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विषय-सूची १ श्रीगोम्टेश्वर-बाहुबलि जिन पूजा | युगवीर ३६३ ६ अपभ्रंश भाषाका नेमिनाथ चरित्र२ जिन-धुनि-महिमा (कविता)-पं० भागचन्द ३६६ [परमानन्द शास्त्री
४१४ ३ समन्तभद्र-वचनामृत-[युगवीर- ३६७ ७ वंशालीकी महत्ता-[श्री आरआर० दिवाकर ४१६ ४ फतेहपुर शेखावाटी) के जैन मूर्ति-लेख-
श्रॉम्ब फाडकर चलं, या आर बोतल [पं० परमानन्द जैन शास्त्री ५ वीरमेवामन्दिरके नैमिरिक अधिवेशन
न रक्व ?-[पंकन्हैयालाल मिश्रप्रभाकर ४१८ मभापति-श्री मिश्रीलालजी कालाका भापगण ४५० १. सम्पादकीय
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ग्राहकोंसे आवश्यक निवेदन
अनेकान्तकी इस किरणकं साथ ११ वा वर्ष समाप्त हो रहा है और उनके माथ ही प्राय: सभी ग्राहकोंका मूल्य भी। मब चीजोंकी महँगाईको दखन हुए अगले वर्षकं लिये मूल्य छः रुपये रग्वनका विचार हुआ था, परन्तु यह दंग्वकर कि उत्तम माहित्यको पढ़नकी सदचिका अभी ममाजम बहुत कुछ अभाव है, पहला मूल्य ५) रु० वार्पिक ही बदस्तूर रहने दिया गया है। अतः ग्राहकोंमे निवेदन है कि वे इस किरगणक पहंचन ही अगले वर्षका अपना अपना चन्दा शीघ्र ही मनीआर्डरसे भेज देने की कृपा कर: क्योंकि वी०पी०से मंगाने में अब बड़ी झंझटे खड़ी होगई हैं-एक तो रजिस्टरी तथा वी०पी० का चाज बढ़ जानसे उन्हें आठ आने अधिक व्यर्थ देने होंग-५) के स्थान पर ५॥) ग्वच करने होंगे । दूसरे डाकखान वाले एक दिन में बहुन कम वी० पी० स्वीकार करते है, इससे पत्र के समय पर पहुँचनेमें बहुत देर हो जाती है-उसके कारण पाठकांको कितना ही प्रतीक्षा जन्य कष्ट उठाना पड़ेगा। तीसरे अनेकान्त-कायालयक व्यर्थ कष्टको ध्यान में लेकर शीघ्र ही ५) २० मनीआर्डर से भेजकर हमें अनुगृहीत करेंगे और कुछ नये ग्राहक बनाकर उनका भी चन्दा भिजवानका कष्ट उठायेगे। जो सज्जन किमी कारण वश अगले वर्ष ग्राहक न रहना चाहे वे तुरन्त ही उसमें सूचित करने को कृपा करें, जिसमें कार्यालयको वी० पी० करकं व्यर्थ की हानि न उठानी पडे । जिन ग्राहकोंसे मूल्य अथवा कोई पत्र प्राप्त न होगा उनकं विषयम यह समझा जायगा कि वे वी०पी० से ही पत्र मंगाने के इच्छुक हैं।
मैनेजर-'अनेकान्त'
१ दरियागंज, देहली