________________
1
अनकान्त
[किरण ३
जैन राज्य छोकर अन्यत्र भाग गये । भट्टारकजीको राज किया था। इस लदाई में वह हार गई। स्थानीय समापानीसे प्रजग कर दिया। यही कारण है कि उन्हें दूसरे चारके अनुसार भैरादेवी १६०८में मरी। ई० सन् १९२३ स्थान पर मठ बनवाना पड़ा। वही वर्तमान मठ कहा में इटलीका यात्री डेलाबेले (Denavalle) इस नगरको जाता है। थोड़े समय बाद एक दिन राजा सख्त वीमार एक प्रसिद्ध नगर लिखता है। हाँ, उस समय नगर और हो गया। चमेकी भाशा कम दिखाई दी। उसकी रानीने राजमहल नए हो गये थे। यह नगर काली मिर्च के लिए जो कहर जैन धर्मानुयायी रही, यह प्रतिज्ञा की कि इस इतना प्रसिद्ध था कि पुर्तगालियोंने गेरुसोप्पेकी रानीको कष्ट साध्य बीमारीसे अगर राजा बच गया तो मैं अपने Pepper queen लिखा है । वर्तमान गाँवसे प्राचीन सौभाग्य-चिन्ह नासिका-भूषणको बेचकर एक जैन मन्दिर नगरका ध्वंशावशेष डेढ़ मील पर हैं। इस समय यहाँ पर बनवा दूंगी। राजा स्वस्थ हो गया। सुना है कि बादमें सिर्फ पाँच जैन मन्दिर है। वे भी सघन जंगलके बीचमें। रानीने प्रतिज्ञानुसार इस मन्दिरका निर्माण कराया था। उपयुक्त पाँच मन्दिर पार्श्वनाथ, वर्धमान, नेमिनाथ, साथ-ही-साथ सामनेका तालाब भी । इसलिये इस सरो- पानाथ पद्मावती और चतुमुख। इनमें चतुर्मुख बड़ा बरका नाम मुतिनकेरे प्रसिद्ध हुमा। क्योंकि नासिका-भूषण सन्दर है। पद्मावती मन्दिरमे पद्मावती तया अम्बिकामोतियोंका बना हुआ था।
की मूर्तियाँ और नेमिनाथ मन्दिरमें नेमिनाथकी मूर्ति पूर्वोक्त मन्दिरके बगल में एक विशाल शिलामय दूसरा सर्वथा दर्शनीय है। शेष मूर्तियाँ भी कलाकी दृष्टिसे कम मन्दिर है। इस समय पह वैष्णवोंके वशमें है। यह मूल- सुन्दर नहीं हैं। चतुर्मुख मन्दिर बाहरके द्वारशे भीतरके में जैन मन्दिर ही रहा होगा। इसके सामने मानस्तम्भ द्वार तक १३ फुट खम्बा है। मन्दिर २२ वर्ग फुट है। मौजूद है। मन्दिरके उपर सामने कीर्तिमुख भी। मठके बाहर २४ फुट है। मण्डप और मन्दिरके दारों पर हर पास-पास इमारतके बहुतसे पत्थर पड़े हुए हैं। ये सब तरफ द्वारपाल मुकुट सहित वर्तमान है। मन्दिर भूरे प्राचीन स्मारकोंके ही मालूम होते हैं। वर्तमान भट्टारक पाषाणका है। इसके चार बड़े, मोटे, गोल खम्भे देखने जी भापरिणामी अध्ययनशील, व्यवहारकुशल त्यागी नाबक यहाँ है। के शिलालेख भी प्रकाशित हो चुके हैं। है। यहाँ पर ताबपत्रके प्रबोंका संग्रह भी है। पर इसमें इसमें सन्देह नहीं है कि 'गेरुसोप्पे एक प्राचीन दर्शनीय कोई अप्रकाशित महत्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं मिला। अन्यान्य स्थान है। स्थानोंके शिलालेखोंकी तरह सोदेके शिलालेख भी बम्बई
(४)हादुहलि-इसका प्राचीन नाम संगतपुर है। सरकारकी चोरसे प्रकाशित हो चुके हैं।
हाडहल्लि भटकलसे उत्तर पूर्व मील पर है. यहाँ पर (३ गेरुसोप्ये-इसका प्राचीन नाम भल्लातकीपुर भी नीनों मन्दिरोंके सिवा दर्शनीय वस्तु और कुछ नहीं है। होनावरसे पूर्व अठारह मील पर शरावतीक किनारे है। हाँ, जहाँ-तहाँ भग्नावशेष अवश्य दृष्टिगत होते हैं। यह गाँव है। प्रसिब जाग जलपातसे भी इतनी ही दूर इन सबोंसे सिद्ध हाता है कि एक जमाने में यह एक है। सन् 1901 से १६१० तक यह गेरुसाप्पेक जन वैभवशाली नगर रहा है भग्नावशेषों में मन्दिर, मकान राजाओंकी राजधानी थी। स्थानीय जागोंका विश्वास और किला मादि है। पर अब अवशिष्ट ये चीजें भी कि अपने महस्वके दिनों में यहाँ पर एक लाख घर और जंगल में विबीन होती जा रही हैं। इस समय यहाँ पर चौरासी मन्दिर विद्यमान थे। जन श्रुति है कि विजय- चारों ओर सघन जंगलका ही एकाधिपत्य है तीन नगरके राजामों (ई.सन् १९३६-११५५) ने ही गेह- मन्दिरोंमे शिलामब एक मन्दिर अधिक सुन्दर है परन्तु सोप्पेके जैन राजवंशका उमत बनाया था। वीं शत.ब्दी साथ ही साथ जीर्ण भी। दूस । एक मन्दिर भो शिलाके प्रारम्भसे यहाँका राजस्व प्रायः स्त्रियोंके हाथमें ही रहा मय अवश्य है, पर कलाकी दृष्टिसे यह सामान्य है। क्योंकि वीं और १७वों शताब्दीके प्रथम भागके प्रायः तीसरा मंदिर मामूली मृण्मय है हा इसमें विराजमान सभी लेखक गेहसोप्पे या भटकलकी महारानीका नाम २४ तीर्थंकरोंकी शिजामय मूर्तियाँ अवश्य अवलोकनीय है। लेते है। ७वीं शताब्दीके प्रारम्भमें गेरुसोप्पेकी अन्तिम इसमें यक्षी पद्मावतीकं मूर्ति भी है, जिसे जैन जैनेतर महारानी भैरादेवी पर विदनूरके बैंकटय नायकने हमला बड़ी भक्तिसे पूजते हैं। शेष दो मंदिरोकी मूर्तियाँ भी
मंदिर मामूलीय मूर्तिों अवश्य
जैन जे