________________
किरण १
मुख्तार श्रीजुगुलकिशोरजीका 'ट्रस्टनामा'
बाफिसमें एकाउन्ट (हिसाब) खोला जायगा और ट्रस्टका प्राय: सब रुपया उक्त बैंक या बैंकों आदिमें जमा रहेगा और जरूरत पड़नेपर ट्रस्टकी व्यवस्थाके अनुसार प्रधान अथवा मन्त्री आदिके हस्ताक्षरोंसे निकाला जायगा। यदि ट्रस्टके हित एवं लाभकी दृष्टिसे तीन चौथाई ट्रस्टियोंकी सम्मति हो तो ट्रस्टका कुछ रुपया किसी विश्वस्त फर्म या व्यक्ति विशेषके पास भी जमा हो सकेगा।
(११) ट्रस्टीजन ट्रस्टको प्राप्त होनेवाली वार्षिक आमदनीके प्रायः भीतर ही वार्षिक खर्च किया करेगे और जहां तक भी हो सकेगा आमदनीका दसवां हिस्सा हर साल जरूरतके लिये रिजर्व ( Reserve ) रक्खा करेगे।
(१२) यदि किसी समय ट्रस्टीजन यह अनुभव करें कि ट्रस्टके उद्देश्यों व ध्येयोंकी यथेष्ट पूर्ति के लिये वीरसेवामन्दिर आश्रमका देहली आदि किसी अन्य स्थानमें स्थान परिवर्तन होना अत्यन्त आवश्यक है तो उन्हें अधिकार होगा कि वे इस संस्थाका स्थान-परिवर्तन उस दूसरे स्थानपर कर देवें; लेकिन शर्त यह है कि उस दूसरे स्थानपर ट्रस्टके कामोंके लिये पहलेसे बिल्डिगका अच्छा योग्य प्रबन्ध हो और कुछ सज्जनोंका ट्रस्टके कामोंमें हार्दिक सहयोग भी प्राप्त हो। परन्तु दूसरे स्थानपर ले जाकर इस सस्थाको सस्थापककी स्पष्ट इच्छा और अनुमतिके विना किसी दूसरी संस्थामें शामिल या अन्तर्लीन नही किया जायगा । इसका अस्तित्व 'वीरसेवामन्दिर' के नाम और कामके साथ अलग ही रहेगा।
(१३) यदि 'वीरसेवामन्दिर' संस्थाको स्थायी रूपसे किसी दूसरी जगह लेजाया जाय तो सरसावामें वीरसेवामन्दिरकी जो विशाल बिल्डिंग है वह बदस्तूर वीरसेवामन्दिर-बिल्डिंग के नामसे ही कायम रक्खी जायगी और ट्रस्टियोके ही प्रबन्ध, निरीक्षण एवं व्यवस्थाके आधीन रहेगी। ट्रस्टीजन उसे या उसके किसी भागविशेषको जैनियोंके किसी गुरुकुल, हाईस्कूल, त्यागी-ब्रह्मचारी आश्रम, कर्मयोगी या उदासीनाश्रम, औषधालय तथा विद्यालयको अथवा अहिंसा और अनेकान्तात्मक सत्यधर्मको प्रचारक किसी दूसरी संस्थाको मुनासिव शर्तोंके साथ उपयोगके लिये दे सकते है और ऐसा वे बिल्डिंगके किसी भागविशेषके सम्बन्धमें उस वक्त भी कर सकते है जब कि संस्थाका स्थायीरूपसे कोई स्थान-परिवर्तन न हुआ हो। स्थायी स्थान-परिवर्तनकी हालतमें यदि वे चाहें तो धर्मशाला या उद्योगशालाके रूपमें भी सारी बिल्डिंगको परिणत कर सकते है। परन्तु यदि दश वर्ष तक भी वैसी कोई जैनसंस्था उस बिल्डिंगमें संस्थापित न हो सके तो अधिकारप्राप्त ट्रस्टीजन उस बिल्डिंगको बेच भी सकेंगे और बेचनेसे प्राप्त हुआ रुपया ट्रस्टके विशेष कार्योंमें अथवा दूसरी किसी अच्छी उपयोगी एवं लाभप्रद जायदादके खरीदने में लगाया जायगा; मगर शर्त यह है कि बीरसेवामन्दिरके लिये पर्याप्त कोई स्थायी बिल्डिंग उस दूसरे स्थानपर पहलेसे बन चुकी हो और स्वतन्त्र उपयोगके लिये वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टके अधिकारमें हो तथा सरसावाकी उक्त बिल्डिंगको बेचने के लिये तीन-चौथाई ट्रस्टियोंका बहुमत प्राप्त हो।
(१४) दो जद्दी (पैतृक) हवेलियां जो ट्रस्टको सम्पत्ति घोषित की गयी है और जिनका ऊपर ट्रस्टकी सम्पत्तिके नं. (इ), (ई) और (उ) में उल्लेख है उनके किसी मकानको भी बेचनेका ट्रस्टियोको अधिकार नही होगा-उन्हें मरम्मत आदिके द्वारा प्रायः स्थिर रवखा जायगा। परन्तु किसी घटना-वश यदि मकानोको अधिक हानि पहुंच जावे और मरम्मतके द्वारा उनका स्थिर रखना ट्रस्टियोंकी दृष्टिमें ट्रस्टके लिये लाभप्रद न हो तो ट्रस्टीजन उन्हें कुछ शर्तोंके साथ प्रसूतिगृहादिजैसी किसी स्थानीय सार्वजनिक संस्थाको मरम्मतादि करके अपने उपयोगमें लानेके लिये दे सकते है अथवा सहायता आदि मिलनेपर स्वयं ही किसी समय उनमें या उनके स्थानपर आवश्यक परिवर्तनादिके साथ निर्मित हुए भवनोमें सार्वजनिक 'प्रसूतिगृह' संस्थाकी योजना कर सकते है। शेष बेचनेयोग्य जिस सम्पत्तिको भी ट्रस्टीजन ट्रस्टके हितके लिये बेचना उचित समझेंगे उसे बेच सकेंगे और बेचनेसे प्राप्त हुई रकमको ट्रस्टके कार्यों में खर्च करेंगे।
(१५) यदि ट्रस्टियोंका प्रबन्ध किसी बजह से ठीक न हो और ट्रस्ट के उद्देश्यों तथा ध्येयोंकी जानबूझकर अवहेलना अथवा उनके विरुद्ध प्रवृत्ति की जाती हो तो ट्रस्टसे सम्बन्ध रखने वाले ( interested in the Trust ) पब्लिक के प्रत्येक व्यक्तिको अधिकार होगा कि वह उस के विरोधर्म कानून जाब्ता दीवानी (Civil Pocedure Code) की धारा ९२ के अनुसार समुचित कार्रवाई करके उसको सुधारने और सुव्यवस्थित बनाने का यत्न करे।