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________________ अनेकान्त वर्ष ११ का तोरण नाग-फणोंको प्रदर्शित करता है। सभी तोरण तथा दंड दोनों पावंचर-सहित। एक तरफ चन्द्रमाका पारसीक ढंगके स्तम्भोंपर है। इन स्तम्भोंके ऊपरका भाग सूचक अर्द्धचक्र और दूसरी ओर समस्त ज्योतिष्कलोकका गोल है। स्तम्भ बटी हुई रस्सीको आकृतिके हैं, जिनपर सूचक कमल है । जैसाकि मंचपुरी गुफामें है। पीठ-से-पीठ सटाकर बैठे हुए पशु अंकित किये गये है। (ग) गजलक्ष्मी-हाथोंमें कमल-सहित, घड़ोंसे इस गुफाकी अलंकारिक कला अपनी विशेषता लिये हुए है। अभिषेक करते हुए दो हाथियोंके मध्य खड़ी हुई, कमलफलों ३. तत्व गुफा नं.१ (ई.पू. प्रथमसे पहली शताब्दी)- पर उपविष्ट शुकयुगल । . इसके दो द्वार है। प्रचलित तोरण, रानी गुफाके जैसे स्तम्भ, (घ) चतुर्थ तोरणके नीचे वेदिकाके मध्यमें चैत्यवृक्ष टोड़ियोंके आधारसहित स्तम्भोंके ऊर्ध्व भागपर तोरणों- और पूष्पमालाओंसे पूजा करते हुए राजा और रानी उत्कीर्ण पर शुकपक्षी और मकर जिनके मुखसे कुटिलगामिनी लता किये गये है। बरामदेके अन्तिम भागमें पुष्प लिये निर्गत हो रही है-जैसी मथुराके पुरातत्त्वमें प्राप्त है। हए उड़ते हुए विद्याधर है। और बरामदेके अन्तिम यहां विशेष उल्लेखनीय बरामदेमें एक शिलालेख है, दाहिने भागमें एक उडता हा विद्याधर एक थालमेंजिसमें लिखा है--पादमूलिक निवासी कुसुमाकी गुफा से माला ले रहा है, थाल एक भूतके हाथमें है, (पादमूलिकस कुसुमास लेणम्)। जिसके कान पत्राकार है और मुख-दन्त विकसित है। स्तम्भ. ४. अनन्त गुफा-(ई. पू. प्रथमसे पहली शताब्दी) जो मध्यमें अष्टभुजाकार हैं, उनके दोनों तरफ (भीतर इसके तोरणोंके ऊपर दोनों तरफ नाग (अनन्तनाग) है। और बाहर) चित्ताकर्षक टोड़े है । भीतरवाले टोड़ोंमेसे इससे इसको अनन्त गुफा कहते है। इस गुफाके बरामदेमे प्रथममें एक पुरुष तथा एक स्त्रीको ले जाने वाले हाथीके निम्नलिखित वस्तुएं दृष्टव्य है: अवलम्बनस्वरूप एक भूत है। दूसरे और चौथे टोड़ोंमें (१) साधारण वेदिका विसूची युक्त । पल्लवबन्ध पार्श्वस्थ पूजा करती हुई दो नारिया है, जिनका अंग कमनीयतासे मुड़ा हुआ है। तीसरेमे, हाथोमें कमल (२) स्तम्भोपर शाला प्रस्तर और स्तम्भोंके बीचमें लिये स्त्रियां है, जिनमें एक स्त्री अनेक कंकण पहिने हुए उड़ते हुए विद्याधर । धातुमय रत्नकोष-सी जान पड़ती है। पांचवीं टोड़ीमें . (३) मणिकंठधारी त्रिफणायुक्त नाग । कमलपर स्थापित हाथी है। बाहरको टोड़ियोंमें पहली और -(४) सोरणोंमें माला, तिमिजातीयमत्स्य, सिह, पांचवीमें अश्वारोही सैनिक और दूसरी, तीसरी, तथा मकर, व्याघ्र, चंचुओंमें मुक्ताफल लिये हुए हंस है। और चौथीमें भूत है। तोरणोंके ऊपर त्रिरत्न चिह्न है। गुफाके पृष्ठ-देशकी भीतपर एक पंक्तिमें निम्न(५) चतुष्कोणविशिष्ट पासिक ढंगके स्तम्भ। लिखित चिह्न उभरे हुए हैं:-स्वस्तिक, नन्दीपद, त्रिरत्न, (६) तोरणोंका तलभाग जिनके बरोगे (raftars) पंचपरमेष्ठि चिह्न । नन्दीपद, और स्वस्तिक, इन चिह्नोंके दिखाई नहीं पड़ते । नीचे अधूरी एक मूर्ति आदिनाथकी चमरेन्द्रों पुष्पवृष्टि (७) तोरणोंके नोचे निम्नलिखित दृश्य उल्लेख- और इंदभिवाले देवों-सहित उत्कोणं है । मालूम होता है नीय है : शिलावटने मूर्ति बनाना प्रारम्भ करके कठिनताके कारण (क) अपनी दो हपनियों सहित हाथी जिसका अग्र अधूरी छोड़ दी है। भाग चपटा है। गुफाके बरामदेके बाई ओरकी कड़ीपर निम्नलिखित (ख) सूर्य, दो हाथों सहित, दो पहियोंके रथपर, शिलालेख अंकित है:जिसमें चार घोड़े जुते हुए है (मथुराके जैसा), उषा और बोहद समनानम् लेणम् । प्रत्युषा नामक अपनी दोनों पत्नियों सहित और पिंगल अर्थात्--दोहदके श्रमणोंकी गुफा । • नाग ।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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