पं. बनारसीदासजीने यह श्लोक एक हस्तलिखित 'मन्त्रलपण' नाम इसके विषयमें लिखा है कि "नाटक पढ़त हिय फाटक प्रन्यमें मिलता है, जिससे ज्ञात होता है कि महात्मा खुजत है" समयसार 'प्रवचनसार और पंचास्तिकाय ये एजाचार्य दक्षिण देशके मलयप्रान्तमें हेमग्राम निवासी तीनों ग्रन्थ विज्ञसमाजमें नाटकवायो नामसे प्रसिद्ध है और थे, और विदसंबके अधिपति थे। यह ईममाम को तीनों ही अन्य निःसन्देह भात्मज्ञानके पाकर है। है इसकी खोज करते हुए श्रीयुत मक्खिनाथ पावती इन सब प्रन्योंके पठन पाठनका बह प्रभाव जमा कि एम.ए.एस..ने अपनी प्रवचनसारकी प्रस्तावनामें दक्षिणापथसे उत्तरापथ तक प्राचार्यकी उज्वल कीर्ति लिखा है कि-'मद्रास प्रेसीडेन्सीके मजाया प्रदेश कागई और भारतवर्ष में वे एक महान भास्मविद्या प्रसा- 'पोन्नूरगाँव' को ही प्राचीन समयमें हेमनामकरदे रक माने जाने बगे, जैसा कि अषणबेलगोलके चन्द्र थे और सम्भवतः यही पडकुन्दपुर , इसीके पास गिरिस्थ निम्नलिखित शिलालेखसे प्रकट होता है:- नीलगिरि पहाब पर बीएखाचार्यको चरणपादुकापनी
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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