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किरण ३1
प्राचीन जैन साहित्य और कलाका प्राथमिक परिचय
प्रतिका शानभी सम्पूर्ण स्थानोंकी सूची प्राप्त होने पर ही विवेक बुद्धि (6) वीरता (10) शिष्ट सभ्य रहन सहन हो सकता है। एक स्थानकी आवश्यकता अनावश्यकताका (11) धर्म प्रभावना (१२ ज्ञान प्रचार (१३) उप सहवास ज्ञान भी सम्पूर्ण स्थानोंकी सूचीके बिना प्राप्त नहीं किया (10) राजनीतिज्ञता (१९) वाणिज्य चतुरता (१६. जा सकता है तथा जीर्ण ग्रंथोंका उद्धारभी तब तक असंभव अधिकार रक्षण (१७) परम्परा पालन, आदि लोकोत्तर बना रहता है । अपूर्ण ग्रन्थों की पूर्तिभी सम्पूर्ण स्थानोंकी गुण साहित्य और कलाकी ही देन हैं। बड़े भारचर्यको सूची प्राप्त होने पर अनायास और सहज हो हो सकती बात है कि जैन समाजको अभीतक सब स्थानोंके विषयमें है। अतएव सभी दृष्टियोंसे सूचीका कार्य पूरा करना इस कलाके प्रतीक मंदिर मूति आदिका सम्पूर्ण परिचय सबसे अधिक महत्वपूर्ण है तथा प्राथमिक आवश्यकताका नहीं है। इस परिचयके अभाव में ही भाये दिन पवित्र विषय है। इसी प्रकार कलाभी अत्यन्त चिन्तनीय स्थिति- मंदिर, मृति आदिके विषयमें अनेक दुर्घटनायें सुननेमे में है। कलाके कई भेद हैं, यथा
पाती हैं, जब वे किसी अन्य धर्मावलम्बी या सरकारके कला
अधिकारमें चली जाती हैं तब दौडधूप, मुकदमाबाजी, खनन, वास्तु, शिल्प, लेखन, चित्र, सूची, नृत्य,
प्रार्थनायें आदिमें बहुत कुछ समय, शक्ति और द्रव्य अनुष्ठान ध्यान प्रादि। इसके प्रतीक :
लग कर भी पूरी सफलतामुश्किल से मिलती है परिचयके अभावमें ऐतिहासिक प्रमाण उपस्थित करने में भी कठिनता
पाती है। इसलिये साहित्य और कलाकी सभी वस्तुओंका तीर्थ मंदिर गुफा स्तंभ स्तूप वेदी सिहासन द्वार तोरण सभी स्थानोंसे पूरा पूरा परिचय प्राप्त करना तत्सम्बन्धी । । । ।
___वर्तमान अवस्थाका ज्ञान प्राप्त करनेके लिये प्रथमावश्यक मंण्डल हम्यं शिखर कलश इन्द्र व यक्ष मूति ध्वजा देवमूर्ति और अनिवार्य है। इसमें किसी दूसरे प्रभावकी अपेक्षा
समाजकी उदासीनता ही देरी के लिये जिम्मेदार है। यदि तपोमूर्ति चरण यंत्र शिलालेख ताम्रपत्र पट्ट रथ पालकी समाज लगनसे काम ले, व्यवस्थित रीतिसं कार्य सम्पा
दन करना प्रारम्भ करे तो बरसोका काम दिनांमे पूरा हो कृत्रिम पशु पालन चंदोवा वेप्टन उपकरण, आदि । '
सकता है अन्यथा माटी मोटी रकम खर्च करके भी दिमां
का काम बरसीमें पूरा नहीं हो सकेगा जेया कि पाज तक नक्काशी, पच्चीकारी सुघड़ना, निर्माण, दृढ़ता, का इतिहास बतलाता है। सुन्दरता, भव्यता आदि अनेक दृष्टियाम जैन समाजको बगैर योजनाके, वगैर क्रमिक उन्नतिशील व्यवस्था ये वस्तुये अपना सानी नहीं रखनी और प्राचीन सभ्यता के, कोई भी महान कार्य सम्पादित नहीं हो सकता है। स्मारक म्वरूप इन वस्तुओंकी गणना संमारकी अलभ्य और कहना नहीं होगा कि हमारी समाजका माहित्य और कलाका अद्वितीय वस्तुओंमें है। इनमेंसे अगणित वस्तुयें अब तंत्र लगभग अखण्ड भारनक क्षेत्र जितना ही विस्तीर्ण तक भी भूगर्भ में छिपी हुई हैं जिनका उद्धार अवश्यमेव । प्रत्येक स्थानसे इन विषयोंका वास्तविक परिचय करना चाहिये । इन वस्तुओंके निर्माणम जैन समाजको प्राप्त करनेका कार्य कहने में जितना मरल है. करने में असंख्य धनराशि लगी है, व अबभी लगती आ रही है। उतना सरल नहीं है । परन्तु कार्यकी महानता भय न जाने कितने बंधुनोंका इसके निर्माण और रक्षाम समय खार उदासीन और निश्चेष्ट होना कोई बुद्धिमानी नहीं।
और शक्तिका ही नहीं किन्तु जीवन तकका,बलिदान हुआ अाज जो रेगिस्तानोंको मरमज किया जा रहा है. दुर्गम है। साहित्य और कलाके आधार पर ही समाजकी पहाद और बीहा जंगलाका आवागमन और खंताक याग्य सस्कृतिका निर्माण होता है।।
बनाया जा रहा है, वह क्या कोई साधारण काम है? (१) नित्य व नमित्तिक धामिक कर्म (२) धार्मिक परन्तु निरन्तरके प्रयास. हदना, स्वावलंबन सहयोग प्रादिअनुष्ठान (३) प्रामाचितन (४) तस्व विचार (१) अहिसा के सहारे इन महान कार्यों में सफलता मिलती पा रही है। धान जीवन (६) सत्यता (७) नैतिक दृढ़ता (5) सदसद् भारत भरका बालिग मताधिकार निर्वाचन क्षेत्रांक द्वारा