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________________ किया जायगा। किरण १२] सम्पादकीय [ ४२३ किया है, अर्थात् 'श्री कुन्दकुन्द और समन्तभद्रका तुलना- यहां उनका सहस्रांश भी नहीं । इसका मूल कारण समाजस्मक अध्ययन' नामक लेख लिखकर समयके भीतर भेजा में साहित्यिक सद्चिका प्रभाव है और उसीका यह फल है। लेख अछा परिश्रमपूर्वक लिखा गया है, अनेक चित्रों- है जो आज हजारों अन्य शास्त्रभंडारोंकी कालकोठरियोंमें से भी उसे अलंकृत किया गया है और मुकाबलेके लिये पड़े हुए अपने जीवनके दिन गिन रहे हैं-कोई उनका दूसरा कोई लेख अपने सामने नहीं पाया। अतः उक्त उदार करने वाला नहीं। यदि भाग्यस किसी मान्यका विदुषी बाईको पुरस्कारकी अधिकारिणी ठहराया गया है। उद्धार होता भी हैतो वह वर्षों तक प्रकाशकोंके घर पर मैं इस बाईसे अभी यात्राके अवसरपर श्रवणबेलगोल पड़ा-पड़ा अपने पाठकोंका मुंह जोहता रहता है-उसकी तथा शोलापुरमें मिला है, मुझे वह अच्छी सुशील तथा जल्दी खरीदनेवाले नहीं; और इस बीच में कितनी ही होनहार जान पड़ती है। उसे ऊँचे दर्जेके अध्ययनके लिये ग्रन्थप्रतियोंकी जीवन-लीलाको दीमक तथा चूहे आदि प्रोत्साहन एवं सस्समागम मिलना चाहिये । लेखिका बाई- समाप्त कर देते हैं। इसी तरह समयकी पुकार और की यह शिकायत थी कि उसे प्रकृत विषयके गहरे अध्ययन आवश्यकताके अनुसार नत्रमाहित्यके निर्माणमें भी जैनसमाज और उस पर लेख लिम्बनेके लिये काफी समय नहीं मिल बहुत पीछे है। उसे पता ही नहीं कि समयकी आवश्यकतामका, अतः लेख पुनदृष्टि डालनेके लिये कुछ सूचनाओंके के अनुसार नव-महित्यके निर्मापकी कितनी अधिक जरूरन साथ उक्त बाईको दे दिया गया है संशोधित होकर है-समयपर नदीके जलको नये घमें भरनेसे वह कितना वापिस पाजाने पर उसे प्रकाशित किया जायगा। अधिक ग्राह्य तथा रुचिकर हो जाता है। किसी भी देश शेष पुरस्कारोंके सम्बन्ध अब मै यह चाहता हूँ कि तथा समाजका उत्थान उसके अपने साहित्यके उत्थानपर यदि कमसे कम दो या तीन विद्वान उनमें से किसीभी विषय निर्भर है। जो समाज अपने मस्साहित्यका उद्धार तथा पर लेख लिम्बनेकी अपनी प्रामादगी जाहिर करें तो उम प्रचार नहीं कर पाता और न स्फूर्तिदायक नवसाहित्यके विषयके पुरस्कारकी पुनरावृत्ति करदी जाय, अर्थात् उसके निर्माणमे ही समर्थ होता है वह मृतकके समान है और लिये यथोचित समय निर्धारित करके फिरसं उस पुरस्कारकी उसे प्राजके विश्वकी रष्टिमें जीनेका कोई अधिकार नहीं घोषणा पत्रों में निकाल दी जाय। इसके लिये में लेख है। ऐसी हालतमे ममाजका कालके किसी बड़े प्रहारसं लिस्बनेको उत्सक विद्वानों तथा विदषियोंके पत्रांकी १५ पहले ही जाग जाना चाहिए और अपने में साहित्यिक जून तक प्रतीक्षा करूंगा और उस वक्त तक जिस विषयक मदचिको जगाने का पूर्ण प्रयत्न करना चाहिये। इसके भी घोषणायोग्य पत्र प्राप्त होंगे उस विषयके पुरस्कारकी लिये शीघ्र ही संहित होकर निम्न कार्योंका किया जाना फिरसे घोषणा करदी जायगी; अन्यथा वादको नये पुरस्कारी अत्यावश्यक हैकी योजना की जाएगी। जिन चार विषयांपर लेख लिखे जन चार विषयापर लेख लिख () अपना एक ऐसा बड़ा प्रन्यसंग्रहालय देहलीजाने अभी बाकी हैं उनके नाम निम्न प्रकार हैं और जोर र है और जैसे केन्द्र स्थानमें स्थापित किया जाय, जिसमें उपलब्ध उनका विशेष परिचय अनेकान्तकी उक्त किरण (नं. ४-२) सभी जैन ग्रन्योकी एक एक प्रति अवश्य ही संगृहीत रहे से जाना जा सकता है:-1 समस्थसारकी १५ वीं गाथा। गाथा। और अनसन और अनुसन्धानादि कार्योंके लिये उपयुकदमरे प्रन्योंका २ अनेकान्तको अपनाए बिना किसीकी भी गति नहीं। मीना ३ शुद्धि-तस्व-मीमांसा । ४ विश्व शांतिका अमोघ उपाय ।। (२) महत्वके प्राचीन जैन प्रन्योंको शीघ्र ही मूलरूपमें ३. समाजमें साहित्यिक सद् चिका प्रभाव- प्रकाशित किया जाय, लागतसे भी कम मूल्यमें बेचा जाय जैन समाजमें पूजा-प्रतिष्ठानों, मेले-ठेलों, मन्दिर. और ऐसा आयोजन किया जाय जिमसे बड़े बड़े नगरी मूतियोंके निर्माण, मन्दिरोंकी सजावट और तीर्थयात्रा तथा शहरोंकी लायरियों और जैनमन्दिरीम उनका आदि जैसे कार्यो में जैसा भाव और उत्साह देखने में आता एक एक सेट अवश्य पहुँच जाय । है वैसा सत्साहित्यफे उद्धार और नव निर्माण जैसे कार्यों में (३) उपयोगी ग्रंथोंका हिन्दी, अंग्रेजी भादि देशीवह नहीं पाया जाता। वहां करोड़ों रुपये खर्च होते हैं तो विदेशी भाषाओं में अच्छा अनुवाद करा कर उन्हें मस्त
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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