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किरण १२]
फतेहपुर (शेखावाटी) के जैन मूर्तिलेख
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केवल वारिस पर ही निर्भर है, इसीसे यहां केवल एक प्राप्त होने के बाद कायमखाँका प्रताप एवं प्रभाव दिन ही फसल बरसातमें गवार, मोठ, मूंग और चोप्रा पर दिन बढ़ता गया। बादशाही दरबारमें भी उसका श्रादिकी होती है । खेती की जमीन बैलों और ऊँटों- प्रभाव अंकित हो गया और उससे प्रायःलोग डरने के द्वारा जोती जाती है। मूली, गाजार, बैंगन, तोरई लगे। कायमखाँको खानखानाकी उपाधि भी प्राप्त थी, कांदा लहसुन टमाटर धनिया, पौदीना और पालक इसकी ७ स्त्रियाँ थीं, जिनसे छह पुत्र पैदा हुए थे।
आदि शाक-सब्जीकी खेती भी होती है। चौमासेमें फीरोजशाह तुगलकको सं०१४७५में मृत्यु होगई, मतीरा (तरबूज) और ककड़ी अधिक होती है, गाँवके तब दिल्लीकी बादशाहत बड़ी अस्त-व्यस्त दशामें आस-पासके लोग मतीरा और ककड़ी बेचने आया
होगई थी, उसका कारण प्रापसी फूट और परस्परका करते हैं।
अविश्वास था। यही वजह है कि २६ वर्षके अल्प. ___ फतेहपुरके मतीरे अधिक प्रसिद्ध हैं। कहा जाता समयमें दिल्ली में फीरोजशाहके बाद स्वाँ बादशाह है कि नवाब अलिफरखाँ (सं०१६६६) के समयमें सैयद खिजरखाँ था। खिजरखाँ नबाब कायमस्लॉके सम्राट जहांगीरने शेखावाटीके मतीरोंकी प्रशसा सुन. प्रतापको सह न सका और उसका विक्रम देखकर वह कर फतेहपुरसे एक मतीरा अपने दरबारमें मंगाया था भयभीत रहने लगा । उसने अवसर पाते ही कायमजिसका वजन ३३।। सेर था।
खाँको अपने बेटे अहमदखाँ के साथ किलेकी बुर्जसे फतेहपुरके नवाब
नीचे जमनामें ढकेल दिया, जिससे ये डूब कर मर फतेहपुरके वे सभी नबाब जिन्होंने वि. सं..
गये। और ताजखाँ तथा मुहम्मदखाँको हिसारसे १५०८ से सं० १७८७ तक २७६ वर्ष झुंझनूं और
निकाल दिया गया। खिजरखाँके मरनेके बाद वे दोनों फतेहपुरमें राज्यशासन किया है। उनकी कुल संख्या
पुनः हिसार में आकर राज्य करने लगे। ताजखाँ और
फतहखाँके ३१ वर्ष राज्य करनेके बाद वे लोग हिसार १२ है और जिनके नाम इसप्रकार हैं:
छोड़ कर चले गये । और अपने द्वारा मरूभूमिमें दो फतहखाँ, जलालखाँ, दौलतख'....हरखाँ, फदन
नूतन शहर बसा कर राज्य करने लगे। खाँ, ताजखाँ, अलिफखाँ, दौलतलाँ, सरदारखाँ (१)
फतहखाँ ने सं०१५०६ में फतेहपुर में किला बनदीनदारखाँ, सरदारखाँ (२) और कामयावखाँ। इनके बाद फतेहपुर और झनृमें शेखावत राजपूतोंका
वाना प्रारंभ किया था जो दो वर्ष में बनकर पूरा हो
गया। तब उसने सं० १५०८में किले में रहना प्रारंभ शासन रहा है।
कर दिया। फतहखॉ हिसारके नबाब थे। इनके पिताका नाम ताजखाँ 'और पितामहका नाम कायमखाँ था. जो सेठ तोणमल या तोहनमन्ल ददरेरागाँवके चौहान राजा मोटेरावका पुत्रथा, और जिस समय फतेहखाँ हिसारसे फतहपुर आया जिसका नाम कमसिंह था। सं० १४४० में दिल्लीके उसी समय उनके साथ वहाँ के निवासी सेठ हेमराजबादशाह फीरोजशाह तुगलककी आज्ञासे हिसारके के सपत्र सेठ तोहनमल्ल, जो फतहखाँ के मुसाहिब ये फौजदार सैयद नासिरने ददरेरा पर हमला किया था, आये। वे अप्रवाल वंशी और दि०जैनधर्मके अनुयायी उसमें मोटेरावका उक्तलड़का उसके हाथ लगा। लड़का थे। फतहखाँ के साथ इनकी घनिष्ट मित्रता थी। होशयार और चतुर था, इसीसे सैयद नासिरने उसे फतहखाँ उनकी सलाह लिये बिना कोई काम नहीं मुसलमान बनाकर अपने पास रख लिया और उसका करता था, सेठ तोणमल या वाहनमल्ल भी राजनीति में नाम कायमखाँ रक्खा गया। बाद में उसके दानों भाइ दक्ष थे और राज्यकार्यमें अपना पूरा योग देते थे। वे भी योंको भी मुसलमान बना लिया गया। सं० १४४५में अपने परिवारके साथ फतहपुर गए । वे बड़े निरसैयद नासिरको मृत्यु होगई। तब फीरोजशाह तुगलक- भिमानी थे, इनके तीन भाई और थे, जिनका नाम ने कायमखाँको हिसारका नबाब बनादिया। नबाबी क्रमशःटीलणदास, रूपचन्द और पद्मराज था,सेठजी