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________________ ११४] भनेकान्त [किरण ४ था, पर दक्षी विलोती हुई स्त्रियांकी वेणीका इधर उधर श्री अमरचन्द्रमूर्तिः पण्डितमहेन्द्र शिष्य-मदनचन्द्राख्येन घूमती हुई देखकर मालूम होता है कि मदन पुनः अपना कारिता शिवमस्तु ।' प्रभाव विस्तार करता हुमा मानो तलवार चला रहा है। (प्राचीन जैन लेख संग्रह द्वितीय विभागे घेखांक ५२३) वेणी कृपाणके दृष्टान्त रूप अनोखी सूझको देखकर प्रस्तुत मूर्तिसे पापका स्वर्गवास सं. १३४७ के पूर्व ही कवियों ने इनका विरुद्ध 'वेणीकृपाण' के नामसे प्रसिद्ध हो चुका, सिड होता है। कर दिया। आपके रचित प्रन्थोंमेंसे 'बालभारत' प्रसिद्ध प्रन्थ है, महाराष्ट्र में भाप राजाओंसे पूजित हुए और महा- जिसे निर्णयसागर प्रेससे प्रकाशित काग्यमानामें प्रकाशित कविरूपमें ख्याति प्राप्त की, जिसे सुनकर विद्याप्रेमी किया जा चुका है। पद्मानंद काग्य आपकी कविप्रतिमागूर्जरेश्वर बीसलदेवने अपने प्रधान जलाको भेजकर का अनुपम परिचय देता है। यह काम्य गायकवाद अपनी राजधानी धवलक में बुलाया। जिस दिन आप पीरियन्टल सिरीजसे प्रकाशित हो चुका है। 'काव्यसभामें उपस्थित हुप राजकवियोंने विविध विचित्र समस्यायें कल्पलता' नामक काव्यशिक्षाका महत्वपूर्ण प्रभ चौखम्बा देकर आपकी कविप्रतिमाकी परीक्षा ली । प्रबंधकोषमें सिरीज, बनारससं प्रकाशित हो चुका है। इनके अतिरिक्त कहा गया है कि इस विद्याबिनोदमे राजसभा के लोग 'स्यादिशब्दसमुरचय' नामक चौथं ग्रंथका पण्डित जालइतना काव्य-रसानुभव करने लगे कि सभासदो और राजा. चन्द भगवानदास गांधाने बहुत वर्षपूर्व प्रकाशित किया है। ने उसदिनका भोजन भी नहीं किया। कवि अमरके काव्य- आपका 'छंदोरत्नावली प्रन्य कई श्वेताम्बर ज्ञानभंडारोंमें रसके प्रास्वादसे मानों उनका उदर लबालब भर गया। प्राप्त है, परन्तु अभीतक प्रकाशित नहीं हुआ है । प्रबंध. १०८ समस्यामोंकी पूर्ति करके आपने मंडली और राजा- कोषमे उल्लेखित आपके कलाकलाप और सूक्कावली ग्रंथों को चमत्कृत कर दिया। फिर तो राजसभामें आपका बड़ा की प्रतिका अभी किसी ज्ञानभंडारोंमें पता नहीं चला। सम्मान होने लगा और इनके विशेष प्रभाव एवं समागम अतः अन्वेषणीय है। सूक्तावली नामक ग्रंथों की कई प्रतियें संवीसलदेव जैनधर्मका प्रेमी बन गया । प्रबन्धकोशके ज्ञान भंडारसे प्राप्त होती है । संभव है, भली भांति जांच अनुसार नृपति जैन मंदिरोंमें नित्य पूजा करने लगा था करने पर उनमेसे कोई प्रति आपके रचित सूक्तावलीकी एक बार राजा ने आपसे इनके कलागुण सम्बन्ध भी मिल जाय । प्रबन्धकोशमें आपकी की हुई १०८ सममें पूछा तो आपने परिसिह का नाम लिया। नृपतिने स्यानांकी पूर्तिका निर्देश करते हुए एक दो समस्यापूति उसे बड़े सरकारके साथ बुलाया और उसकी काव्यप्रतिभा वाले श्लोक उद्धत किये हैं। राजसभामें विद्याविनोद से प्रसन्न होकर ग्राम आदि भेंट किये । वीस देवका समय करते हुए समय-समयपर आपने ऐसे प्रासांगिक फुटकर सं० १३.० से १३२० तक का है। कई प्रबंधोंमें सं० श्लोक और भी रचे हांगे जो प्राप्त होने पर प्रापकी कवि १२९५ से १३१८ तक का भी लिखा है। इसलिये कवि प्रतिभा का अच्छा परिचय उपस्थित कर सकते हैं। सूक्ताअमरचन्दका समय भी यही सिद्ध होता है। जिस पम- वली में सम्भव है कि आपके समस्यापूर्ति और फुटकर श्राव के यहाँ रहकर अपने 'सिद्धसारस्वत' मंत्रकी श्लोकोका संग्रह हुआ हो इसलिये इस ग्रन्थका महत्व पाराधनाकी उसके कथनसे आपने 'पद्मानंद महाकाव्य' और भी बढ़ जाता है। विद्वानों का ध्यान कवि अमरचन्दबनाया। उपदेशतरंगिणीके अनुसार महामंत्रो वस्तुपाल के इन दोनों अनुपलब्ध ग्रंथोंकी शोधके लिये प्राकृष्ट कोअस्मिन्नसार संसार सारं सारंगलोचना । यस्कुषि- किया जाता है। प्रभवा एते वस्तुपाला भवारशः।' इस श्लोकको सुनाकर इस प्रकार 'वीतरागस्तवनम्' के रचयिता 'वेशीकृपाण' चमत्कृत करने वाले कवि अमरचन्द ही थे । पाटणके विशेषण विभूषित महाकवि अमरचन्द्रसूरिका संक्षिप्त रोगदियावादाके जैन मंदिरमें भापकी मूर्ति अब भी विद्य- परिचय यहाँ उपस्थित किया गया है। कविका 'पद्मानंद मान है। जिसका लेख इस प्रकार है -"संवत् १३४६ चैत्र काव्य' इस समय मेरे सम्मुख नहीं है। संभव है उसकी वदी ६ शनी वायटीय गच्छे श्री जिनदत्तसूरि शिष्य पण्डित प्रस्तावनासे और भी कुछ विशेष ज्ञातम्यका पता चले ।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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