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अनेकान्त
वर्ष ११
सफल नही हो सका है। क्योंकि लेखक स्वय कितने ही रहस्योंसे अपरिचित जान पड़ता है इसीसे उनका समावेश ग्रन्थमें नहीं हो सका है, उसमें जो कुछ विषय दर्शाया गया है वह सब प्रायः श्वेताम्बर है । कुछ ऐतिहासिक आचार्योंके नाम भी दिये गये है, जिनमें वाग्भट्टालंकारके कर्ता वाग्भट्टको ही ने मिनिर्वाणकाव्य, और काव्यानुशासन सटीकका कर्ता भी बतला दिया है। जबकि तीनों कृतियां तीन विभिन्न वाग्भटों द्वारा विभिन्न समयों में लिखी गई है। वाग्भट्टालंकारके कर्ता वाग्भट सोमश्रेष्ठीके पुत्र थे, उनका सम्प्रदाय श्वेताम्बर था । इन्होंने वाग्भट्टालंकार की टीकामें नेमिर्वाणकाव्यके कितने पद्य उद्धृत किये है। इनका समय विक्रम की १२ वीं शताब्दीका उत्तरार्ष है ।
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से अनेकान्तके 'सन्मति - सिद्धसेनांक' में सप्रमाण विवेचन द्वारा न्यायावतारके कर्ता सिद्धसेन दिवाकरसे सन्मतिके कर्ता सिद्धसेनको पूर्ववर्ती एवं दिगम्बराचार्य बतलाया है, जिस पर विद्वानोंने पर्याप्त विचार किया है; परन्तु उसके विषय में अब तक कोई ऐसा प्रबल प्रमाण सामने नही लाया जा सका जो ऐतिहासिक तथ्यको बदलनेमें समर्थ हो । इतना ही नहीं किन्तु कुछ द्वात्रिंशकाओंको भी सन्मतिकार सिद्धसेनकी बतलाई गई हैं जो आचार्य समन्तभद्रके स्तोत्रग्रन्थोंकी प्रेरणास्वरूप रची गई हैं। न्यायावतार पर आचार्य सिद्धर्षिकी एक टीका है उसीका अनुवाद ग्रन्थमें दिया हुआ है, अनुवाद अच्छा है पर भाषामें प्रौढ़ता कम नजर आती है ।
६. जीवन - जौहरी — लेखक श्री ऋषभदास रांका सम्पादक, जमनालाल जी साहित्यरत्न, वर्षा । प्रकाशक मूलचन्द बड़जात्या, सहायक मंत्री भारत जैन महा मंडल, वर्षा । पृष्ठ संख्या, १६८ । मूल्य सवा रुपया ।
प्रस्तुत पुस्तकमें वर्षाके यशस्वी व्यापारकुशल सेठ जमनालाल जी बजाजका संक्षिप्त जीवन-परिचय दिया हुआ है । वे राष्ट्र के कितने भक्त, दयालु, दानी, कर्तव्यपरायण, आत्मनिर्भर और स्पष्टवादी थे, इस बातको वे सभी भली भांति जानते है जो सेठ जमनालाल जी बजाजके साक्षात्सम्पर्क में कभी आये है। बापूके भी वे दाहिना हाथ थे । इन सब बातों पर यह प्रकाश डालती है । सुरुचिपूर्वक लिखी गई है और पठनीय तथा संग्रहणीय है ।
७. जैन-जगती-लेखक, कुंवर दौलतसिंह लोढा 'अरविन्द' धामनिया (मेवाड़) । प्रकाशक, श्री यतीन्द्र साहित्य सदन, धामनिया । पृष्ठ संख्या ४५६ । मूल्य, ५) रुपये ।
पुस्तकका यह द्वितीय संस्करण है । पुस्तकमें तीन प्रकरण हे अतीतखण्ड, वर्तमानखण्ड, और भविष्यत्खण्ड । इन्हीं तीन खण्डोंमें लेखकने जैन समाजके भविष्य, अतीत और वर्तमान जीवनकी झांकी खींचनेका प्रयत्न पद्यों द्वारा किया है जो साम्प्रदायिक दायरेमें सीमित होनेके कारण
नेमिनिर्वाणकाव्यके कर्ता कवि वाग्भट प्राग्वाट या पोरबाड़वंशके भूषण थे और छाहड़के पुत्र थे । यह दिगम्बर विद्वान् थे । और वाग्भट्टालंकारके कर्ता वाग्भटसे पूर्ववर्ती है; क्योंकि उक्त वाग्भटने इनके इस ग्रन्थके पद्योंको अपने अलंकार ग्रन्थकी टीकामें उद्धृत किया है । अत:यह वाग्भट विक्रम की ११वी और १२वीं शताब्दीके पूवार्धके विद्वान् जान पड़ते है ।
काव्यानुशासनके कर्ता महाकवि वाग्भट नेमिकुमारके पुत्र थे जो व्याकरण, छन्द, अलंकार, काव्य, नाटक और चम्पूसाहित्यके मर्मज्ञ थे और कालिदास, दण्डी और वामन आदि जैनेतर कवियोके काव्य-ग्रन्थोंसे खूब परिचित थे, और उस समयके विद्वानोंमें चूड़ामणि थे। इन्होंने अपने ग्रन्थकी स्वोपज्ञटीकामें अपनी अनेक कृतियोका समुल्लेख किया है । इनका समय विक्रमकी १४वी शताब्दी है । इस तरहसे ये वाग्भट जुदे जुदे तीन विद्वान् हैं, जिन्हें एक ही बतला दिया गया है। इस तरहकी ग्रन्थमें अनेक त्रुटियां पाई जाती है फिर भी लेखकका प्रयत्न सराहनीय है। आशा है कि लेखक महानुभाव और भी साहित्यका आलोडनकर अपनी कृतिको सुधारने तथा संबर्द्धन परिवर्तन करनेका प्रयत्न करेंगे, जिससे उक्त कृति विशेष आदरणीय हो सके। - परमानन्द जैन शास्त्री