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________________ किरण २] भारत देश योगियोंका देश है सोमपदा आदि विविध यज्ञोंके सम्पादन द्वारा जो ऐहिक सब प्रकार के कर्मोंमें बिरत होकर विश्राम किया था, और स्वर्गिक सुख मिलते हैं, उनसे भी सैकड़ों और हजारों ईसाई लोग इस सातव दिन (रविवार ) को Sabbath गुण सुम्ब इन उपवासोंके करनेसे मिलता है । जैसे वेदम दिन मानते है और सांसारिक कार्योंसे विरुद्ध होकर धर्म श्रेष्ठ काई शास्त्र नहीं हैं, मातामे श्रेष्ठ कोई गुरु नहीं है, साधना में लगाते है। सब्बतु और उपोमय के शब्द साम्प धर्ममे श्रेष्ठ काई लाभ नहीं है वैसे ही उपवामास श्रेष्ठ और भावसाम्पको देखकर अनुमानित होता है कि कोई तप नहीं है। उपवासके प्रभावसं ही देवता स्वर्गक किसी दूर कालमें भारतीय संस्कृतिके हो मध्य ऐशिया में अधिकारी हुए हैं और उपवासके प्रभावसे ही ऋषयोंने फैलकर वहांक भगवानका उद्धार किया था। पिद्धि हासिल की है। महर्षि विश्वामित्र ने सहस्र ब्रह्मवर्षों तक एक बार भोजन किया था इपीके प्रभावसे वह उपसंहार ब्राह्मण हुए हैं। महषि च्यवन जमदग्नि, वसिष्ठ गौतम इस तरह प्राचीन भारतमें ये पर्व (त्यौहार ) भोग और भृगु इन क्षमाशील महात्माश्राने उपवायके ही प्रभाव उपभोगकी वृद्धि के लिए नहीं बल्कि जनताके सदाचार से स्वर्गलोक प्राप्त किया है । जो मनुष्य दृमगेको उप और संयमको उनके ज्ञान और त्याग बलको बढ़ाने के वास बनकी शिक्षा देता है उसे कभी कोई दुग्य नही लिये काम पाते थे। पात्मज्ञान, अहिंसा संयम, मिलता है। हे युधिष्ठिर! जो मनुष्य अंगिराकी बतलायी नप, त्याग, मूलक भारतीय संस्कृतिको कायम रखने हुई इस उपवाम विधिको पड़ता या मुनता है उसके मब और देश विदेशांमें जगह जगह भ्रमण कर उसका पाप नष्ट हो जाते हैं। प्रसार करनेका एकमात्र श्रेय इन्हीं स्यागी तपस्वी ___उपरोक्त पर्वके दिनों में व्रत उपवास रखने, दान दीक्षा प्रमण लोगोंका है यह उन्हींकी भूत अनुकम्पा, सभादेने और क्षमा व प्रायश्चित करनेकी प्रथा आजतक भी वना, सहनशीलता. धर्मदेशना और खोक कल्याणार्थ जैन साधुओं और गृहस्थोंमें तो प्रचलित है ही, परन्तु सतत् परिभ्रमणका फल है कि भारत इतने राष्ट्र विस्तवोंसर्वसाधारण हिन्दू जनतामे भी किसी न किसी रूपमे मस गुजरने के बाद भी, इतने विजातीय और सांस्कृतिक जारी है। ये पर्व और इनसे किये जाने वाले सघषों के बाद भी. भाषा भूषा, प्राचार-व्यवहारकी रहो. धार्मिक अनुष्ठान निस्सन्देह भारतीय संस्कृति के बहुमूल्य बदलके बावजूद भी, अध्यात्मवादी और धर्मपरायण बना अंग हैं। हुश्रा है। ये महात्मा जन ही सदा यहाँ राजशासकोंके भी उपरोक्न पर्वके दिनों में उपांमथ रखनेको प्रशा प्राचीन शाशक रहे हैं। समय समय पर धर्म अनुरूप उनके राजबेबीलोनिया (ईराक दशक लागों में भी प्रचलित थी। काम कर्तव्यांका निर्देश करते रहे हैं। ये सदा उन्हें विम्बाबुलके सम्राट अमुरवनीपाल (६५१ से ६२६ ई. हना, निष्क्रियता, विषयलालसा और स्वार्थताक अधम पूर्व) के पुस्तकालयम एक लेग्य मिला है, जिसमें लिया मागोंये हटा कर धर्ममार्ग पर लगाते रहे हैं। भारतका है कि हर चन्द्रमासकी मानवीं चौदहवी, इक्कीसवीं और कोई मफल राजवंश ऐसा नहीं है जिसके ऊपर किमी अट्ठाईसवीं तिथियांक दिन बावलक लो। सामारिक कामा- महान् योगीका वरद हाथ न रहा हो-जिसने उनकी मंत्रणा से हट कर, देव आराधनामें लगे रहते थे । इन दिनांको ओर विचारणाम प्रान्मबल न पाया हो । प्राजक स्वतन्त्र वे सब्बतु (Sabbath) दिवस कहते थे। 'सम्बनु का भारतका ननृत्य भी हम युगके महायोगी मह"मागांधांके अर्थ बाबली भाषामे हृदय विश्रामका दिन है। हाथ में रहा है. तभी हनने वर्षकी खोई हुई स्वतन्त्रता ईसाई धर्मकी अनुति अनुसार जो बाईबल-जेनेपिम पुनः वापिस पानम भारन मफल हो पाया है। वास्तव में अध्याय 1 में सुरक्षित है, प्रजापति परमेश्वरने अपलोक भारतीय संस्कृतिको बमाने वाले और अपने तप, त्याग (संस्तर ) की तम अवस्था ( अज्ञान दशा ) में मह तथा महन बल उन्म कायम रखने वाले ये योगी जन दिन तक विसृष्टि विज्ञान का उद्धार करके सातवें दिन ही है।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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