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अनेकान्त
[किरण ११
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ये लेख दो भागों में विभक्त है-(क) एकमें स्वयं सम्पादक उसका हिन्दी भरप्य, ४१ ऐतिहासिक घटनाओंका एक अनेकान्त अर्थात् संस्थापक व अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिर संग्रह, ४२ गोम्मटमार और नेमिचन्द, ४३ मूलाचार और (जुगलकिशोर मुख्तार) द्वारा लिखे गये लेग्व और (ख) कार्तिकेयानुप्रज्ञा, १४ भट्टारकीय मनोवृत्तिका एक नमूना, दूसरेमें मन्दिरके अन्य विद्वानों द्वारा लिखे गये लेग्ब शामिल ४५ 'वानर महाद्वीप' पर सम्पादकीय नोट, ४६ जीवस्व है, जिनमें पं० परमानन्दशास्त्री, ६० दरबारीलाल न्याया- रूप-जिज्ञासा (प्रश्नावली), . श्री अकलंकदेव भार चार्य, बा. सूरजभान वकील, बा. जयभगवान वकील, विद्यानन्दकी राजवार्तिकादि कृतियो पर पं० सुखलालजीके ६. ताराचन्द दर्शनशास्त्री, पं. दीपचन्द्र पांढ्या, बा. गवेषणापूर्ण विचार, ४८ पं. महेन्द्रकुमारजीका लेख, ४६. बालचन्द एम. ए. और बा. ज्यातिप्रसाद एम. ए. के नाम गदरसे पूर्व लिखी हुई ५३ वर्षकी 'जन्त्री स्वाम', ५० रही खास तौरसे उल्लंग्वनीय है। दोना विभागांक प्रायः ग्वास में प्राप्त हस्तलिखित जैन-अजैन ग्रन्थ, ११ एलक-पदकल्पना लेख इस प्रकार :
(संशोधित और परिवर्धित-संस्करण ', १२ रत्नकरण्डके (क) मन्दिरके अधिष्ठाता-द्वारा लिखे गये लेख- कर्तृत्व विषयमें मेरा विचार और निर्णय, ५३ सन्मति
पनि पानीकोन सूत्र और सिद्धसेन, ५४ समवसरणमें शूद्रांका प्रवेश, २ संघा-धर्म-दिग्दर्शन, ३ भगवनी श्राराधनाकी दूसरी ५५ जन कालानी पार नरा विचार-पत्र, ५६ सन्मतिप्राचीन टीका-टिप्पणियां, ४ ऊँच गोत्रका पवार कहां ?,
विद्याविनाद, ५७ अष्टमहत्रीकी एक प्रशस्ति, १८ 'जैना५ ार्य और म्लेच्छ, ६ सकाम-धमा-माधन, ७ 'गोत्र-सबंधी
गम और यज्ञोपवीत' पर सम्पादकीय विचारणा, ६ एक विचार' पर सम्पादकीय नोट, मात्रकर्म पर शास्त्राजीका
प्राचीन ताम्रशासन, ६. गलनी और गलत फहमी, ६१ उत्तर लग्ब, ६ अन्तरीपज मनुष्य, १० श्री पृयपाद पार
विपुलाचल पर वीर शासन-जयन्तीका अपूर्व दृश्य, ६२ उनकी रचनायें, हमचन्दाचार्य-जन-ज्ञानन्दिर, १२ कलकत्ताम वीर शासनका सफल महात्मव, ६३ संस्कृत पानिप्राभृत श्रार जगत्सुन्दरी-नांगमाला, १३ स्वामी पात्र- कमभात, ६५ भारतका स्वतन्त्रता, उसका में कसरी और विधान परिशिष्ट जगासन्दा प्रयो- वर्तव्य, ६५ वीर-तीयांवतार, ६६ श्रीवारका सर्वोदय-तीर्थ गमाला' पर सम्पादकीय नोट, १५ जगन्मुन्दरी प्रयागमाला ६७ चीर शासन काल मृल सूत्र । की पूर्णता, १६ तस्त्राथांधिगममूत्रकी एक टिप्पणप्रति, [इनके अतिरिक्त कितने ही सम्पादकीय बक्तव्य, १७ धवलादि घृत-परिचय, १८ जानलनणावली, 18 वियांगादि-विषयक सामयिक लेख, साहित्य-समालोचन, 'तत्वार्थभाप्य श्रार असलंक पर सम्पादकीय विचारणा, टीका-टिप्पणी, प्राचायों आदिके स्मरण, अनंक शास्त्र२० हालीका त्यौहार, २१ प्रभायन्द्रका तवार्थ सूत्र, २२ भरडारांक परिचय लेन्व और बीसियां सं स्तुनि-म्नीत्रों प्रो. जगदीशचन्द्र और उनकी समीक्षा, २३ चित्रमय जना अादिक परिचय-लेख भी लिखे जाकर अनेकान्तमें प्रकाशित नीति, २४-२६ समन्तभद्र विचारमाला-(क) स्व-पर- हुए हैं जो प्रायः नई खोजासे सम्बन्ध रखते हैं । इसी चैरी कौन ?, (ख) वीतरागको पूजा क्या?, (ग) पुण्य- तरह कुछ कवितायें भी लिखी जाकर प्रकाशित हुई है। पाप-व्यवस्था, २७ "सिद्ध, प्राकृत' पर सम्पादकीय नोट, जैसे मानवधर्म परमउपास्य कौन ?. जैन गुण-दर्पण २८ भक्तियोग-रहस्य, २६ कवि राजनरल और राजा भार- (जैनी कान ?), हृदय है वना हुश्री फुटबाल होली मल्ल, ३. वीरनिर्वाण सम्बत् की समाजांचना पर विचार, है ?! इत्यादिक । साथ ही कुछ लेग्य वीर, जैन सिद्धान्त३. परिग्रहका प्रायश्चित्त. ३२ महत्वकी प्रश्नोत्तरी, ३३ भास्कर तथा जैनमित्रादि पोका और स्मृति-अभिनन्दनश्वेताम्बर तत्वार्थ सूत्र और उम्प भाप्यकी जांच, ३५ ग्रन्थोंको भी लिख कर भेजे गये हैं। अनेकान्तके मुख पृष्ठका चित्र, ३५ 'सर्वार्थमिन्ति' पर समन्तभद्रका प्रभाव, ३६ समन्तभद्रका एक और परिचय- (ख) मन्दिरके दूसरे विद्वानों द्वारा लिखे गये लेख पद्य, ३० अनेकान्त-रस-लहरी, ३८ बीर-शापनकी उत्पत्ति- पं. परमानन्द शास्त्री-१ अपराजितमूरि और का समय और स्थान, ३६ स्वामी समन्तभद्र धर्मशास्त्री, विजयोत्या, २ प्रमाण-नयतत्वालोकालंकारकी आधारभूमि तार्किक और योगी तीनों थे, ४० समीचीन-धर्मशास्त्र और ३ भगवती भाराधना और शिवकोटि, ४ मूलाचार संग्रह