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माता और पुत्रका दुःसह-वियोग !! अनेकान्त-पाठकोंको यह जानकर दुःम्व तथा अफसोस हए बिना नहीं रहेगा कि उनके चिरपिरिचित एवं सेवक पं. परमानन्द जी शास्त्रीको हाल में दो दुःसह वियोगोंका सामना करना पड़ा है ! उनकी पूज्य माताजी का ता. २८ अगम्तको शाहगद (सागर) में स्वर्गवास हो गया और उसके तीन दिन बाद (ता. ३१ अगस्तको)। उनका मझला पुत्र राजकुमारभी चल बसा !! दानांकी मृत्युक समय पंडितजी पहुंच भी नहीं पाए। इस प्राकस्मिक वियोगमे पंडितजीको जो कष्ट पहुँचा है उसे कौन कह सकता है ? उनकी पत्नी के वियोगको अभी दो वर्ष ही हो पाए थे कि इतने में ये दो नये आघात उनको और पहुंच गये ! विधिकी गनि बही विचित्र है, उसे कोई भी जान नहीं पाता। एक सम्यग्ज्ञान अथवा सद्विवेकक बिना दुसरा कोई भी से कठिन अवसरों पर अपना सहायक और संरक्षक नहीं होता : पंडितजीके इस दुःखमें वीरमेवामन्दिर परिवारकी पूरी सहानुभूति है और हादिक भावना है कि दोनों प्राणियोंको परलोकमें सदर्गातकी प्राप्ति होवे । माथही पंडितजीका विवेक सविशेष रूपसे जागृत होकर उन्हें पूर्ण धैर्य एवं दिलासा दिलाने में समर्थ होवे ।
श्रोबाहबलि-जिनपूजा छपकर तय्यार !!
श्री गोम्मटेश्वर बाहुबलिजी की जिस पूजाको उत्तमताके साथ छपानेका विचार गत मई मासकी किरणमें प्रकट किया गया था वह अब संशोधनादिके माथ उत्तम आर्टपेपर पर मोटे टोइपमें फोटो ब्राउन रङ्गीन स्याहीसे छपकर तैयार हो गई है । साथमें श्रीबाहुबली जीका फोटो चित्र भो अपूर्व शोभा दे रहा है । प्रचार की दृष्टिसे मूल्य लागत से भी कम रखा गया है। जिन्हें अपने तथा प्रचारके लिये आवश्यकता हो वे शीघ्र ही मंगालेवें; क्यों कि कापियाँ थोड़ी ही छपी हैं, १०० कापी एक साथ लेने पर १२) रु. में मिलेंगी । दो कापी तक एक आना पोष्टेज लगता है। १० से कम किसीको वी. पी. से नहीं भेजी जाएंगी।
मैनेजर-वीरसेवामन्दिर'
दरियागंज, दिल्ली। अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग (.)अनेकान्तके 'संरक्षक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना। (२) स्वयं अनेकान्तक ग्राहक बनना तथा दृसको बनाना। (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी महायता भेजना तथा भिजवाना। (४) अपनी ओर से दूसराको अनेकान्त भंट-स्वर अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्या-संस्थाना लायन रिया,
सभा-सोसाइटियां और जैन-अजैन विद्वानोको। (५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमे देनके लिये २५),५०) श्रादिकी सहायता भेजना। २५ की
सहायतामें १० को अनेकान्त अ"भृक्यमे भेजा जा सकेगा। (६) अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमे दना तथा दिलाना । (७) लोकहितकी साधनामें महायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको
प्रकाशनार्थ जुटाना। नोट-दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंकी
। सहायनादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पताः'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेट
मैनेजर 'अनेकान्त' स्वरूप भेजा जायगा।
! वीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली।