SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८] अनेकान्त [किरण ३ प्रदान किया जा चुका है यह देखते हुए यह कार्य कोई शिलालेखादि पुरातत्व सामग्रीका संक्षिप्त परिचय । कटिन नहीं है यदि सुव्यवस्थित रीतिसे किया जाय। मंदिरकी वार्षिक स्थायी प्राय और खर्चके अंक । मन्दिर वह रीति यह है कि प्रथम प्रारम्भिक परिचय प्राप्त सम्बन्धी स्थायी जायदादका संक्षिप्त परिचय | मन्दिरकी कर लिया जाय । प्रारम्भिक परिचय प्राप्त करने के बाद अस्थायी सम्पत्तिका अनुमानिक मूल्यांकन । पूजन प्रक्षाल विस्तृत परिचयके लिये सभी सुविधामोंका मार्ग उन्मुक्त नियमित रूपसे करने वालोंकी संख्या । मन्दिर सम्बन्धी और प्रशस्त हो जायगा। पंचायतीकी घर संख्या व जन संख्या । पंचायती मुखिया स प्रारम्भिक परिचय प्राप्तिका कार्य एक निर्दिष्ट नाम व पता । जोमदार प्रातिमी प्राय फॉर्म पर होना चाहिये कि जिससे अपने माप इन दोना श्यकता क्या है और उसमें कितना व्यय होनेका अनुमान विषयकी डिरेक्टरी तैयार हो जाय, आगामी पत्रव्यवहारके है। ग्रादि । पुरातत्व सम्बन्धी संस्थाओं तीर्थक्षेत्र कमेटियो लिये सब स्थानों के नाम पते प्राप्त हो जाय,वीरमेवा मंदिर और सरस्वती भवनाके अतिरिक्त अन्य सदाशयी महानुकी श्रीरसे प्रचारक भेजकर शास्त्रभंडारांके निरीक्षणका भावांका भी उपरोक्त दोनों फार्मीका ढांचा विचार पूर्वक कार्य प्रारम्भ हुआ है उसके लिये प्रत्येक स्थानका प्रोग्राम निश्चित कर लेना चाहिये और फार्म छपवाकर उसकी पहलेसे ही इस प्रकारका निश्चित कर लिया जाय कि खानापूर्ति के लिए यह कार्य व्यवस्थित रूपमें तत्काल चालू उस दिशा में और उस लाइनमें कोई महत्वका स्थान छूटने होकर शीघ्रतया सम्पादित हो जाना चाहिए। न पावे और जिन स्थानांकी शास्त्र सूची किसी सरस्वती हालको मदुमशुमारीक विग्तृत अांकड़े प्रकाशित भवनमें या किसी अन्य स्थान पर पहलेसे आई हुई हो होने पर इस अनुमानकी पुष्टि ही होगी कि छोटे गाँवकी तो उमे प्रचारक साथ में लेते जावें कि जिमको मिलान करके जनता बड़े गाँव और नगरकी और श्राकृष्ट होती भा रही पूरी करनेका कार्य सहज और शीघ्र हो जाय । है जिसके कारण छोटे गांवाकी आबादी में इतनी तेजीसे फॉर्म प्रत्येक शास्त्र भंडार और प्रत्येक धर्मस्थानके कमी हो रही है कि वहाँ के मन्दिरी व अन्य सार्वजनिक लिये अलग अलग हो, छोटे आकारके पुष्ट कागज पर स्थानाके साथ वहाँके शास्त्रभंडारोंकी दशा भी चिन्तनीय छपाये जावें और Loose leaf फाइलिंगके लिये पहले हो उठी है। धर्मादक द्रव्य और धर्मादा जायदादके विषय में से ही छेद (Punch) करा दिये जावें । इनमे पूछताछके राजनीतिक हलचलसे समाज परिचित है। पंचवर्षीय विषय इस प्रकारके रखे जायें: योजनामें आर्थिक समस्या सुलझानेके लिए धर्मादकी साहित्य सम्बन्धी फाम-भंडार किसके अधिकार सम्पत्ति प्राप्त करनेका प्रस्ताव नेताओं द्वारा रखा जा में है। किस स्थान पर है । सुरक्षाको दृष्टिसं वह स्थान चुका है। देखभाल और जीर्णोद्वार श्रादिकी त्रुटि के कारण ठीक है या नहीं । हस्तलिखित ग्रन्थोंकी कुल संख्या। उनके महत्वपूर्ण स्थानों पर सरकारके पुरातत्व विभागने तापपत्रादि प्रन्थोंकी संख्या । वर्षौ , २ बार वेष्टन ग्वाल कब्जा कर लिया है। प्रमाणाभावमें अनेक अनिष्ट घटकर ग्रन्थ देखे जाते है या नहीं । ग्रन्थोंकी सूची तैयार है नायें अब नक मंदिरों,तीर्थक्षेत्रो प्रादिके सम्बन्धमें घटित हो या नहीं । अतिशय प्राचीन ग्रन्थोंका नाम व संख्या। चकी है अतएव मात्र साहित्य, कला और पुरातत्वको दृष्टि मरम्मत योग्य ग्रन्थाका नाम व संख्या । ग्रंथाके देन लेनका से ही नहीं किन्तु आर्थिक दृष्टि व अन्य बहुसंख्यक कारणों लेखा रखा जाता है या नहीं। भंडारके कार्यकर्ताका नाम से भी वर्तमान में यह अत्यन्त आवश्यक है कि सब स्थानों व पता वहाँकी जनता किस विषयों के ग्रन्यांका पठन पाठन से प्रस्तावित फार्म भरकर पा जावें और उनसे बिना किसी करती है और किस विषयके प्रन्याका वहाँ उपयोग नहीं अतिरिक्त श्रमके डायरेक्टरी तैयार होकर भविष्यके लिये हो रहा है किन विषयांके या कौन कौन ग्रन्थ मंगवाने भलीभाँति सोच समझकर रक्षात्मक व्यवस्थाकी जाय । की वहाँ अावश्यकता है। आदि। किसी अनिष्ट घटनाके पश्चात् की गई प्रार्थना, मुकधर्मस्थान सम्बन्धी फार्म:-मन्दिर या धर्मस्थान दमेबाजी और पश्चातापकी अपेक्षा वर्तमान परिस्थितका किस पंचायत या व्यत्ति के अधिकारमें है। किस स्थान पर समुचित ज्ञान प्राप्त कर संभावित अनिष्टसे बचनेका स प्रयत्न करना विशेष प्रयोजनीय है। है। मंदिर में मूर्तियोंकी संख्या, प्राचीन मूतियोंकी संख्या प्राशा है कि समाज इस प्राथमिक पावश्यकनांक और उन पर अंकित हो तो सम्बत् । प्राचीन यन्त्र और प्रति उदासीन न रहकर कार्यक्षेत्रमे अग्रसर होगी।
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy