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किरण ३]
वंगीय जैन पुरावृत्त
पोदजानि
लित हैं। इनमें विधवा विवाह वर्जित है और तलाक भो
नहीं है। इनके गोत्र है-आंगिरस, पालव्याल, धानेधी, बंगालके उत्तर पश्चिमांश जिलों में पुराडोनातिके
सांडिल्य, काश्यप, भरद्वाज कौशिक, मौदगल्य, मधुकूल सम्बन्धमें ऊपर लिखा जा चुका है। उन्हीं जिला में से ।
और हमन इत्यादि । वैवाहिक नियम भी इनमें उच्चजामालदा, राजशाही. मुर्शिदाबाद और वीर ममें एक पोद
तियों की तरह के हैं। कुशरिका, व्यतीत विवादके पब नामक जाति भो निवास करती है पाद और पुण्डो
अंग ये पालन करते है पर सम्प्रदानको विवादका प्रधान (पुनरोसे ) दोनों ही की मूल जाति एक है। किन्तु
अंग ये मानते हैं। अब इनकी गणना सत् शुदामें की निवास स्थानकी दूरोके कारण उनका परस्पर सम्बन्ध भंग हो नही हो गया किन्तु ने एक दूपरेको अपनसे हीन
जाती है। पोद जाती खांटी कृषक जाति है। सम्झने लगे हैं।
प्रोफेसर पंचा सन मित्र, एम. ए. पी. आर. कुलतंत्र विश्वकोष और मर्दुम सुमारी Censur
एस में लिखा है कि "यह सम्भव है कि बंगाल के liepint से पता लगता है कि पौंड क्षत्रियोंके चार
पाद मूलतः जैनी होनेके कारण ति प्रस्त हुए हैं। विभाग है-जिनमें पुनरां तो उत्तर राढीय अंर दक्षिण
पोद (पुनरो) जाति पक्षा और परागकी मानोंसे राढोय इस प्रकार दो राढा विभागांको और पोद बंगज
धन संचय कर चुके हैं। दक्खनका 'पदिर' नामक स्थान और पोइज (उडिया विभागांका प्रदर्शित करते हैं।
इन्हीं पांदगणोंक नामसे प्रसिद्ध हुमा मालुम होता है।
पन्ना पमराज खनिज रनोंके नामांसे भो इस जाति के नाम पश्चिम बंग अधिकांश भागमें और खासकर चौबीस
मिलते जुलते हैं। प्राचीन काल में पह शब्दस सनके वस्त्र परगना, खुला और मिदनापुर जिला में इनका निवास है।
समझे जाते थे। विश्वकोश में पुण्ड और पट्ट वस्त्र के समाना. और हवडा, हुगली, नदिया और जेमार (यशाहर) जिलों में भी ये अल्पसंख्यामे पाये जाते है। बंगापसागरके
थवाची शब्द है। इससे मालूम होता है कि पुडो और सन्निहित प्रदेश समूहमें इस जातिके अधिकांश लोग वास
पांद जाति भी वस्त्र व्यवसायी थो। एक भार पौंहादि
जातियांके ऊपर ब्राह्मणांका अत्याचार बढ़ा और दूसरी करते हैं। ये पांद, पादराज, पद्मराज पद्यराज इन सब नामांमे परिचित हैं। ये लोग अपनेकां प्राचीन पुराग के
और मुसलमानांने भी इन्हें ता करना प्रारम्भ किया
इसमें इन जातियांक लाखा मनुष्य इसलाम धर्मानुयायी वंशधर बनाने है।
बन गय। पांद जानिक कुछ लोग हुगली जिले के महामहोपाध्याय पं. हरप्रमाद शास्त्रीके मतानुसार ४
पाण्डाके पास पाम भी पाये जाते हैं और वे मधुप महाभारत पुराण और वेद प्रभृति शाम्ब्रोम जिप पुलिद
धावर, है किन्तु अन्य पाद गणांस इनका किमी प्रकारका नामक अनार्य अनिका उल्लेग्व हुआ है उसीम समुत्पत
सम्बन्ध नहीं है। यह पाद जाति है । अमरकाशम पुलिंदाको म्लेच्छ संज्ञा दी गई है। कवि कंकण ने अपने चंडी काग्यमे । सन् १५७७)
कायस्थजाति तदानीन्तन वंगदेशवासी जानियोंके साथ पुलिदगोका गौइचंगके सामाजिक, राजनैतिक, धर्ममाम्प्रादायिक किरात, काजादि म्लेच्छाम रखा है "पुलिन्द किरात, इतिहास में कायस्थ जानिने सर्वप्रधान स्थान प्राधिकार कोलादि हाटेने वाजा चढीन ।'
किया था। ज्ञान-गुण दया दाक्षिण्य,शक्ति-यामध्य धर्म कर्म किन्तु पुलिद शब्दका अपभ्रंश पाद किसी भी सभी विषयांना यहाँका कायस्थ समाज एक दिन उतिकी नियमके अनुसार बन नहीं सकता है ।
पराकाष्ठा पर पहुंच चुका था इसोसे गौर - वगका वर्तमानमें इनकी हीनावस्था है और प्राचार यवहार प्रकृत इतिहासका प्रधान अंश ही कायस्थ समाजका भी निकृष्ट है । तो भी इनमें कर्णवेध, अन्नप्राशन, + The Cultuvating Pods by Mahendi शोचाचार आदि उच्च मातियाके धार्मिक अनुष्ठान प्रच- Nath Karan x History of Indian by H.P. Shastri WHistory of Grour by t.K. Chakrap. 32.
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