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________________ किरण १] खण्डगिरि-उदयगिरि-परिचय (द्वितीय पंक्ति) हथिस हंस-पपोतस धु-.1ना कलिंगा पाई है ?" (७) राजकीय मृगया। राजा अपने घोड़ेसे उतर व...................रवेलस । चुके है, साईस घोड़ेको पकड़े हुए है, राजा आगे बढ़कर लम्बे (तृतीय पंक्ति) अगमहीसी या का लेणम् सीगवाले एक पक्षयुक्त (परोंवाले) मृगपर तीर चलारहा गुफाके सम्मुख भागमें पारसीक ढंगके स्तम्भ है और है। मृग तेजीसे भाग रहा है । उसके पीझछे दो मृग और है। पार तोरण है, जिनमें एक मकर आलेखन और शाला ढंगके इस चित्रमें मृग आहत होता नहीं दिखाया गया है। परवर्ती एक दीर्घप्रस्तर-स्तम्भको ऊर्ध्व भागमें लिये हुए है। चित्रमें वह मृग अपनी स्वामिनीकी ओर रक्षाके लिये यह गुफा हाथीगुफाके लेखके समयसे किंचित पीछे की भाग रहा है जो एक वृक्षकी शाखापर बैठी देख रही है। तथा मंचपुरी गुफाके समकालीन है । शिकारका पीछा करता हुआ राजा वृक्षोपविष्टा युवतीके पास पहुंचता है, पर अब उसका धनुष उतरा हुआ है । राणी गुफा विशेषज्ञोंका अभिमत है कि यह चित्र दुश्यन्त और शकुंतलाराणी गुफा (ई. पू. दूसरी शताब्दी) यह गुफा का कण्वाश्रममें भेंटका द्योतक है। (८) एक प्रौढ़ स्त्री ज खाखेलने के बाद अपनी अनुचारिकाओके बीचमे बैठी हुई नृत्य देख रही है। यह गुफा दो मजिली है । दोनोंमें ही विशाल तक्षण-कार्य यह स्त्री खारवेलकी महिषी जान पड़ती है। तीन स्त्रियां नाच है, जिसका शिल्प भार तसे भी बढ़ा-चढ़ा है, जब कि रही है, और अन्य ३ बैठी हुई है । एक उपबीणा दूसरी झल्लरी रहा। उसका रचना-विस्तार और मूर्तियोकी सजीवता एवं बजा रही है और तीसरी हाथोंमे ताल दे रही है । बांई ओर तेजस्विता एक ऐसी विकसित अवस्थाको सूचित करती अन्तमें एक पुरुष है (संभवत. राजा), वह भी नृत्य देख रहा है जैसी कि सांचीके द्वारोंमें दृष्टिगत होती है। है । उसके सम्मुख करण्ड जैसी मंजूषा है । उस प्रौढ़ाके पास थालमें मालाएं लिये एक अनुचारिका खड़ी है (चित्र नं०७)। ऊपरको मंजिलके दृश्य अगले तीनो चित्रोमेसे प्रत्येकमें एक राजा और एक राणी हैं। पहले दो चित्रोंमें प्रेमभावसे स्त्री राजाके अंकमें बैठी है, (१) कुछ स्त्रियो सहित एक राजा हाथियोंके दलमें प. जो संसारी जीवनका द्योतक है। तीसरे चित्रमें स्त्री एक हाथी से लड़ रहा है। (२) वन्य दृश्य, जैसे गुहामें सिंह, । बन्दर, सर्प, पक्षी, और व्याघ। (३) गुफाके सम्मुख एक गोदमे उतरी हुई है। पुरुष के हृदयमें विरक्ति का भाव है, और स्त्री उसको संसारमें फंसाये रखनेके लिये रोकनेकी पुरुष तथा एक स्त्री। पुरुष संसारसे विरक्त हो कर मुनि कोशिश कर रही है। बरामदेके सब अवलम्बन चित्र (Caryव्रत ग्रहण करना चाहता है तथा स्त्री उसको रोकनेकी चेष्टा atid figures) साँचीके पश्चिमी द्वारके चित्रोसे मिलतेकर रही है (४) वही दम्पति । पुरुष गुफाकी ओर बढ़ रहा । जुलते है । द्वारके निकटका fiहारोही पटनेके मौर्य-कालीन है और स्त्री उसे रोक रही है। (५)शस्त्र-सुसज्जित स्त्री और यक्षकी मूतिके सदृश है। कचुकसहित द्वारपालोंकी मूर्तियाँ पुरुषका द्वंद्व-युद्ध । उन दोनोंके मध्यमें एक लोमडी दिखाई प्राचीन साहित्यमें उल्लिखित कंचुकियोंका स्मरण कराती पड़ती है। (यह उस कथाके सदृश है जिसमें रुधिर-लोलुप है और एक बूट-सहित चित्र सीदियन प्रभावको प्रकट करता है। एक शुगाल मेष-युद्ध देख रहा था।) युद्धनिरत-स्त्रीकी पीठ पर अस्खलित बेणी लटकती है । (६) पुरुष जिसने नीचेको मंजिलके दृश्य उस स्त्रीपर विजय प्राप्त किया है, उसे हाथोमें उठा कर ले जा रहा है, जब कि उस स्त्रीका भाव आत्म-गरिमा और द्वारपालोंसे सीदियन प्रभाव प्रकटित होता है। स्त्रियोचित विजयोल्लास प्रकट करता है, जिसे उसका दक्षिण गुफाओंके बाहर आंगनमें दोनों ओर दो छोटे छोटे प्रहरी कर सूचित रहा है, उसके बाम-हाथमें अभी भी ढाल है, मानो आश्रय-भूत-आच्छादन है, जिनके बाहरकी दीवारोंपर उसका बाम हाथ अब भी पुरुषको यह चुनौती दे रहा है कि वनका एक दृश्य अंकित किया गया है, जिसमें जलाशयमें "तुमने द्वंद्व युद्ध में मुझे जीता है, पर क्या मेरे मन पर विजय केलिरत हाथी, वृक्षोंपर उपविष्ट फलभक्षण करते हुए
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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